“अमर सहीद कुंवर प्रतापसिंह बारहठ”
कै सोनलियै आखरां वीर रो
मांडू विरद कहाणी में
बो हँसतौ हँसतौ प्राण दिया
आजादी री अगवाणी में
आभे में तारा ऊग रिया
रातङली पांव पसारे ही |
महलां में सूते निज सुत रो
माँ माणक रूप निहारे ही |
नैणां सूं नींद उचटगी ही
बातां कीं सोच विचारे ही |
मन ही मन विचलित मावङली
बेटे री निजर उतारे ही ||
अरे थुथकारो नाखै ही माँ
थूं नाम कमा जिंदगाणी में
सूरज सो तेज बदन जिणरो
केहर काळजियो लागे हो |
पण ऊमर रो अंदाज कर्यां
नान्हो बाळकियो लागे हो |
माता रे मन री बातां रो
बेटो पारखियो लागे हो |
बो सिंघणी रो जायोङो हो
साचो नाहरियो लागे हो ||
अरे छेड्यां काळै नाग सरीखौ
रणबंकौ साच्याणी में
परताप दिनूंगे पैली उठ
रज ली माता रे पांवां री |
नैणां रे समन्द उफण आई
ओळ्यूं अंतस रे भावां री |
छिन में ही झाळ उठी हिवङे
भारत माता रे घावां री |
झट चाल पङ्यो लेयर सागै
आसीसां लाखूं मांवां री ||
धोती रे औळावै माँ सूं
दो रुपिया लिया निसाणी में
चारण कुळ रे कुल़दीपक रो
तप रासबिहारी भांप लियो |
काके रे साथ भतीजे नैं
बम फैंकण सारु काज दियो |
साखी धर चांनण चौक जठे
रैली पर गौळो दाग दियो |
अंगरेज़ हुकूमत कांप उठी
हाॅर्डिंग डरतो झट भाग गियो ||
बो भारत माँ री जै बोले
हो इन्कलाब री वाणी में
जद जैळ हुई तो हरख उठ्यो
फांसी रे फंदे झूलण नैं |
ज्यूं प्राण पीव सूं मिलणे रो
घण कोड हुवे है दुल्हण नैं |
केसर रे लाडेसर माथे
हो मोद जमीं रे कण कण नैं |
फूलां सूं लदी सहादत भी
साम्ही बैठी ही बण ठण नैं ||
मेवाड़ धरा रे मोबी री
ही धाक जमी हिंदवाणी में
घावां पर घाव दिया गौरां
बोल्या थारी माँ रोवे है |
थारे खातर रोटी छोडी
बा रात-रात नीं सोवे है |
साथ्यां रो भेद बता दे जे
माता सूं मिलणो चावे है |
थनें बरी करांला बेगो ही
क्यूँ माँ नैं मूर्ख सतावे है ||
हामळ भर ले सुख पावेलौ
नही तो रेलौ हाणी में
परताप आखरी क्षण बोल्यो
म्हारी माता नैं रोवण दो
रत्ती भर चिंता नीं उण री
भूखी सोवे तो सोवण दो
करणी रे कुळ रो वंशज हूँ
कुळ मरजादा नहीं खोवण दूं
म्हूं एक मात रे बदळे नीं
लाखूं मांवां ने रोवण दूं
थै चाहे लटका दो फाँसी
चाहे तो दीज्यो घाणी में
इतरो कह आँख मूंद लीनी
लाखूं आंखङल्यां भर आई |
पितु केसर रो सीनो फूल्यो
काके री सांस संवर आई |
आ खबर सुणी जद मावङली
माणक री छाती झर आई |
खुद आज बधाई देवण नैं
भारत माँ बारठ घर आई ||
कै धूजी धरा हिमाल़ै पिघल्यौ
नदियां डूबी पाणी में
[email protected]प्रहलादसिंह “झोरड़ा”