बुद्धि के दाता:गणपति – ~डॉ. गजादान चारण “शक्तिसुत”
हुई जब हौड़ नापे कौन जग दौड़, सारे काम धाम छोड़ बड़े भ्राता बोले ध्यान दे। मूषक सवार देख धरा को पसार, तो से पड़ेगी ना पार क्यों न खड़ी-हार मान ले। एकदंत एकबार कर ले पुनः विचार, छोड़ अहंकार याके सार को तु जान ले। ‘शक्तिसुत’ षडानन-गजानन बीच ऐसे, …