छंद रूप मुकुंद – कवि भंवरदान झणकली
छंद रूप मुकुंद – कवि भंवरदान झणकली घर हूत अणुत कपूतर पूत, भभूत लगाए भटकता है। गुरू धूत कै जूत करतूत सहै, अस्तूत मां भूत अटकता है।। अदभूत धँआङ माँ धुत रहै, अण कूंत अफीम गटकता है। अवधूत वणै मजबूत नशा, जमदूत की फांस लटकता है।।1।। घर बार तजे वर्ण …