क्या लिखूं शहादत पर तेरी, वो ताकत कलम कहाँ रखती।
ना तुझसी वीर प्रतापी है ना तुझ सी राष्ट्र राग भक्ति।
ना तुझसा केहर पितु मिला, ना माणक माँ सी महतारी।
ना जोरावर सा काका ही, ना धर उजळी सम मेवारी।
वो धन्य हुवे साथी तेरे, जो बाल पने के संगी थे।
खेले कूदे तेरे संग में, सपने जिनके बहुरंगी थे।
पर तेरे सपने मातृभूमि के लिए ही तुमने पाले थे।
फूट पड़े अंदर अंदर, जो घाव गुलामी वाले थे।
अपनी माता को रोता रख, मुस्कान दे गया हर माँ को।
भारत माता पर न्यौछावर, कर गया लाल अपनी जां को।
खेलकूद की आयु में, तुम हथियारों से खेल गए।
विद्यालय जब जाते हैं सब, तुम उस आयु में जेल गए।
विधना ने किस माटी से तेरा,जिगर बनाया था प्यारे।
जिसको ना डर ना भय कोई, जो हारे भी तो क्यों हारे।
हे भारत माँ के अमर पूत, कुर्बानी तेरी न्यारी थी।
भरपूर जवानी में झूझा, जब घर बसने की बारी थी।
भूले न भूल सके कोई, गाथा तेरी गर्वीली है।
तुम उस कुल के कुलभूषण हो, जिसने दहलाई दिल्ली है।
कैसे होंगे हम कर्जमुक्त, तुमने जो कर्जा दे डाला।
आजादी हमको दी तुमने, खुद हो शहीद केहर लाला।
भारत माता का हर वासी, भूलेगा कैसे कुर्बानी।
तुम हंसते हंसते फना हुवे, आँखों में बिना लिए पानी।
वन्दन तेरा अभिनंदन भी, हर भारतवासी करता है।
जो भारत पर कुर्बान हुआ, वो वीर अमर कब मरता है।
जगदीश बिठू
सिंहथल, बीकानेर