April 2, 2023

मत्सस्य की मीरां “समान बाई” कविया

मत्सस्य की मीरां “समान बाई” कविया
(पुण्यतिथि श्रावण अमावस्या पर विशेष आलेख )
राजस्थानी साहित्य मेे भक्त कवयित्री के रूप मे जो स्थान मीरा को मिला है उसके समकक्ष समान बाई को भी उनके विपुल  साहित्य रचना के कारण उच्च स्थान पर माना जाता है . अलवर के प्रशिद्ध धरणा के नायक  ” द्रोपदी विनय” करूण बहोतरी जैसी महान काव्य के रचनाकार श्री रामनाथ जी कविया की सुपुत्री को काव्य प्रतिभा विरासत मे मिली थी .उन्होने अलवर के धरने को बहुत निकट से देखा व ईश्वर धर्म मे उनकी आस्था अटुट बड़ती गई .उन्होने सांसारिक रीत के निर्वाह हैतु ही प्रशिद्ध कवि उम्मेदराम पालावत के परिवार मे रामदयाल जी से  विवाह किया .समान बाई ने हरिद्वार जा कर भी तपस्या की . राम व कृष्ण की भक्ति मे लीन रहने वाली महान साधिका थीं उनकी अनेको  रचनाए आज भी अंचल मे गाई व सुनी जाती है  समान बाई की ब्रजयात्रा तब अविस्मरणीय बन गई थी जब हरि के मंदिर में भगवान कृष्ण और राधिका का सम्मोहक नयनाभिराम चित्र देखकर वे अभिभूत हो गई .भक्तिमति ने उसी समय आंखो पर पट्टी बांध ली जो आजीवन रही तथा उसी चित्र को हमेशा के लिये ह्रदयंगम कर लिया.किसी ओर का चेहरा जीवन पर्यन्त नही देखनी की द्रढ़ प्रतिज्ञा को जीवन पर्यन्त निभाया इन्होने पुत्र गोद लिया उसकी घोषणा पूर्व मे ही कर दी थी जब वे गंगा के घाट पर तपस्या करती थी मां ने उनकी तपस्या पूर्ण की इसलिये इन्होने अपने गोद लिये पुत्र का नाम गंगाबख्श रखा.
जीवन मे तमाम सुख सुविधाओ को त्यागकर उन्होने वीतराग जीवन को अंगीकार किया जबकी इनके पिहर व ससुराल मे भौतिक सुलभता नोकर चाकर  सम्पन्न विरासत की कहीं कोई कमी नहीं थी .इनमे भक्ति जन्म जन्मांतरो के संस्कारो का प्रतिफल था उस समय समाज मे पर्दा प्रथा थी मगर मीरां के ही समान कृष्ण को अपना जीवन सौंप दिया व उनकी आंखो ने किसी ओर सांसारिक द्रश्य को देखा ही नहीं .
.प्रतिदिन उनकी रचनाओ को लिखने के लिये दो तीन लोग उपस्थित रहते थे , दिनभर आध्यात्मिक कर्मकाण्ड पूजापाठ तथा साहित्य सेवा करते रहते थे उनके द्वारा रचित ” पती शतक” पति महिमा कृष्णोपम कृष्ण महिमा का अद्वितीय काव्य है
” जानकीनाथ सहाय करे तब कौन विगार करे नर तेरो” समान बाई रचित  की ये पंक्ति कितनी लोकप्रिय रही जिसे पूर्व वित्त मन्त्री यशवंत सिन्हा ने उद्घत किया था .
अनेक सृजनधर्मी गुमनामी के अंधेरे मे विस्मृत हो गये तथा साहित्य की धरोहर रूपी भक्ति लोक साहित्य सरंक्षण के अभाव मे काल कवलित हो गये .यही कारण रहा की “मत्सस्य की मीरां” आज गुमनाम है
मगर फिर भी आज उनके कुछ साहित्य काे गांव गांव घूम कर एकत्र कर प्रकाशित करवाया उनकी पड़पोत्री डॉ मंजुला बारहठ ने , जो पद्मश्री डॉ सीताराम लालस की दोहीत्री एवं प्रसिद्ध कवि  उम्मे्दराम जी की वंशज है
मीरां आज राष्ट्रीय फलक पर है , पर समाज की इन महान भक्तिमति देवी को आज स्मरण कर वंदन तो कर ही सकते है  !
(उदयपुर मे प्रस्तावित चारण कन्या छात्रावास के पुस्तकालय मे समान बाई का साहित्य व चित्र उपलब्ध कराया जायेगा )

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