March 25, 2023

1857 क्रांतिकारी अजीतसिंह गेलवा

1857 की क्रांति में राजस्थान का अमूल्य योगदान था। वीर तांत्याटोपे को राजस्थान के शेखावाटी में प्रथ्वी सिंह सामोर ने शरण दी थी, उस वक्त बांकीदास आसिया शंकरदान सामोर ने पूरे राजपुताना को अंग्रेजों के विरुद्ध खड़ा करने में जोर लगाया।

इसी कड़ी में वर्तमान राजस्थान बोर्डर पर गुजरात के पंचमहल जिले के कई रजवाड़ों को शस्त्र उठाने को प्रेरित किया कानदास मेहडू व अजितसिंह गेलवा ने।

इतिहास आज उन वीरों के त्याग बलिदान व अदम्य शौर्य को भूला चुका है पर अभी पिछले दिनों गुजरात सरकार ने भव्य स्तर पर आयोजन किया जिसमें इन महापुरुषों को स्मरण किया गया।

डुंगरपुर के धम्बोला के निकट मेरोप गांव में आज भी इनके वंशज इन्हें श्रद्धा से याद करते हैं।ब्रिटिश सरकार ने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता के बाद तुरंत हिंदुस्तान में हथियार पर पाबंदी लगा दी और उनके लिए अलग कानून बनाया। इसकी वजह से क्षत्रियों को हथियार छोड़ने पड़े। इस वक्त लूणावाड़ा के राजकवि अजितसिंह गेलवा ने पंचमहल के क्षत्रियों को एकत्र करके उनको हथियारबंधी कानून का विरोध करने के लिए प्रेरित किया। सब लूणावाड़ा की राज कचहरी में खुल्ली तलवारों के साथ पहुँचे। मगर ब्रिटिश केप्टन के साथ निगाहें मिलते ही सबने अपने शस्त्र छोड़ दिए और मस्तक झुका लिए। सिर्फ़ एक अजितसिंह ने अपनी तलवार नहीं छोड़ी। ब्रिटिश केप्टन आग बबूला हो उठा और उसने अजितसिंह को क़ैद करने का आदेश दिया। मगर अजितसिंह को गिरफ़्तार करने का साहस किसी ने किया नहीं और खुल्ली तलवार लेकर अजितसिंह कचहरी से निकल गए; ब्रितानियों ने उसका गाँव गोकुलपुरा ज़ब्त कर लिया और गिरफ़्तारी से बचने के लिए अजितसिंह को गुजरात छोड़ना पड़ा। इसके बाद इनको डुंगरपुर के महारावल ने धम्बोला के निकट मेरोप गांव जागीर मै दिया व मदद की। इनकी वीरता से प्रभावित कोई कवि ने यथार्थ ही कहा है कि-
“मरूधर जोयो मालवो, आयो नजर अजित;
गोकुलपुरियां गेलवा, थारी राजा हुंडी रीत”

कानदास महेडु एवं अजितसिंह गेलवाने साथ मिलकर पंचमहाल के क्षत्रियों और वनवासियों को स्वातंत्र्य संग्राम में जोड़ा था। इनकी इच्छा तो यह थी कि सशस्त्र क्रांति करके ब्रितानियों को परास्त किया जाए। इन्होंने क्षत्रिय और वनवासी समाज को संगठित करके कुछ सैनिकों को राजस्थान से बुलाया था। हरदासपुर के पास उन क्रांतिकारी सैनिकों का एक दस्ता पहुँचा था। उन्होंने रात को लूणावाड़ा के क़िले पर आक्रमण भी किया, मगर अपरिचित माहौल होने से वह सफल न हुई। मगर वनवासी प्रजा को जिस तरह से उन्होंने स्वतंत्रता के लिए मर मिटने लिए प्रेरित किया उस ज्वाला को बुझाने में ब्रितानियों को बड़ी कठिनाई हुई। वर्षो तक यह आग प्रज्जवलित रही।

*regards*
पंकजसिंह s/o निर्मलसिंह s/o लक्ष्मणसिंह s/o रामसिंह s/o अजितसिंह गेलवा
ठि- मेरोप राजस्थान,

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