March 21, 2023

श्री गंगा मैया रो छंद- कवि राजन झणकली कृत

श्री गंगा मैया रो छंद
सुरसती उर रहो सदा दीजो आखर दान।
सुंदर रचना कर सकूं धरूं गंग चित ध्यान।।
शिव जटा पर रही सदा प्रकटे नीर पवित
पाप हरे पूण्य करे सदाय जळ अति शीत।
नहायो पाप झड़े नित हर तन कंचण होय
पंथ बैकुंठ प्रदायनी तारे भव जग तोय।।
छंद त्रिभंगी
गम दुख हर गंगे सरब सुचंगे पावन अंगे परचाली
अवनी पथ अंगे शिव सर संगे जट हर जंगे जबराली
शेलां पथ संगे करत किलंगे हर हर गंगे मात नमो
तारण भव तरणी पापों हरणी निकलंक 
करणी मात नमो जिय नम हर गंगे मात नमो,,,,,1

सरगां सूं चाली गौमुख वाली अजब निनाली अवतारी
अति वेग उताली जळ बळ वाली करत किलाली किरतारी
निरमळ नीराली बहु रुपाली सब सुख वाली साथ समो
तारण भव तरणी पापों हरणी निकलंक 
करणी मात नमो जिय नम हर गंगे मात नमो,,,,,2

परचा जग पावण जन मन भावण आवण जावण भगत अति
निरमळ जळ नावण हिंय हरसावण दुरमत जावण मगज मति
मन मेल मिटावण सूद बुद्ध आवण निकलंक थावण आप नमो
तारण भव तरणी पापों हरणी निकलंक
 
करणी मात नमो जिय नम हर गंगे मात नमो,,,,3

माने हद भारी जनमन सारी कीरत थारी किरतारी
शंकर जट धारी तूँ लिपटारी अवनी आरी अवतारी
सागर सत धारी वंश उद्धारी धन धन थारी धाम धमो
तारण भव तरणी पापों हरणी निकलंक 
करणी मात नमो जिय नम हर गंगे मात नमो,,,,4

ओगत गत जावे मुगती पावे तारण आवे फूल तरे
सो सदगति पावे दीप जलावे पुषप तिरावे पांव परे
वो हर सुख आवे मोज मनावे जळ बरतावे जदे जमो
तारण भव तरणी पापों हरणी निकलंक 
करणी माता नमो जिय नम हर गंगे मात नमो,,,,,5

तव नीर नहाया निशदिन आयां कंचन कायां आप करे
जंजाळा जायां निरमळ थायाँ पुण्य कहाया पाप हरे
नव ज्योत जगाया शुद्ध अपनाया तिमिर मिटाया तमे तमो
तारण भव तरणी पापों हरणी निकलंक 
करणी मात नमो जिय नम हर गंगे मात नमो,,,,,6

हिन्द सर सूं हाली करत किलाली जल बल वाली जबराली
शेलां पथ वाली स्वच्छ निराली प्रबल वेगाली परचाली
वसुधा रखवाली जद सूं हाली करत निहाली मात नमो
तारण भव तरणी पापों हरणी निकलंक
करणी मात नमो जिय नम हर गंगे मात नमो,,,,,7

सरवत सुख दाता भाग्य विधाता मुक्ति दाता मतवाली
जनधन नहाता पापम हरता किरपा करता किरपाली
कवि राजन कहता शरणम आता दोष मिटाता सगत समो
तारण भव तरणी पापों हरणी निकलंक 
करणी मात नमो जिय नम हर गंगे मात नमो,,,,8
छपय
नहायों गंगा नीर कंचन मन काया करे।
नहायों गंगा नीर जाळ जंजाळ सब झरे
नहायों गंगा नीर ओगत सदगति आवे
नहायों गंगा नीर पाप पीड़ा मिट जावे।।
शंकर जटा रही सदा पृथ्वी मिटावण पाप।
मधुकर सुत राजन कहे सरवत मेटो संताप।।

कवि राजन झणकली कृत

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