पिंगळ प्रसंग – कवि भंवरदान झणकली
शिष्य:-
कवि शिष्ट मुझ दास का, कैसे हो कल्याण।
सत उपदेश सुणायके, दीजो विद्या दान।।
गुरु:-
पहले होगी परीक्षा, कवि सुनो धर कान।
बिना अधिकारी है विरथा, देणो विद्या दान।।
शिष्य:-
आप परीक्षा लो अवश्य, समझो शिष्य सुजान।
बिना द्वेष बताऊंगा, जितना मुझको ज्ञान।।
गुरु द्वारा प्रश्न:-
कहां तुमने देखा, बिना सीप मोती?
कहां तुमने देखी, बिना दीप ज्योति?
कहां तुमने देखा, बिना साज बाजा?
कहां तुमने देखा, बिना ताज राजा?
कहां तुमने देखी, बिना जठर जरनी?
कहां तुमने देखी, बिना काठ तरनी?
कहां तुमने देखा, बिना पाल सरवर?
कहां तुमने देखा, बिना मूल तरवर?
कहां तुमने देखा, बिना पंख सुआ?
कहां तुमने देखा, बिना मौत मुआ।?
शिष्य द्वारा उत्तर:-
घूंघट में देखा, बिना सीप मोती।
जवानी में देखी, बिना दीप ज्योति।
घटाओं में देखा, बिना साज बाजा।
गरूड़ को देखा, बिना ताज राजा।
धरा को देखी, बिना जठर जरनी।
खर्ची को देखी, बिना काठ तरनी।
मृगतृष्णा को देखा, बिना पाल सरवर।
वंश को देखा, बिना मूल तरवर।
सुजस को देखा, बिना पंख सुआ।
कंजूस को देखा, बिना मौत मुआ।
गुरु:-
तीर्थयात्रा करके आओ और इन्हीं प्रश्नों के उत्तर दो।
शिष्य तीर्थयात्रा के बाद:-
बर्फ को देखा, बिना सीप मोती।
ज्वाला को देखा, बिना दीप ज्योति।
सरिता को देखा, बिना साज बाजा।
दाता को देखा, बिना ताज राजा।
वर्षा को देखा, बिना जठर जरनी।
गंगा को देखा, बिना काठ तरनी।
पासा को देखा, बिना पाल सरवर।
पाखंडी को देखा, बिना मूल तरवर।
संतों को देखा, बिना पंख सुआ।
मंगतों को देखा, बिना मौत मुआ।
गुरु:-
तपस्या करके आओ और इन्हीं प्रश्नों के उत्तर दो।
शिष्य तपस्या के बाद:-
नेत्रों में देखा, बिना सीप मोती।
मोती में देखी, बिना दीप ज्योति।
ज्योति में देखा, बिना साज बाजा।
मनमस्त को देखा, बिना ताज राजा।
शक्ति को देखा, बिना जठर जरनी।
भक्ति को देखा, बिना काठ तरनी।
नयनों को देखा, बिना पाल सरवर।
देह को देखा, बिना मूल तरवर।
प्राणी को देखा, बिना पंख सुआ।
निद्रा को देखा, बिना मौत मुआ।
गुरु:-
सत्संग करके आओ और इन्हीं प्रश्नों के उत्तर दो।
शिष्य सत्संग के बाद:-
शब्दों को देखा, बिना सीप मोती।
हृदय में देखी, बिना दीप ज्योति।
तत्व को देखा, बिना साज बाजा।
गुरु को देखा, बिना ताज राजा।
चिन्ता को देखा, बिना जठर जरनी।
भक्ति को देखा, बिना काठ तरनी।
भव को देखा, बिना पाल सरवर।
कर्म को देखा, बिना मूल तरवर।
संतों को देखा, बिना पंख सुआ।
मूर्खों को देखा, बिना मौत मुआ।
गुरु:-
योग करके आओ और इन्हीं प्रश्नों के उत्तर दो।
शिष्य योग के बाद:-
अजम्पा में देखा, बिना सीप मोती।
त्रिकूटि में देखी, बिना दीप ज्योति।
ज्योति में देखा, बिना साज बाजा।
सिद्धों को देखा, बिना ताज राजा।
प्रकृति को देखा, बिना जठर जरनी।
मुक्ति को देखा, बिना काठ तरनी।
संतों को देखा, बिना पाल सरवर।
अटल को देखा, बिना मूल तरवर।
चेतना को देखा, बिना पंख सुआ।
समाधि को देखा, बिना मौत मुआ।
गुरु का अंतिम प्रश्न:-
बताओ आपका गुरु कौन है?
शिष्य:-
श्रीमुख अवल मैं, अजान था अज्ञानी।
घूमा धाम अड़सठ, हकीकत पहचानी।
हुई धुन तपस्या, काम क्रोध कटानी।
भणे चाव सत्संग, सुनी वेद वाणी।
धरे योग अष्टंग, हो आप ध्यानी।
सजे चार साधना, सो वेद सुज्ञानी।
पंच दून बातें, सो पिंगळ प्रमाणी।
खरी जाण खोजी, फिरे चार खानी।
कहे कवि भंवर, पुरानी कहानी।
गृह तेथ साचा, कवि संत ज्ञानी।
~कवि भंवरदान मधुकर झणकली