March 20, 2023

बूढी माँ रे काळजियै री’- प्रहलादसिंह झोरड़ा

मन री बातां जाणी के, जाणी तो अणजाणी के
बूढी माँ रे काळजियै री पीड़ा कदै पिछाणी के 

तूं जद भी घर सूं निकळै तो कितरा देव मनावै बा
झुळक झुळक बाटड़ली जोवै, पल भर चैन न पावै बा
पण तूं पाछौ आयां बीं सूं बोले मीठी वाणी के
मन री बातां जाणी के, जाणी तो अणजाणी के
बूढी माँ रे काळजियै री पीड़ा कदै पिछाणी के ।।

थारै चेहरै रा भावां नैं परखै छांनै ओलै बा
खुद रो दरद छुपावै मन में,था सूं हँसकर बोलै बा 
बीं रे नैणां में निरख्यौ तूं गंगाजी रो पाणी के 
मन री बातां जाणी के,जाणी तो अणजाणी के
बूढी माँ रे काळजियै री पीड़ा कदै पिछाणी के ।।

बीं रे बैठां थारै घर री शोभा साख सवाई है 
बीं रे हाथां में ही थारी बरगत करै कमाई है
बीं री ही पुण्याई थारी जिन्दगाणी, समझाणी के 
मन री बातां जाणी के,जाणी तो अणजाणी के
बूढी माँ रे काळजियै री पीड़ा कदै पिछाणी के ।।

समझै तो सारा तीरथ है बीं रे पावन चरणां में
जे बीं रो मन राख न पावै ,कसर नही है मरणां में
बा ही गीता बा रामायण बाकी कथा कहाणी के 
मन री बातां जाणी के,जाणी तो अणजाणी के
बूढी माँ रे काळजियै री पीड़ा कदै पिछाणी के ।।

©प्रहलादसिंह झोरड़ा

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