April 2, 2023

प्रताप की बलिदान कहानी – मनुज देपावत (देशनोक)

दीप शिखा के परवाने की यह बलिदान कहानी है !
यह बात सभी ने जानी है !

अत्याचारी अन्यायी ने अन्याय किया भारत भू पर।
डोली थी डगमग वसुंधरा, वह काँप उठा ऊपर अम्बर !!

माता के बँधन कसे गए, झनझना उठी थी हथकड़ियाँ।
बज उठी बेड़ियाँ पैरों की, लग गई आँसुओं की झड़ियाँ।।

रोटी जननी को दानव ने कारागृह में कर दिया बंद।
रुक गए गीत आज़ादी के, रुक गए कवि के प्रलय छंद।।

हँस उठा ब्रिटिश साम्राज्यवाद, दोनों का उसने किया नाश।
भारत के कोने-कोने में गूँजा था जिसका अट्टहास।।

सुन आर्यभूमि का आर्तनाद, उठ गए देश के दीवाने।
जल उठी काल लपटें कराल, आ गए शमा पर परवाने।।

चुप रह ना सका सौदा प्रताप, जग उठा जाति का स्वाभिमान।
जगती तल के इतिहासों में, गूँजे थे जिसके कीर्ति-गान।।

आखिर चारण का बच्चा था, वह वीर “केसरी” का सपूत।
पद दलित देश की धरती पर, वह उतरा बनकर क्रांतिदूत।।

उसने “करणी” का नाम लिया, उसने माता का नाम लिया।
कवि के बच्चे के मुक्त कंठ ने इन्क़लाब का गान किया।।

वह देख रहा था दानव को, निर्दोषों पर गिर रही गाज।
वह देख रहा था बहनों की, जो खुले आम लुट रही लाज।।

सुनता था अपने भारत में, असहाय नारियों का क्रंदन।
जब हँसी-ख़ुशी की ध्वनियों से था गूँज रहा उनका लन्दन।।

वह सह न सका, उठ खड़ा हुआ, उन दहक रहे अंगारों में।
शासक के अत्याचारों में, उसकी तीखी तलवारों में।।

उसके उन्मादक गीतों से, जग उठी जेल की दीवारें।
वह काँप उठा अत्याचारी, थी बंद हो गई हुंकारें।।

कुछ सिहर उठा था सिंहासन, था उदित हो गया क्रुद्ध श्राप।
उस आन्दोलन की ज्वाला से, पापी का जलने लगा पाप।।

पर अत्याचारी शासक ने धोखे से उसको पकड़ लिया।
दहाड़ते सिंह के श्रावक को, था ज़ंजीरों में जकड़ लिया।।

वह क़ैदी था पर झुका नहीं, था अडिग रहा देशाभिमान।
वह बंदी था पर झुका नहीं, क्या हुई भावनाएँ ग़ुलाम।।

रोती है अब माता तेरी, क्या होगा उसके सपनों का।
पूछा अँग्रेज़ों ने उससे, बस, नाम बता दे अपनों का।।

रोती है गर माता मेरी, तो मैं सहने को हूँ तत्पर।
रोएँगी लाखों माताएँ, सह सकता ऐसा मैं क्योंकर।।

चल पड़ा दनुज का दमन चक्र, उसकी नृशंसता कठिन-क्रूर।
पिस गई मनुज की मानवता, होकर पाँवों में चूर-चूर।।

कारा की कठिन यातना से, कट गया गात उसका कोमल।
अत्याचारों की आग जला वह पुष्प गया ज्वाला में जल।।

उसके ज्वलंत अरमानों का, हो गया भव्य प्रासाद ध्वस्त।
हो गया जेल के आँगन में, वह “सौदा” कुल का सूर्य अस्त।।

खो गया देश का वह वैभव, माता ने खोया था सपूत।
था मरा नहीं वह अमर हुआ, चिर स्मरणीय ! वह क्रांति-दूत।।

फिर एक दिवस ऐसा होगा, चारण-वाणी की आग जलेगी।
सकल चिताएँ भभक उठेंगी, उस शहीद की राख जलेगी।।

तब होगा प्रतिकार हमारा, मन की साध मिटानी है।
दीप शिखा के परवाने की यह बलिदान कहानी है !!

यह बात सभी ने जानी है!
यह बात सभी ने जानी है!

~कवि स्व. मनुज देपावत (देशनोक)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!
%d bloggers like this: