ए ज सोनल अवतरी- कवि दुला भाया “काग”
।।दोहा।। उग्रसेन चारण सकळ, कंस कळी बणवीर। गोकुळ मढडा गाममें, सोनल जाई हमीर।। ।।छंद – सारसी।। नव लाख पोषण अकळ नर ही, ए ज सोनल अवतरी।। मा ! ए ज सोनल अवतरी ।।टेर।। अंधकारनी फोजुं हटी, भेंकार रजनी भागती। पोफाट हामा सधू प्रगटी, ज्योत झगमग जागती।। व्रण तिमिर मेटण सूर …