गीत -मोहनसिंहजी रतनू चौपासणी रो-
गिरधरदान रतनू
गीत-सोहणो
मन में नहीं गरब सरब रो मित्र,
छल़ प्रपंचां दूर छतो।
हंसमुख हरस मिलै हूताल़ु,
मोहन रतनू एक मतो।।१
अचल़ा सदन चौपा’णी इल़ पर।
रतनू मुरधर बास रहै।
अपणायत अणपार अनोखी,
वरन धरण पर बात बहै।।२
भ्रष्टाचार विरोधी भाषण,
दत चित मंचां खुलो दियो।
जिम द्रढ बात ढाल़ निज जीवण,
रत्त-सेवा बेदाग रयो।।३
साहित प्रेम हेम रै सरखो,
रचवा कायब नेम रखै।
प्रोत्साहन प्रतिभावा प्रतख,
प्रीत पाल़ जुप दहै पखै।।४
कहणी बात साफ ही कहदे,
नर इम कहणी भेद नहीं।
मसकरियां मनमीत जिकां सूं,
शुद्ध भावां नित करण सही।।५
पाल़ै प्रीत!प्रगट में पाल़ै,
निमख लुकावै भेद नको।
चव हमगीर सीर भल चाऊ,
पुनी हमराहां भीर पको।।६
मन नहीं भेद छोट- मोटां रो,
रीझ समोवड़ भाव रहै।
गिरधरदान काज इण गुणियण,
कवी सोहणो गीत कहै।।७
गिरधरदान रतनू दासोड़ी