March 31, 2023

कोरोना से करें किनारा ~ डॉ. गजादान चारण ‘शक्तिसुत’

जाग चुका है कोना कोना छोड़ चुके गफ़लत में खोना मिलकर सारे करें सामना, क्या कर लेगा रोग कोरोना? चिकित्सकों की बातें मानें दृढ़ होकर संयम-धनु तानें सावधान रहना और रखना, आओ मिलकर ऐसी ठानें। बचाव जहां उपचार बना है लापरवाही सख्त मना है अब भारत ने ठान लिया है, …

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आसै बारठ रै चरणां में ~ डॉ. गजादान चारण ‘शक्तिसुत’

मधुसूदन जिण सूं रीझ्यो हो, वरदायी जिणरी वाणी ही। बचनां सूं जिणरै अमर बणी, ऊमा दे रूठी राणी ही। कोडीलै बाघै कोटड़ियै, सेवा जिण कीनी सुकवि री। मरग्या कर अमर मिताई नैं, परवाह करी नीं पदवी री। ईसर खुद जिण सूं ले आखर, पद परम ईस रो पायो हो। इळ …

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जीवटता री जोत जगावतो अंजसजोग उल्थौ: चारु वसंता – डॉ. गजादान चारण “शक्तिसुत”

साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली रै अनुवाद पुरस्कार 2019 सूं आदरीजण वाळी काव्यकृति ‘चारु वसंता’ मूळ रूप सूं कन्नड़ भासा रो देसी काव्य है, जिणरा रचयिता नाडोज ह.प. नागराज्या है। इण काव्य रो राजस्थानी भावानुवाद करण वाळा ख्यातनाम साहितकार है-डाॅ. देव कोठारी, जका आपरी इतियासू दीठ, सतत शोधवृत्ति अर स्वाध्याय प्रियता …

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डोकरी – गज़ल

डोकरी – गज़ल नरपत आसिया “वैतालिक”बैठी घर रे बार डोकरी!किणनें रही निहार डोकरी!हेत हथाई अपणायत री,टाबर रे रसधार डोकरी!बाल़कियां री हरपल़ बेली,बण बाघण खुंखार डोकरी!धीणां, डांगर, प्हैला आंगण,राख नीरती न्यार डोकरी!हतौ डोकरो हाजर उण पल़,सजिया घण सिंगार डोकरी!करै पारकी बस पंचायत,खरी भर्योडै खार डोकरी!डरा प्हैल बहुवां धमकायी,इण बोथी तलवार डोकरी!आज …

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बन्द करिए बापजी – गजल

हर बात को खुद पे खताना, बन्द करिए बापजी। बिन बात के बातें बनाना, बन्द करिए बापजी। बीज में विष जो भरा तो फल विषैले खाइए, ख़ामख़ा अब खार खाना, बन्द करिए बापजी। सागरों की साख में ही साख सबकी है सुनो! गागरों के गीत गाना, बन्द करिए बापजी। लफ़्ज …

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राज बदळियां के होसी

कांई फरक पड़ै कै राज किण रो है ? राजा कुण है अर ताज किण रो है ? फरक चाह्वो तो राज नीं काज बदळो ! अर भळै काज रो आगाज नै अंदाज बदळो ! फकत आगाज’र अंदाज ई नीं उणरो परवाज बदळो ! आप – आप रा साज बदळो …

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भारत नैं आज संभाळांला

सूरज जद स्याह अंधेरी सूं, रंग-रळियां करणो चावै है। चांदै नैं स्यामल-रजनी रै, आँचळ में आँणद आवै है। इसड़ी अणहोणी वेळा में, होणी रा गेला कद दीखै। कहद्यो अै तारा टाबरिया, कुणनैं देखै अर के सीखै? बरगद री बातां बतळातां, विकराळ काळजै झाळ उठै। काची कळियां पर काळोड़ी, निजरां देखां …

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जिंदगी

कर रहा हूँ यत्न कितने सुर सजाने के लिए पीड़ पाले कंठ से मृदु गीत गाने के लिए साँस की वीणा मगर झंकार भरती ही नहीं दर्द दाझे पोरवे स्वीकार करती ही नहीं फ़िर भी हर इक साज से साजिन्दगी करती रही ऐ जिंदगी ताजिंदगी तू बन्दगी करती रही। आँख …

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