March 29, 2023

सृष्टा – दृष्टा ~ डॉ. रेवंतदान बारहठ

देख रहा है
सृष्टा को दृष्टा
दूर अनंत अंतरिक्ष में
उसे दिखाई दे रही है
प्रकाश वर्ष को
द्रुत गति से लांघती
लपलपाती हुई
एक अगन लौ
भाप बनकर उड़ते हुए समंदर,
हरहराकर धरती के
सारे गर्तों को पाटते हुए
हिमगिरि के सब उतंग शिखर,
पवन उन्नचास के वेग में
वर्तुल बनकर उड़ते हुए जंगल,
नभ में ऊर्ध्व गति से
पथ विचलित और व्यग्र
भूतालिया बनी हुई सरीताएं,
उतप्त अंधड़ में दिशाहारे
कीड़ीनगरे की तरह
भयाक्रांत इंसान,
और उनका सामूहिक रुदन
पशु पक्षियों का कोलाहल
एक दूसरे में समाते हुए
नभ थल और जल
देख रहा है प्रतिपल।

सुन रहा है वह
फिर से एक और
ब्रह्मांडीय विस्फोट की अनूगुंज
घनघनाती हुई धरती की टंकार
गुरुशिखर के घंटे की तरह।
विस्फारित विदीर्ण नेत्रों से
देख रहा है विध्वंस होते विश्व को।

सुन रहा है वह
असीम शून्य से
प्रतिपल नजदीक आती हुई
महाप्रलय की मंथर पदचाप
और सृष्टा की संहारक सांसों को।

– रेवंता

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!
%d bloggers like this: