March 29, 2023

आवड़ाष्टक

।।दूहा।।
विमल़ बिछायत बेकल़ू, थल़ पर थांनग थाप।
मनरँगथल़ माजी मुदै, इल़ इण राजो आप।।

चाल़़क मार्यो चंडका, किया खंडका काट।
मनरँगथल नू मंडका, दैत दंडका दाट।।

चाल़कनेची तो चवां, अनड़ेची फिर आख।
महि माड़ेची मावड़ी, डूंगरेची जग दाख।।

भादरिये धर भाखरां, सरां देग सुरराय।
अरां विखंडण आजदिन, गिरां तुंही गिरराय।।

तूंहि बैठी तणोट में, बींझणोट वरदाय।
काल़ै डूंगर कोट में, मोट मना महमाय।।

थल दासोड़ी तूं दिपै, तोड़ी विघन तमाम।
जुग कर जोड़ी कव जपै, कोड़ी सुधारण काम।।

।।छंद-रोमकंद।।
घर मामड़ आणिय देस उग्राणिय,
होफर ताणिय गाज हली।
सत रूप सवाणिय जाणिय जोगण,
भाणिय मैरख भ्रात भली।
बसु बात बखाणिय कीरत वाणिय,
ढाणिय वाहर लार ढल़ी।
अइ आवड़ रूप विख्यात इल़ा पर, मात दिपै मनरंगथल़ी।।1

धर चारण गात कियो धिन धारण,
साख सुधारण देव सही।
भुइ हारण भारण ले निज भीरत,
मारण दैत अतंक मही।
दँभियां दँभ दारण तूं कल़ु कारण,
सारण संतन काज सल़ी।
अइ आवड़ रूप विख्यात इल़ा पर, मात दिपै मनरंगथल़ी।।2

इम आवड़ आछिय छाछिय ओपत,
खोड़ल होलरु गैल खमा।
सुज रोपल नाचिय जाचिय सेवग,
साचिय राचिय दैण समा।
वड वीदग माचिय जो जस वाचिय,
वार जु काचिय जाय बल़ी।
अइ आवड़ रूप विख्यात इल़ापर, मात दिपै मनरंगथल़ी।।3

दधि सोखिय रोकिय आभ दिवाकर,
तोखिय तेमड़ शूल़ तरां।
मुरलोकिय धोकिय देवत मावड़,
पोखिय तावड़ टाल़ परां।
भर ओकिय खून अनौखिय भक्खण,
मोखिय भाखल आय मिल़ी।
अइ आवड़ रूप विख्यात इल़ापर, मात दिपै मनरंगथल़ी।।4

विजराज नुं राज कियो वरदायक,
दाझ हरी सुखसाज दियो।
जदुराज समाज अग्राज हि जोपत,
थांन नृपां सिरताज थियो।
देवराज सुपाज थपी नर डारण,
लोवड़ ओट सुताज लल़ी।
अइ आवड़ रूप विख्यात इल़ापर, मात दिपै मनरंगथल़ी।।5

पग पेस हुवो रतनेस पुरोहित,
ऐस गुणी द्विज वेस अयो।
पल़टै नर भेस दिवी अपणेसरु,
जेस कियो गढवेस जयो।
जिण नेस हमेस रहै जगजामण,
काट कल़ेस की श्वेत कल़ी।
अइ आवड़ रूप विख्यात इल़ापर, मात दिपै मनरंगथल़ी।।6

गिर माड़ जमी गिर माड़ रमी घण,
दैतड़ दाढ़ दहाड़ दमी।
अवनाड़ उजाड़ बिचै विमरां इम
थांनग राड़ पछाड़ थमी।
तर झाड़ झँखाड़़ सरोवर तालर,
रीझ जठै नवलाख रल़ी।
अइ आवड़ रूप विख्यात इल़ापर, मात दिपै मनरंगथल़ी।।7

झल़ मंगल़ जोत दिपै जग जाहर,
नूर निरम्मल़ आप नमो।
जल़ गंग तरंग तरां थल़ जंगल़,
रूप महीयल़ आप रमो।
छिति वेहल़ व्रन पखै छल़ छेदण,
छांगविया भुजपाण छल़ी।
अइ आवड़ रूप विख्यात इल़ापर, मात दिपै मनरंगथल़ी।।8

सह जाल़ दफै कर जाल़ रि सांमण,
पाल़ सनातन आद पखो।
अब आव उँताल़ लँकाल़ अरोहण,
न्हाल़ बियो कहु नाथ नको।
निज लोवड़याल़ सुपाल़ रहै नित,
फेर गिरध्धर आस फल़ी।
अइ आवड़ रूप विख्यात इल़ा पर, मात दिपै मनरंगथल़ी।।9

।।छप्पय।।
माड धरा जग मंड, थांन गिर शिक्खर थपियो।
निसचर कीध निमूल़, इल़ा सुख संपत अपियो।
हिव ओरण हरियाल़, लोवड़धर तुंही लागै।
मढ हर में महमाय, जोत रै रूपां जागै।
हर जनां विघन हरणी हथां, भेद बिनां भवतारणी।
गीधियो शरण निसदिन गहै, चरण तिहारी चारणी।।

~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”

One thought on “आवड़ाष्टक

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!
%d bloggers like this: