March 31, 2023

आ बतलाऊँ क्यों गाता हूँ ? – कवि मनुज देपावत (देशनोक)

आ बतलाऊँ क्यों गाता हूँ ? नभ में घिरती मेघ-मालिका, पनघट-पथ पर विरह गीत जब गाती कोई कृषक बालिका ! तब मैं भी अपने भावों के पिंजर खोल उड़ाता हूँ ! आ बतलाऊँ क्यों गाता हूँ ? जब सावन की रिमझिम बूँदें, आती है हरिताभ धरा पर, गिरती है पलकों …

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भव का नव निर्माण करो हे- कवि मनुज देपावत (देशनोक)

भव का नव निर्माण करो हे ! यद्यपि बदल चुकी हैं कुछ भौगोलिक सीमा रेखाएँ; पर घिरे हुए हो तुम अब भी इस घिसी व्यवस्था की बोदी लक्ष्मण लकीर से ! रुद्ध हो गया जीवन का अविकल प्रवाह तो; और भर गया कीचड़ के लघु कृमि कीटों से गलित पुरातन …

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आज जीवन गीत बनने जा रहा है- कवि मनुज देपावत (देशनोक)

आज जीवन गीत बनने जा रहा है ! ज़िंदगी के इस जलधि में ज्वार फिर से आ रहा है ! छा गई थी मौन पतझड़ की उदासी, गान जब से बन गए मेरे प्रवासी ! आज उनको मुरलिका में पुनः कोई गा रहा है ! आज जीवन गीत बनने जा …

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आज होली जल रही है- कवि मनुज देपावत

राज्य-लिप्सा के नशे में, विहँसता है आज दानव ! दासता के पात में जो, पिस रहा है आज मानव ! आज उसकी आह से धन की हवेली हिल रही है ! आज होली जल रही है ! स्वर्ण सत्ता के सहारे, नग्न होकर नाचता नर ! शक्तिशाली दीन-शोणित पी रहा …

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मैं किसी आकुल ह्रदय की प्रीत लेकर क्या करूंगा- कवि मनुज देपावत (देशनोक)

मैं किसी आकुल ह्रदय की प्रीत लेकर क्या करूंगा ! सिकुड़ती परछाइयाँ, धूमिल-मलिन गोधूलि-बेला ! डगर पर भयभीत पग धर चल रहा हूँ मैं अकेला ! ज़िंदगी की साँझ में मधु-दिवस का यह गान कैसा ? मोह-बंधन-मुक्त मन पर स्नेह-तंतु-वितान कैसा ? मरण-बेला में मिलन-संगीत लेकर क्या करूँगा ? मैं …

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मैं प्रलय वह्नि का वाहक हूँ – कवि मनुज देपावत

मैं प्रलय वह्नि का वाहक हूँ ! मिट्टी के पुतले मानव का संसार मिटाने आया हूँ ! शोषित दल के उच्छवासों से, वह काँप रहा अवनी अम्बर ! उन अबलाओं की आहों से, जल रहा आज घर नगर-नगर ! जल रहे आज पापों के पर, है फूट रहा भयकारी स्वर …

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तुम कहते संघर्ष कुछ नहीं, वह मेरा जीवन अवलंबन- कवि मनुज देपावत देशनोक

तुम कहते संघर्ष कुछ नहीं, वह मेरा जीवन अवलंबन ! जहाँ श्वास की हर सिहरन में, आहों के अम्बार सुलगते ! जहाँ प्राण की प्रति धड़कन में, उमस भरे अरमान बिलखते ! जहाँ लुटी हसरतें ह्रदय की, जीवन के मध्यान्ह प्रहर में ! जहाँ विकल मिट्टी का मानव, बिक जाता …

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लोहित मसि में कलम डुबाकर कवि तुम प्रलय छंद लिख डालो- कवि मनुज देपावत (देशनोक)

लोहित मसि में कलम डुबाकर कवि तुम प्रलय छंद लिख डालो।। अम्बर के नीलम प्याले में ढली रात मानिक मदिरा-सी। कर जग को बेहोश चाँदनी बिखर गई मदमस्त सुरा-सी। तुमने उस मादक मस्ती के मधुमय गीत बहुत लिख डाले। किन्तु कभी क्या देखे तुमने वसुंधरा के उर के छाले। तुम …

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प्रताप की बलिदान कहानी – मनुज देपावत (देशनोक)

दीप शिखा के परवाने की यह बलिदान कहानी है ! यह बात सभी ने जानी है ! अत्याचारी अन्यायी ने अन्याय किया भारत भू पर। डोली थी डगमग वसुंधरा, वह काँप उठा ऊपर अम्बर !! माता के बँधन कसे गए, झनझना उठी थी हथकड़ियाँ। बज उठी बेड़ियाँ पैरों की, लग …

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रे धोरां आळा देस जाग– मनुज देपावत (देशनोक)

धोराँ आळा देस जाग रे ऊँटाँ आळा देस जाग। छाती पर पैणा पड़्या नाग रे धोराँ आळा देस जाग।। उठ खोल उनींदी आँखड़ल्यां नैणाँ री मीठी नींद तोड़। रे रात नहीं अब दिन ऊग्यो सपनाँ रो कू़डो मोह छोड़।। थारी आँख्याँ में नाच रह्या जंजाळ सुहाणी रातां रा। तूं कोट …

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