March 21, 2023

दिल्ली षड़यंत्र केस’ के बलिदानी

बलिदान दिवस:- 08.05.1915

राष्ट्रभक्त मित्रों, आज से 108 वर्ष पूर्व गुलाम भारत के दौर में रासबिहारी बोस के नेतृत्व में मास्टर अमीर चंद, अवध बिहारी, भाई बालमुकुंद, कुंवर प्रताप सिंह बारहठ व बसंत कु. बिस्वास जैसे राष्ट्रभक्तों ने 23.12.1912 को दिल्ली के चांदनी चौक में उस समय जोरदार बम धमाका कर ब्रिटिश सरकार की नींद उड़ा दी, जब लॉर्ड हार्डिंग अपनी पत्नी सहित कलकत्ता से दिल्ली को राजधानी बनाने के एक भव्य कार्यक्रम में शामिल था। इस घटना में लॉर्ड हार्डिंग बुरी तरह घायल हुआ, इसके अंगरक्षक मारे गए, किंतु क्रांतिकारियों को लॉर्ड हार्डिंग के ना मार पाने का अफसोस रहा। इस घटना के बाद रासबिहारी बोस जी जापान पहुँचने में सफल रहे, किंतु मास्टर अमीर चंद, अवध बिहारी, भाई बालमुकुंद, कुंवर प्रताप सिंह बारहठ व बसंत कु. बिस्वास पकड़े गए तथा इन्हें इस महान राष्ट्रसेवा हेतु पुरस्कार स्वरूप सज़ा ए मौत मिली। मास्टर अमीर चंद व भाई बालमुकुंद जी को 08.05.1915, अवध बिहारी व बसंत कु. बिस्वास जी को 11.05.1915 तथा कुंवर प्रताप सिंह बारहठ जी को 24.05.1918 को बलिदान प्राप्त हुआ।

अमीर चंद जी लाला हरदयाल के सम्पर्क से क्रांतिकारी आंदोलन में आये और रासबिहारी बोस के घनिष्ठ सहयोगी बन गये। उन्होंने गदर पार्टी के कार्यों में भाग लिया और पूरे उत्तर भारत में क्रांतिकारी कार्यों का संयोजन किया। दिल्ली के एक वैश्य परिवार में जन्मे मास्टर अमीर चंद जी, दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज के विद्यार्थी व पेशे से अध्यापक थे। उनके मन में देशभक्ति की मान्यता इतनी प्रबल थी कि स्वदेशी आंदोलन के दौरान हैदराबाद के बाज़ार में उन्होंने स्वदेशी स्टोर खोला था, जहाँ वह देशभक्तों की तस्वीरें तथा क्रांतिकारी साहित्य बेचते थे। सन् 1919 में उन्होंने दिल्ली में भी स्वदेशी प्रदर्शनी लगाई। लॉर्ड हार्डिंग पर जो बम रासबिहारी बोस के सहयोगी वसंत कुमार विश्वास ने फेंका था, उसकी सारी योजना के सूत्रधार रासबिहारी बोस जी व मास्टर अमीर चंद थे। लंबी खोजबीन के बाद जब पुलिस ने 19. 02.1914 को अमीर चंद को गिरफ़्तार कर लिया, उस समय वे दिल्ली के रामजस हाईस्कूल में अवैतनिक रूप में अध्यापन करा रहे थे।

यद्यपि’ दिल्ली षड़यंत्र केस’ के क्रांतिकारी भाई बालमुकुंद पर जुर्म साबित नहीं हुआ था, फिर भी शक के आधार पर अंग्रेज़ हुकूमत ने उन्हें सज़ा दी। भाई बालमुकुंद महान् क्रान्तिकारी भाई परमानन्द के चचेरे भाई थे। दिल्ली में जिस स्थान पर मास्टर अमीर चंद व बालमुकुंद को फ़ाँसी दी गई, वहाँ शहीद स्मारक बना दिया गया है, जो दिल्ली गेट स्थित ‘मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज’ में स्थित है। भाई बालमुकुंद के खानदान में अपने सिद्धांतों पर मर मिटने की प्रथा बड़ी पुरानी थी। गुरु नानक के अनुयायी पहले शांति के पुजारी थे, पर जब मुग़लों ने उन्हें दबाना चाहा तो ये ही शांतिप्रिय शिष्य तलवार उठाने पर विवश हुए। यह एक बहुत बड़ा‌‌‌ परिवर्तन था। इस परिवर्तन के पीछे भाई बालमुकुंद के पूर्वजों का बहुत बड़ा‌ योग था। इसी कुल में मतिदास हुए, जो गुरु तेग़ बहादुर के साथ शहीद हुए। उन्हें लकड़ी के दोशहतीरों के के बीच रखकर आरी से चीरा गया। इस बलिदान के कारण गुरु गोविंदसिंह ने इस कुल के लोगों को भाई की उपाधी दी थी। इसी त्याग-तपस्या से उज्ज्वल कुल में भाई बालमुकुंद का जन्म हुआ था। बालमुकुंद लाहौर के डी.ए.वी. कॉलेज में पढ़कर स्नातक हुए और फिर उन्होंने शिक्षक बनने के उद्देश्य से बी.टी. की परीक्षा भी पास कर ली। सन् 1910 के BTC उत्तीर्ण परीक्षार्थियों में उनका नंबर तीसरा था।

भाई बालमुकुंद का विवाह फ़ाँसी दिये जाने से एक साल पहले ही हुआ था। आज़ादी की लड़ाई में जुटे होने के कारण वे कुछ समय ही पत्नी के साथ रह सके। उनकी पत्नी का नाम रामरखी था। उनकी इच्छा थी कि भाई बालमुकुंद का शव उन्हें सौंप दिया जाए, लेकिन अंग्रेज़ हुकूमत ने उन्हें शव नहीं दिया। उसी दिन से रामरखी ने भोजन व पानी त्याग दिया और अठारहवें दिन उनकी भी मृत्यु हो गई। 23 दिसंबर 1912 के ‘दिल्ली षड़यंत्र केस’ की घटना में बम-कांड में बसंत कुमार विश्वास के अलावा भाई बालमुकुंद का सक्रिय सहयोग था। दोनों बुर्के पहने स्त्रियों की भीड़ में थे। इस घटना उपरांत भाई बालमुकुंद ने अपनी पत्नी को भाई परमानंद के घरवालों के पास छोड़ा और स्वयं जोधपुर के राजकुमारों के शिक्षक बन गये। पुलिस को बहुत दिनों तक पता नहीं चल पाया कि चाँदनी चौक के बमकांड के पीछे कौन था। लेकिन, आखिर में 16 फ़रवरी, 1914 को वह गिरफ्तार कर लिये गये। ‘दिल्ली षड्यंत्र केस’ के इन महान राष्ट्रभक्तों के 105वें बलिदान दिवस पर ऋणी राष्ट्र नतमस्तक है।

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