श्री जोमां मां रो छंद
रचना-–राजेन्द्र दान विठू(कवि राजन) झणकली
आखर दीजो ऊजळा गुण मां थारा गाय
कथूं मात तव कीरती रसना बसों सुरराय।।
चित मो कीजो चांनणो भजूं मात भुजलंब
सुख संपत समपो सदा जोमां मात जगदम्ब।।
कथूं मात तव कीरती रसना बसों सुरराय।।
चित मो कीजो चांनणो भजूं मात भुजलंब
सुख संपत समपो सदा जोमां मात जगदम्ब।।
छंद सारसी
धन धाट धरणी भाग भरणी आप परणी आविया
कुळ देथ करणी सगत शरणी पाप हरणी पाविया
दुख राड़ दळणी जगत जरणी आप चरणी आय ने
कर जोड़ सब जन भजो निश दिन मात जोमां माय ने जी,,,,,,,1
धन धाट धरणी भाग भरणी आप परणी आविया
कुळ देथ करणी सगत शरणी पाप हरणी पाविया
दुख राड़ दळणी जगत जरणी आप चरणी आय ने
कर जोड़ सब जन भजो निश दिन मात जोमां माय ने जी,,,,,,,1
जोगण जळेची हड़वेची सुंदरेची धीवड़ी
तूँ ही रवेची नागणेची अमरेची पीवड़ी
सपने सरेची बागणेची चारणेची चाय ने
कर जोड़ सब जन भजो निश दिन मात जोमां माय ने जी,,,,,,2
राहिय सारण कुळ चारण ढोर पाळण ढाबिया
गांवे गुवाड़ण कूम्प पावण मात कारण आविया
धन तुझ चारण काज सारण मान राखण स्याय ने
कर जोड सब जन भजो निश दिन मात जोमां माय ने जी,,,,,,3
गांवे गुवाड़ण कूम्प पावण मात कारण आविया
धन तुझ चारण काज सारण मान राखण स्याय ने
कर जोड सब जन भजो निश दिन मात जोमां माय ने जी,,,,,,3
बीताय सुख रे दिवस अब रे भाल मुल्ला भूलिया
उतपात असुरे जोर जबरे तुरक तुल्ला तूलिया
खोटाय खोबा भरया सब रे सिंग सालम जाय ने
कर जोड़ सब जन भजो निश दिन मात जोमां माय ने जी,,,,4
मनाह कीधो कूम्प लीधो जाय जबरों जावतो
सिराय सकलो जाय ऊंधो पाय खबरों पावतों
जोमांय बीजो रूप कीधो अंग होमण आय ने
कर जोड़ सब जन भजो निश दिन मात जोमां माय ने जी,,,,,5
एकोनविशे चेत बीजे जमर जोमां जालिया
सकलान पूगी पोर तीजे भुवन मौतां भालिया
जयकार मुख सूं घोर गूंजे देव सरगां दाय ने
कर जोड़ सब जन भजो निश दिन मात जोमा माय ने जी,,,6
समरण करतों समय सगती मदद करती मावड़ी
हरजन भगतों काज सरती तुरत आती ताकड़ी
धज मन धरतों ध्यान करती लार लगती लाय ने
कर जोड़ सबजन भजो निश दिन मात जोमां माय ने जी,,,7
हरिसिंह मानी देव जानी राज दरजा पाविया
अखूट पानी कूम्प आनी साद परचा साविया
विठू बखानी शरण पानी मात राजन आय ने
कर जोड़ सबजन भजो निश दिन मात जोमां माय ने जी,,,,,8
छपय
जोमां मात जगदम्ब परचा दिना पातां
जोमां मात जगदम्ब शाय किनी सुपाता
जोमां मात जगदम्ब कुबुध मिटावण काट
जोमां मात जगदम्ब धरा ऊजाळण धाट।
समरो जोमां मात सदा आवे मात अवलंब
कर जोड़ कवि राजन कहे जयकारा मां जगदम्ब।।
जोमां मात जगदम्ब परचा दिना पातां
जोमां मात जगदम्ब शाय किनी सुपाता
जोमां मात जगदम्ब कुबुध मिटावण काट
जोमां मात जगदम्ब धरा ऊजाळण धाट।
समरो जोमां मात सदा आवे मात अवलंब
कर जोड़ कवि राजन कहे जयकारा मां जगदम्ब।।
कर्ता कवि राजन झणकली