March 21, 2023

मूऴजी करमसोत रो मरसियो – लाऴस उमरदानजी रो कह्यौ

गाँव धणारी के राठौड़ मूऴजी करमसोत, जोधपुर महाराजा जसवन्तसिंह द्वितीय के समय नागौर के हाकिम थे, वे बहुत उदारमना एंव काव्य-प्रेमी तथा चारणों का अति-विशिष्ठ सम्मान करने वाले व्यक्ति थे। उन्हे नागौर किले में गड़ा हुआ धन मिला था, अतः उन्होने अपनी दाढी छंटाने के उत्सव पर 151 ऊँट तत्कालीन प्रसिध्द चारण कवियों को भेंट-स्वरूप उनके घर पर भेजे थे। “वीरविनोद” (कर्णपर्व) के रचयिता महाकवि स्वामी गणेशपुरीजी महाराज ने भी इस दानवीर की प्रशंसा में यह दोहा कहा था-

।।दोहा।।
सांगै री कांबऴ सही, हाड दाधिच कहाय।
करहा मूऴ कमंध रा, जातां जुगां न जाय।।

गाँव बिराई के कविया महेसदासजी कृत मूऴजी करमसोत के विषय में रचित डिंगऴ के दो सोरठे पठनीय हैं–

।।सोरठा।।
सोभा सादूऴाह, इऴा चहूं दिस ऊजऴी।
मन मोटे मूऴाह, ऐधूऴा धन ऊधमें।।

इण पऴ मां ऊ दोत, वप रजवट सूं वींटियौ।।
मदछक मन करमोत, अत धन मूऴो ऊधमै।।

वस्तुतः इस उदारमना व्यक्ति ने अपने जीवन में कुल दौ सौ ऊँट तत्कालीन कवि चारण कवियों को भेंट-स्वरुप प्रदान किये थे। इस विषय का ऐक दोहा उपलब्ध है–

।।दोहा।।
टोट कमै थऴवाट रा, करहाले चहुंकूंट।
दीधा पातां दोय सै, मूऴै हेकण मूंठ।।

मूऴजी करमसोत का स्वर्गवास वि. सं. 1958-59 के लगभग हुआ था, तब उमरदान जी लालस ने उस साहित्यनुरागी सज्जन को एक कवित्त के माध्यमसे श्रध्दांजलि अर्पित की थी। इसमें शोकोद्गार के रूपमें कविकी उक्तियाँ “सुघर सिधाय गयो सेहरो सपूती को” व “सूक गयो रत्नाकर कीर्ति करतूती को” बहुत ही अन्यतम व मार्मिक बनाई गई है।

।।कवित्त।।
बांटे वित्त विपुल विथार्यो विरद विश्व बीच,
विमल विलाय गयो वाल विभूती को।
सरनागत-वत्सल सदीव हो सहज सूर,
सुघर सिधाय गयो सेहरो सपूती को।
हूक हिये सज्जन के मूक गयो मित्र मारू,
सूक गयो रत्नाकर कीरति करतूती को।
लूट जस लोट गयो मूऴसिंघ मोट मन,
ओट भट अच्छन की कोट रजपूती को।।

हालांकि उमरदानजी ने मूऴजी करमसोत के भेजे हुए ऊँट को लेने से मना करके सम्मान सहित वापस लौटा दिया था पर गुणग्राहक मोटमनां मूऴजी करमसोत की कीर्ति को सझानें में कविता रूपी रत्नों का जड़ाव जड़नें में ऊंचे दर्जे की जौहरी की कारीगरी करने में कहीं भी कौताही नहीं की थी। धन्य है मूऴजी करमसोत व उनसे भी अधिक धन्य है उमर कवि जिसने इस अमर कर्म को इतिहास मे अमर कर दिया।

~राजेंद्रसिंह कविया संतोषपुरा सीकर

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