ना मिलती है अनायास ही,
ना मिलती उपहारों में
ना पैसे के बल आजादी,
मिलती कहीं बाजारों में
लाखों का सिंदूर पुँछा है,
लाखों सूनी हुई कलाई
लाखों कोख चढ़ी कुर्बानी,
तब जाकर आजादी आई
फिर हमको गणतंत्र दिलाने,
प्रजातंत्र का पाठ पढ़ाने
जन गण का सौभाग्य जगाने,
हिंद विश्व-सिरमौर बनाने
जो कुछ अच्छा था दुनियां में,
उन उन तथ्यों को अपनाया
राष्ट्रचिंतकों की कलमों ने,
मिल कर संविधान बनाया
सोचा था स्वराज बनेगा,
हिंद विश्व का ताज बनेगा
महाशक्ति बन अपना भारत,
इक वैश्विक आवाज बनेगा
ज्ञान योग अरु ध्यान रहेगा,
विश्व वंद्य विज्ञान रहेगा
औषधि आयुर्वेद रहेगी,
सामवेद संगान रहेगा
जनता का जनता के द्वारा,
जनता के हित शासन होगा
जनता होगी कर्ता-धर्ता,
जनता का ही आसन होगा
किंतु आज भी कृषक हमारा,
‘प्रेमचंद का होरी’ ही है
आज़ादी की आशा अब भी,
यों लगता है कोरी ही है
‘वह तोड़ती पत्थर’ में जो,
दर्द ‘निराला’ ने था गाया
मजदूरों की हर बस्ती पर,
अब भी है उसका ही साया
बाबा नागार्जुन का चूल्हा,
कई दिनों से ही जलता है
गाँधी का चरखा भी अब तो,
अटक अटक कर ही चलता है
संसद से सड़कों तक देखो,
कौरव-दल का रेलमपेला
चक्रव्यूह में अडिग खड़ा है,
अभिमन्यु फिर आज अकेला
दो वर्ष माह ग्यारह अठारह
दिवस साधना करने वाले
आज़ादी की अलख जगाकर,
मातृभूमि हित मरने वाले
अमर शहीदों की कुर्बानी
हमसे प्रतिपल पूछ रही है
जिसके खातिर जान लुटाई,
क्या ये हिंदुस्तान वही है ?
आओ उनके हर सपने को,
सब मिल कर साकार बनाएं
जाति-पंथ की मार झेलती,
भारत माँ की लाज बचाएं।
तभी हिन्द का मान रहेगा
गुंजित गौरव गान रहेगा
सर्वधर्म सम्मान रहेगा
हर दिल हिंदुस्तान रहेगा।
~डॉ. गजादान चारण “शक्तिसुत”
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