करावाडा जागीर के प्रतापी शासक चारणकुल भुषण ठाकुर साहब जगतसिंहजी सौदा बारहठ
एक बार उदयपुर महाराणा मेवाङ के समारोह में सभी राजपुत तथा चारण सिरदारों को आमंत्रित किया गया।उस वक्त एक दरबारी द्वारा चारण सिरदारों पर टिप्पणी कि गई। उसके प्रति उतर में चारण गुलाबसिंह ने भरे दरबार मे यह दोहा कहा :-
आँख मुरारी आशिया,श्यामल है भुजदन्ङ।
सौदो जगतो शिश है,गुलबो गुल्ल री गंध।।
सौदो जगतो शिश है,गुलबो गुल्ल री गंध।।
ठाकुर साहब जगतसिंह जी सौदा ये ङुगरपुर महारावल उदयसिंहजी के प्रतिष्ठीत दरबारीयों की श्रैणी मे सर्वप्रथम बैठे जाने वाले उमराव सिरदार थे। महारावल उदयसिंह ने इन्हैं ताजिम ओर बैठक, सोना नवशी जागीर,दोवडी ताजिम सन्मान, हाथी घोडा ,पालकी तथा चंवर का सन्मान और ग्यारह गाँव का पट्टा शासन जागीर के स्वरुप मे प्रदान कर अन्य दरबारी कुरब कायदे प्रदान कीए। वे एक प्रखर राजनीतीग्य थे और डुंगरपुर महारावल के अंगत सलाहकार के पद से विभुषीत थे। महारावल कोई भी कार्य ईनकी सलाह लेकर करते थे। ईससे अतीरीक्त वे एक कुशल योद्घा भी थे।
मेवाङ के प्रधानमंत्री महामहोपाध्याय कविराजा चारण श्यामलदासजी दधवाङिया द्वारा लिखित महान ग्रंथ वीरविनोद मे ईनका उल्लेख है वागङ रियासत के चारण सिरदारों के ठिकानो मे से पहले दरजे के जागीरदार थे।
वि.स.1713 कार्तिक 5 को रावल खुमाणसिंहजी ने हाथीजी सौदा को हरोली नामक गाँव ताम्रपत्र सहीत देने का उल्लेख कई वर्षो पहले दर्ज है।
ठाकुर साहब जगतसिंह जी* के पुर्व कि पीढी हरोली (सारेली) गाँव मे रहा करती थी।एंव उनकेपूर्वज
ठा.जोरावरसिंह सौदा ईसी गाँव के जागीरदार थे , जिनको ठाकुर जोरजी नाम से जाना जाता था। वे युद्ध मे पराक्रमता से लडते लडते विरगती को प्राप्त होने के कारण उनकी धर्मपत्नी जीते जी सती हुऐ। जिनका स्थान(स्मारक) आज भी हरोली(सारेली) ग्राम मे है। जहा आदिवासी लोग आज भी पुजा अर्चना करते है। ठाकुर जोरावरसिंह सौदा को, झुझार जी बावजी के नाम से आज भी पुजा जाता है। ईनका भी स्थानक है।दोनो स्थान से कुछ दुरी पर कुलदैवी खोङीयार का मंदिर भी स्थित है।
ठा.जोरावरसिंह सौदा ईसी गाँव के जागीरदार थे , जिनको ठाकुर जोरजी नाम से जाना जाता था। वे युद्ध मे पराक्रमता से लडते लडते विरगती को प्राप्त होने के कारण उनकी धर्मपत्नी जीते जी सती हुऐ। जिनका स्थान(स्मारक) आज भी हरोली(सारेली) ग्राम मे है। जहा आदिवासी लोग आज भी पुजा अर्चना करते है। ठाकुर जोरावरसिंह सौदा को, झुझार जी बावजी के नाम से आज भी पुजा जाता है। ईनका भी स्थानक है।दोनो स्थान से कुछ दुरी पर कुलदैवी खोङीयार का मंदिर भी स्थित है।
ठा.जोरावरसिंह सौदा के पश्चात कुशालसिंह सौदा को करावाङा गाँव वि.स.1791 चैत्र शुदी 4 को शासन जागीर स्वरुप प्रदान कीया गया। कुशालसिंह के पुत्र एवं जगत सिंह के पिता ठाकुर पदमसिंह जी सौदा अत्यधिक तेज व लङाकु प्रवृती के योद्घा होने के कारण दरबार मे ईन्हे आदिवासियों की टुकङी सौपीं गई थी। जो पदम पल्लटन के नाम से विख्यात हुई थी। मालवा से वागङ आये आक्रमणकारियों को सुरक्षा हेतु ङुँगरपुर रावल ने महारावल जग्मालसिहं को बाँसवाङा सुरक्षा हेतु भेजा उनके साथ कुशालसिंह जी सौदा के छोटे भाई समरथसिंहजी सौदा को भी साथ ले गये और विरता पूर्वक युद्ध कीया था तत्पश्चात समरथसिंह जी को उनकी विरता की एवज मे डुंगरपुर रीयासत से तली नामक ग्राम जागीर मे मीला जीनके वंशज वर्तमान मे तली ग्राम मे स्थित है।
ठाकुर जगत सिंह जी ने करावाडा जागीर मे एक रजवाडी हवेली का निर्माण करवाया था, जो आज भी करावाडा में विधमान है।उदय विलास पेलेस की स्थापना करावाडा की हवेली बनने के पश्चात की गई थी। महारावल साहब द्वारा हवेली की निर्माण जानकारी लेने हेतु दरबार से बैडसा ठाकुर साहब को जायजा लेने के लिए भेजा और जिन्होने दरबार मे दोहे द्वारा उक्त व्यक्तव्य कहा :-
दाँता तल उंगली दबे,वाणी बने अबोल,
नयनं ना थाके निरखता,वा जगता वाली पौल।
नयनं ना थाके निरखता,वा जगता वाली पौल।
संदर्भ ग्रंथ:-
>चारण दीगदर्शन
>रावजी की बही
>विरविनोद
>रावजी की बही
>विरविनोद
जयपालसिंह (जीगर बऩ्ना) थेरासणा