
🇮🇳🇮🇳🇮🇳 राष्ट्र ऋणी है इनका 🇮🇳🇮🇳🇮🇳
🌹🌹 ठाकुर जोरावर सिंह बारहट 🌹🌹
🙏🙏🙏 137वीं जयंती 🙏🙏🙏
📝 जन्म : 12 सितम्बर 1883
📝 निधन : 17 अक्तूबर 1939
है अमर शहीदों की पूजा, हर एक राष्ट्र की परंपरा,
इनसे है माँ की कोख धन्य, इनको पाकर है धन्य धरा।
✍ देशप्रेम, साहस और शौर्य ठाकुर जोरावर सिंह बारहट जी को वंश परंपरा के रूप में प्राप्त हुई थी। ठाकुर जोरावर सिंह बारहट जी एक महान क्रान्तिकारी थे, जिन्हें 12 दिसम्बर 1911 को दिल्ली में लॉर्ड हार्डिंग पर बम फेंकने जैसे साहसिक कार्य से प्रसिद्धि मिली।
📝 प्रारंभिक जीवन: ठाकुर जोरावर सिंह बारहट जी का जन्म 12 सितम्बर 1883 को उदयपुर, राजस्थान में हुआ था।
📝 क्रांतिकारी जीवन: जोधपुर में ठाकुर जोरावर सिंह बारहट जी का संपर्क प्रसिद्ध क्रन्तिकारी भाई बालमुकुन्द (जिन्हें दिल्ली षड़यंत्र अभियोग में फांसी हुई थी) से हुआ, जो राजकुमारों के शिक्षक थे। राजकीय सेवा का वैभव पूर्ण जीवन उन्हें क्रांति दल में सम्मिलित होने से नहीं रोक सका। ठाकुर जोरावर सिंह बारहट जी निमाज़ (आरा, बिहार ) के महंत की राजनैतिक हत्याओं (आज़ादी के कार्य के लिए धन जुटाने के लिए लूट) में वे सम्मिलित थे, परन्तु वे फरार हो गए। 03 दिसंबर 1912 को जब ब्रिटिश साम्राज्यवाद की शक्ति के प्रतीक वायसराय लार्ड हार्डिंग्ज़ का भव्य जुलूस जब दिल्ली के चांदनी चौक में पहुंचा तो जोरावर सिंह ने बुर्के से चुपके से हाथ निकाल कर बम फेंक कर वायसराय को रक्त स्नान करा दिया। इस घटना से अंग्रेजों की दुनिया के सभी गुलाम देशों में राजनैतिक भूकंप आ गया था। भारतवासी ब्रिटिश शासन को वरदान के रूप में स्वीकार करते हैं, इस झूठे प्रचार का भवन ढह गया।
📝 जीवन का अंतिम चरण: ठाकुर जोरावर सिंह जी ने पूरे 27 वर्षों तक ब्रिटिश राज को खूब छकाया और लाख कोशिशों के बाद भी गोरे उन्हें छू तक नहीं पाए। वे भेष बदलकर देशभर में आजादी की मशाल जलाते रहे। राजस्थान व मध्यप्रदेश के जंगल-बीहड़ों में भूख प्यास, सर्दी, गर्मी, वर्षा सहते हुए आजादी की अलख जगाते रहे। उन्होंने वेष बदलकर राजस्थान और मालवा मध्य प्रदेश में अमरदास बैरागी बाबा के नाम से आजीवन स्वतंत्रता के लिए कार्य करते रहे। 17 अक्तूबर 1939 को उनका एकलगढ (मंदसौर) में निधन हो गया। वहीं उनकी स्मृति में बनी एक जीर्ण-शीर्ण छतरी हमारी कृतघ्नता और उनकी वीरता की गाथा गा रही है।
✒✒ राकेश कुमार (शिक्षक ✒✒