प्रत्यक्ष दिखावा अप्रत्यक्ष विडम्बना….
चारण समाज में सामाजिक सजगता उद्देश्यों की पूर्ति एवं प्रदर्शन हेतु वर्तमान में दो बेमेल धाराएँ एकात्मक रूप से अग्रसर होती हुई नजर आ रही है एक वे लोग है जो हाँ में हाँ कहते है, दूसरे वे लोग है जो ना में भी हाँ प्रस्तुत करते है। दैवीय प्रतिनिधित्व एवं राष्ट्रीय प्रतिबद्धता चारण समाज की विश्व स्तरीय पहचान है। सर्वकालिक सत्यता चारण वर्ग व्यक्तित्व की अमिट साख है जिसकी आस्था में श्रीराम भक्त भगवान श्री हनुमानजी महाराज ने लंका दहन पश्चात सीता माता के जीवन अस्तित्व की जाहिर आशंका पर एक चारण की सकारात्मक आकाशवाणी को सुन कर सीता माता के जीवन सुनिश्चितता का समाचार लेकर श्रीराम के समक्ष वापिस लौटे थे। आदि शक्ति जगदीश्वरी श्रीहिंगलाज माता, सप्तशक्ति अवतार माता श्री आवड़ा, महामाया श्रीकरणीजी महाराज, समाज सुधार सर्वहित सुजान सगत आई श्रीसोनल माताजी आदि असंख्य दैवीय अलख द्वारा प्रदत्त सुशिक्षाओं की पालना से दूर, उनकी अवमानना के चलते आज चारण वर्ण सामाजिक उन्नयन के लिहाज से काफी दूरस्थ होता हुआ प्रतीत हो रहा है। विजातीय विवाह व्यक्तित्व को सम्मान देना, टीका लेना, टीका लेकर के नहीं लेने का ढोंग करना, दहेज लेना, सामाजिक एवं पारिवारिक आयोजनों में मांस-मदिरा का प्रयोग करना, राष्ट्रीय नेतृत्व चयन अवसरों पर लोकतांत्रिक ढकोसले की आड़ में राष्ट्र-नीति से परे खड़े हो कर असहज प्रलाप करना आदि समस्त कारज भावी सुयशवादी देव चारण पीढ़ी की अभिलाषा से चारण समाज को अत्यधिक निराश करते है। वर्तमान चारण समाज में कुछ अपवाद व्यक्तित्वों को छोड़ कर ना तो समाज नीति है और ना ही राष्ट्रीय स्तर का सर्व स्वीकार्य समाज नेतृत्व है। अब देव जगृति भी उन नामी और पदवी समाज अग्रणियों से संभव नहीं है जिनमें सत्यता और सात्विकता का सर्वथा अभाव है। एक किंवदंती स्पष्ट है कि आज चारण समाज को खतरा पढ़े-लिखे चारणों से ज्यादा है बनिस्पत अशिक्षित चारणों से। क्योंकि सुशिक्षित एवं सक्षम चारणों ने चारण पहचान से परे जा कर एक अपनी सुविधाजनक समानान्तर चारण संस्कृति का विकास जो कर लिया है। जहाँ केवल वाह-वाही चलती है और हाँ में हाँ कही जाती है। धन्य है ऐसी नवचेतना।
आलेख एवं प्रस्तुतिकरण
करणीदान चारण पूगल
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