
।।छंद – मधुभार।।
करुणा निकेत,हरि भगत हेत।
अद्वैत-द्वैत, सुर गण समेत।१
हे वंश हंस।अवतरित अंश।
नाशन नृशंश।दशकंध ध्वंश।।२
रघुनाथ राम। लोचन ललाम।
कोटिश काम।मनहर प्रणाम।।३
मुखहास मंद।कारूण्य कंद।
दशरथ सुनंद।दुखहरण द्वंद।।४
वर वदन चंद।केहरी स्कंध।
जय जगतवंद्य।छल हरण छदं।।५
प्रभु वसन पीत।पावन पुनीत।
तूं भगत मीत।किम कथूं क्रीत।।६
विद्रुम प्रवाल, मणि-कंठ माल।
राजत रसाल, भल जटाभाल।।७
प्रभु प्रणतपाल।दुखहर दयाल।
निरखत निहाल। करियो कृपाल।।८
सरसिज सुश्याम।तन है तमाम।
प्रभु पाहिमाम। मोहि राम राम।।९
नित भजत नाम। नर हो निकाम।
तिन के तमाम। करता सुकाम।।१०
अभिराम आप। छबि अमित छाप।।
सिय वाम संग । रघुराय रंग।।११
विपिनं अवास, सुर संत खास।
तूं असुर त्रास, सिय हिव निवास।।१२
सर चाप संग, अभिराम अंग।
भव धनुष भंग, रघुनंद रंग।।१३
नव कंज नैन, मुख मधुर बैन।
सुषमा सु ऐन, सुख सकल दैन।।१४
रमणीय रूप, अतिशय अनूप।
विष्णु स्वरूप,भुवि व्योम भूप।।१५
बाहु प्रलंब!,करुणा कदंब।
सुर सौख्य स्तंभ,ओ!अवध अंब।।१६
घट घडण घाट! निरगुन निराट।
विष्णु विराट! हरि हेत हाट!१७
नरपत आसिया “वैतालिक”
बहुत ही सुन्दर छन्द ,बथाई नरपत सा
शुभेच्छु जयसिंह सिंढायच मण्डा
राजसमन्द राजस्थान