चिरजा- बिड़द रख बीसहथी वरदाई – डॉ गजादान चारण शक्तिसुत
बिड़द रख बीसहथी वरदाई, सेवग दुख हर लीजे सुरराई। खल को खंडन कर खलखंडनि, मेछां उधम मचाई। संतन के मन गहरो सांसो, पुनि-पुनि-पुनि पछताई।।1।। खल संग निर्मल होय सफल कब, अंत मिलत अफलाई। दुष्ट दलन कर हे दाढाळी, एक आसरो आई।।2।। निम्-निम नाड़ राखतां नीची, लुळ-लुळ धोक लगाई। तिम-तिम अहम …