March 20, 2023

लोहित मसि में कलम डुबाकर कवि तुम प्रलय छंद लिख डालो- कवि मनुज देपावत (देशनोक)

लोहित मसि में कलम डुबाकर कवि तुम प्रलय छंद लिख डालो।।

अम्बर के नीलम प्याले में ढली रात मानिक मदिरा-सी।
कर जग को बेहोश चाँदनी बिखर गई मदमस्त सुरा-सी।
तुमने उस मादक मस्ती के मधुमय गीत बहुत लिख डाले।
किन्तु कभी क्या देखे तुमने वसुंधरा के उर के छाले।
तुम इन पीप भरे छालों में रस का अनुसन्धान कर रहे।
मौत यहाँ पर नाच रही तुम परियों का आव्हान कर रहे।
तुम निज सपनों की साकी से फेनिल मधु का पान माँगते।
माँग रही बलिदान धरित्री तुम जीवन वरदान माँगते।
तुम वसुधा के रिक्त पात्र में मत विष तिक्त हलाहल डालो।
लोहित मसि में कलम डुबाकर कवि तुम प्रलय छंद लिख डालो।।

नीरद के निर्मल पंखो पर सपनों का संसार बसाते।
तुम सतरंगी इन्द्रधनुष पर निज भावों के सुमन सजाते।
सिसक रही है धरती नीचे तुम तारों का हास लिख रहे।
तुम पतझड़ की साँय-साँय में फूलों का मधुमास लिख रहे।
किन्तु लेखनी काँप उठेगी जब नर की चीत्कार सुनोगे।
नारी के बुझते अंतर की जब तुम करुण पुकार सुनोगे।
देखो वह शैशव पिसता है शोषण के तीखे आरों में।
देखो वह यौवन बिकता है गली-गली में बाज़ारों में।
अतः कल्पना मेघ परी को तुम धरती के पास बुला लो।
लोहित मसि में कलम डुबाकर कवि तुम प्रलय छंद लिख डालो।।

जीर्ण पुरातन के विध्वंसक तुम नवीन युग के सृष्टा हो।
सदियों के पथ विचलित मानव के अपूर्व तुम पथ द्रष्टा हो।
तुम विलासिता के इस गायक कवि को थपकी मार सुला दो।
चिर निद्रित मन के मानव को कवि तुम कोड़े मार जगा दो।
जिससे वह नव जाग्रत मानव अन्यायों की नींव हिला दे।
भू लुंठित इन खंडहरों पर मानवता के भवन बना दे।
जीवन का अभिशाप एक हो जीवन का वरदान एक हो।
धर्म एक ईमान एक हो मानव का वरदान एक हो।
तुम समता के सुमधुर स्वर पर विप्लव का आव्हान बुला लो।
लोहित मसि में कलम डुबाकर कवि तुम प्रलय छंद लिख डालो।।

~कवि स्व. मनुज देपावत (देशनोक)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!
%d bloggers like this: