श्री खेतरपाळ रो छंद
श्री खेतरपाळ रो छंदरचना–राजेन्द्र दांन विठू (कवि राजन) झणकली। व्याधी विपदा वासदी त्रासदी ऐरू टाळ। डेरलाइ रा डोकरा खम खम खेतरपाळ।। विघन हरण वरदावतों संकट मेट सदाय। सुख संपत समपो सदा खेतरपाळ खमाय।। छंद त्रिभंगी धन धन तुझ धामां करत सलामा देवत दामा दरबारी ओटे सम आमा मेरख मामा नमत …