ढांढणियै रा लाल़स रामचंद्रजी उन्नीसवें सईकै रा नामचीन कवि। उणांरी घणी रचनावां चावी। जोगी जरणानाथजी रा छंद बेजोड़-
जोगी जग जरणा करुणा करणा,
इल़ नहीं मरणा अवतरणा!!
इणां री काव्य प्रतिभा अर वाक शक्ति सूं रीझ र नगर रावतजी – भेडाणा अर आंबल़ियाल़ी नामक दो गांम तो आकली अर अरणियाल़ी जैड़ा दो ई गा़म गुड़ै राणाजी साहिबखांनजी दिया। रामचंद्रजी आपरो परिवार लेय ढांढणिया सूं आकली बसग्या। साहिबखांनजी मिनखपणै री आभा सूं मंडित अर उदारता रा प्रतीक पुरुष हा।
किणी कवि कैयो है-
धोबी कनै धुवाय, कईक नर गाहड़ करै।
मैली डगली मांय, सुजस तिहारो साहिबा।।
इणी कारण कवि रो गुड़ै राणाजी रै अठै ईज घणकरोक समय व्यतीत होवतो। इणसूं रावतजी नाराज रैता अर आ नाराजगी काढण सारू किणी मोकै री उडीक में हा। जोग सूं चैत्री मेल़ो आयो। रामचंद्रजी रा मोटयार बेटा धनजी आपरा ऊंट, बैल आद लेय मेल़े रवाना होया अर धन री रुखाल़ी सारू.कईक भीलां रै साथै मालासरा महंतजी रै चेले नै ले लियो। रात रा नगर पाखती डेरो होयो। हेरां जाय आ बात रावतजी नै बताई। रावतजी कैयो कै किंया ई धन चोर र कोट में घालदो। रावतजी रा आदमी छानै-मानै गया अर पशुवां नै चमकाया, जिणसूं कईक पशु जेवड़ा आद तोड़ाय र भिड़क रा नाठग्या। धनजी इण नाठतै डांगरां नै रोकण अर पकड़ण सारू टुरिया तो लारै सूं चोरटां बाकी रो धन ई चोर नगर कोट में घाल दियो। धनजी पाछा आया तो देखियो कै ‘डेरे में काग लड़ै अर कुत्ता भुस्सै!!’
उणां इण बात री सूचना गुड़ै जाय आपरै पिताजी नै दी। आ बात सुण र रामचंद्रजी चिड़ग्या। उणां आपरै बेटो रो माजनो पाड़तां कैयो “जा रै गैलसफा ! इण बात री खबर म्हारै कन्नै लावण सूं पैला तैं सोचियो नीं कै तूं एक चारण है !! अर चारण ऐड़ै नाजोगै क्षत्रियां नै साच री आरसी किणगत बताया करै! जा म्हनै मूंडो मत बता! अर म्हारो बेटो होवण री ओल़ख दे !”
ओ हाको सुणर गुड़ा राणाजी पधारग्या अर रामचंद्रजी नै कैयो कै हमे इण मोटयार माथै हाका करियां कीं नीं होवै, हालो कीं समाधान करां!!”
रामचंद्रजी कैयो “हुकम आपनै तो ठाह है ई कै उठै पैला ई ऐड़ी चोर्यां रै खिलाफ पांच बामणां अर दो स्वामियां रा धरणा बैठा है ! पण हालो नगर रावतजी नै ठाह तो पड़ै कै चारणां सूं खेटा करियां कांई भाव बिकै।”
साहिबखानजी अर रामचंद्रजी दोनां ई रावतजी नै समझाया कै ओ अजोगतो काम नीं करणो चाहीजै। रावतजी करतां तो ओ काम कर लियो पण पछै डरग्या अर कैयो कै कविराजजी रो धन म्हारै अठै भूल सूं आयग्यो सो ले जावो! आ बात जद बीजै धरणार्थियां नै ठाह पड़ी तो उणां रामचंद्रजी नै कैयो कै “जे आप म्हांरै साथै धरणै में नीं बैठा तो रावतजी म्हांरी कोइ गिन्नर नीं करेला! सो आप म्हांनै म्हांरो धन दिरावो।” रामचंद्रजी आपरो एकलां रो धन लेवण सूं मना कर र उण बामणां अर स्वामियां रै समर्थन में उठै ई धरणै माथै बैठग्या। रामचंद्रजी रै साथै ई गुड़ा राणाजी साहिबखांनजी बैठग्या।
उणी दिनां उठै राजनट आपरी रम्मत बतावण सारू आयोड़ा हा। रावतजी दोघड़ चिंता में रम्मत करावण सारू मना कर र नटां नै सल़टीवाड़ै तक उडीकण रो कैयो। छेवट एक दिन नटां कैयो कै “अबै आप रम्मत नीं करावोला तो म्है ई भूखा तिस्सा धरणै माथै बैठांला!” जणै रावतजी कैयो कै “थे गुड़ा राणाजी अर रामचंद्रजी नै म्हारो अन्न जल़ ग्रहण कराय दो तो म्है रम्मत करा दूं ला।” नट जाय चारणां रै धरणै में राणाजी अर रामचंद्रजी सूं अरज करी अर आपरी पूरी व्यथा बताई जणै राणाजी कैयो कै “जितै तक समस्या रो समाधान नीं होवै उतै तक म्हें रावतजी रो पाणी ई नीं पीवां पण थारी जीवारी राखण खातर म्हें म्हांरै घर रो अन्न जल़ लेय थांरी रम्मत देखण आवांला।”
रामचंद्रजी, मालासरा महंतजी अर राणोजी रम्मत देखण जावती बगत आपरै डेरे में धनजी नै अर चेले नै लारै छोड रुखाल़ी री भोल़ावण देय ग्या परा।
धनजी कैयो “बाबा, गल़ती आपांरी अर दुख माईत पावै ! ई बीचै तो मरणो ई चोखो! थे हिम्मत करो तो चारण रो चरित्र अर भगमै री करामात बतावां!”
आ कैय धनजी आपरी कटारी सूं कितरा ई घाव खाय शरीर नै रगत सूं गरकाब कर लियो अर अठीनै बाबै आपरो चिमटो कंठां में पैर लियो। धनजी अर बाबो कोट कानी रवाना होया ! बाबै तो कोट में बड़तां ई एक भींत रै सहारै अचल़ समाधि लगा ली अर धनजी आपरो लोई छिड़कता जनाना ड्योढी तक पूग ग्या, उठै धनजी रो ओ विकराल़ रूप एक दासी देख लियो अर हाण फाण जाय राणीसा नै अरज करी। जितै तो धनजी लोही छिड़कता उठै पूगग्या जठै रम्मत हो रैयी ही! उण लोही में गरकाब होयोड़ां कैयो “अरे काल़जै प्रीत बायरां निलज्जां इण नट्टां री रम्मत देखण सूं पैला इण चारण री रम्मत ई देख लिरावो!”
लोही सूं सांपड़तै एक चारण रो रूद्र रूप देख रावतजी तो किणी अनिष्ट री आशंका सूं बेहोस होय उठै ई पड़ग्या। जद रामचंद्रजी आपरै सपूत रो ओ रूप देखियो तो एकर तो बै ई गतागम में फसग्या पण दूजैड़ै ई क्षण उण कैयो “वाह धनिया ! वाह धनिया ! छेवट तूं चारण बणियो खरी!!” इण वाह नै सुण उण साहसी सपूत धनजी आपरै पिता नै कैयो कै “जठै म्हारी घोड़ी सूं म्हारी देह पड़ै, उठै ई म्हारी हद ! म्हनै दाग उठै ई दीजो।” आ कैय धनजी आपरी स्वामीभक्त घोड़ी सवार होया। आगे घोड़ी सवार धनराज अर लारै असंख मिनख। वि.सं. 1805 री चैत सुद नवमी रै दिन, आकली री तल़ाई री पाल़ माथै जावतां धनराजजी रो शरीर शांत होयो अर उणी घड़ी घोड़ी रा प्राण छूटा। जठै धनराजजी नै दाग दियो अर उठै ई उणांरी याद में एक छत्री बणियोड़ी है। आखती-पाखती रा लोग जूंझार धनराज लाल़स नै घणी श्रद्धा सूं पूजै।
आपरै सपूत धनराज रै चारणपणै माथै मोदाय रामचंद्रजी दो गीत अर कीं दूहा कैया। एक संवेदनशील पिता रै मार्मिक आखरां री बांनगी-
जो तूं धनिया जाय, रणवट छांडै रामवत।
(तो)ठाडो मंगल़ थाय, हेमाचल़ ऊनो.हुवै।।
धाराल़ी धनराज, प्रतमाल़ी पैरत नहीं।
लाल़स व्रण री लाज, रहत किसी विध रामवत।।
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गिरां गात नीला हुवा पात वन गरजिया,
भात रुत हुई सुख सात भायो।
वडा कवि पात अखियात राखण विरद,
आव कुल़ छात वरसात आयो।।
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रावत रा चाडे खूनी व्रन रा उजाल़ राह।
अधंतरां रुधे रथां अम्मरां अवेव।
अवसूरां झूलरां ले अच्छरां अनेक आवै।
गयो सूरां पूरां राह दूसरो गंगेव।।
इण महा मरटधारी धनराज री वरेण्य वीरता नैं म्है ई च्यार सोरठा समर्पित कर सबदां नै सार्थकता दी-
धिन धिन रै धनियाह, रेणव सुत रामेण रा।
देखंतां दुनियाह, पहरी गल़ प्रतमाल़का।।
वीदग वडहथियाह, रढियाल़ा सुत रामरा।
धिन रे धनपतियाह, उजवाल़ी धर आकली।।
गढवी कर तैं गाढ, चारणपणो चितारियो।
जो पहरी जमडाढ, रावत रो घर रोल़बा।।
लाल़स व्रण लंकाल़, ऐह कहावत आदरी।
एकर भल़ै उजाल़, धनपत सूतो धरण पर।।
~गिरधर दान रतनू दासोड़ी