मारवाड़ राज्य के धुंधल गांव के एक सीरवी किसान के खेत में एक बालश्रमिक फसल में सिंचाई कर रहा था पर उस बालक से सिंचाई में प्रयुक्त हो रही रेत की कच्ची नाली टूटने से नाली के दोनों और फैला पानी रुक नहीं पाया तब किसान ने उस बाल श्रमिक पर क्रोधित होकर क्रूरता की सारी हदें पार करते हुए उसे टूटी नाली में लिटा दिया और उस पर मिट्टी डालकर पानी का फैलाव रोक अपनी फसल की सिंचाई करने लगा।
दुरसाजी को प्राप्त सांसण में जागीर:
धुंदला, नातल कुडी, पांचेटिया, जसवन्तपुरा, गोदावास, हिंगोला खूर्द, लुंगिया, पेशुआ, झांखर, साल, ऊण्ड, दागला, वराल, शेरूवा, पेरूआ, रायपुरिया, डूठारिया, कांगडी, तासोल, सिसोदा। इनके अलावा बीकानेर के राजा रायसिंह ने इनको चार गांव सांसण में दिये थे जिनकी पुष्टि बीकानेर के इतिहास से होती है।
करोड पसाव पुरस्कार:
◆१करोड पसाव रायसिंह जी बीकानेर ने
◆१ करोड पसाव राव सूरताण सिरोही ने
◆१ करोड पसाव मानसिह आमेर ने
◆१ करोड पसाव महाराणा अमरसिंह मेवाड ने
◆१ करोड पसाव महाराजा गजसिंह मारवाड ने
◆१ करोड पसाव जाम सत्ता ने
◆३ करोड पसाव अकबर बादशाह ने दिये जिन्हे जनकल्याण में खर्च किये अर्थात् तालाबो, कुओ, बावडियों इत्यादि के निर्माण में व्यय किया।
लाख पसाव पुरस्कार:
दुरसाजी को कई लाख पसाव मिले जिन्हे सिरोही महाराव राजसिंह, अखेराजजी, मुगल सेनापति मोहबत खान व बैराम खान से प्राप्त हुए।
आउवा धरणा के अग्रज
दुरसाजी आढा के नेतृत्व में आउवा का धरणा वि स १६४३ के चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में हुआ। इनके धरणे में इनके मुख्य सहयोगी अक्खाजी, शंकरजी बारहठ, लक्खाजी आदि समकालीन चारण थे सबसे ज्यादा चवालीस खिडिया गोत्र के चारणों ने शहादत दी। दुरसाजी आढा ने गले में कटारी खाई। धागा करने के बाद भी देवी कृपा से वे बच गये। उन्होने मोटा राजा उदयसिंह को दिल्ली के दरबार में सरेआम लज्जित किया। गले में कटारी का घाव खाने से दुरसाजी के गले की आवाज विकलांग हो गई। इस पर अकबर ने पूछा कि आपकी आवाज कैसे बिगड गई? तब उन्होने कहा कि कुत्ते ने काट लिया था इतना बडा कुत्ता कैसे हो सकता है तो उन्होने मोटा राजा की तरफ संकेत किया।
पेशुआ
2. बालेश्वरी माता मंदिर
3. कनको दे सती स्मारक
4. पेशुआ का शासन थडा
2. झांकर का शासन थडा
2. शिव मंदिर
3. दुरसश्याम मंदिर
4. कालिया महल
5. धोलिया महल
2. हिगोंला का तालाब
सिरोही के राव सुरताणसिंह की प्रशंसा में –
आगरा के शाही दरबार में एक मदमस्त हाथी को कटार से मारने वाले वीर रतनसिंह राठौड़ (जोधा) की प्रशंसा में कवि ने कहा-
राणा ने अपने घोडों पर दाग नही लगने दिया (बादशाह की अधीनता स्वीकार करने वालों के घोडों को दागा जाता था) उसकी पगड़ी किसी के सामने झुकी नही (अण नमी पाघ ) जो स्वाधीनता की गाड़ी की बाएँ धुरी को संभाले हुए था वो अपनी जीत के गीत गवा के चला गया। (गो आड़ा गवड़ाय ) (बहतो धुर बामी, यह मुहावरा है। गीता में अर्जुन को कृष्ण कहते है कि, हे! अर्जुन तुम महाभारत के वर्षभ हो यानि इस युद्ध की गाड़ी को खींचने का भार तुम्हारे ऊपर ही है। )
हे! प्रतापसी तुम्हारी म्रत्यु पर बादशाह ने आँखे बंद कर (दसण मूँद ) जबान को दांतों तले दबा लिया, ठंडी सांस ली, आँखों में पानी भर आया और कहा गहलोत राणा जीत गया।
“विरद छिहत्तरी” के दोहे इतिहास प्रसिद्ध हैं जो राणा प्रताप को अकबर की तुलना में श्रेष्ट ठहराते हैं और दुरसा ने अकबर के सामने भी इन्हें प्रस्तुत करने की निर्भीकता दिखाई।
अलख धणी आदेश, धरमाधार दया निधे।
बरणो सुजस बेस, पालक धरम प्रतापरो।। (१)
गिर उंचो गिरनार, आबु गिर ओछो नही।
अकबर अघ अंबार, पुण्य अंबार प्रतापसीं।। (२)
वुहा वडेरा वाट, वाट तिकण वेहणो विसद।
खाग, त्याग, खत्र वाट, पाले राण प्रतापसीं।। (३)
अकबर गर्व न आण, हिन्दु सब चाकर हुआ।
दिठो कोय दहिवाण, करतो लटकां कठहडे।।(४)
मन अकबर मजबूत, फुट हिन्दुआ बेफिकर।
काफर कोम कपूत, पकडो राण प्रतापसीं।।(५)
अकबर किना याद, हिन्दु नॄप हाजर हुआ।
मेद पाट मरजाद, पोहो न आव्यो प्रतापसीं।।(६)
अकबर के बुलाने पर सब हिन्दू राजा हाजिर हो गए पर मेवाड़ की मर्यादा का रक्षक राणा प्रताप उसके अधीन नहीं हुआ
सो करतब समराथ, पाले राण प्रतापसी।।(७)
कलजुग चले न कार, अकबर मन आंजस युंही।
सतजुग सम संसार, प्रगट राण प्रतापसीं।।(८)
कदे न नमावे कंध, अकबर ढिग आवेने ओ।
सुरज वंश संबंध, पाले राण प्रतापसी।।(९)
चितवे चित चितोड, चित चिंता चिता जले।
मेवाडो जग मोड, पुण्य घन प्रतापसीं।।(१०)
अकबर पगमां आय, पडे न राण प्रतापसी।।(११)
जैसे उनके पितामह राणा सांगा ने धर्म का सहारा लेकर बाबर से टक्कर ली ठीक वैसे ही राणा प्रताप ने कभी अकबर की चरण वंदना नहीं की।
रघुकुल उतम रीत, पाले राण प्रतापसी।।(१२)
अकबर जो भी कुटिलताएं करता है उनको अन्य राजा शिरोधार्य करते हैं पर राणा प्रताप रघुकुल की उत्तम रीति का ही पालन करता है
आर्य कुल री आज, पुंजी राण प्रतापसीं।।(१३)
सुख हित शिंयाळ समाज, हिन्दु अकबर वश हुआ।
रोशिलो मॄगराज, परवश रहे न प्रतापसी।।(१४)
अपने सुख के लिए सियार हिन्दू राजा अकबर के अधीन हो गए पर क्रुद्ध सिंह के समान प्रताप कभी पराधीन नहीं रहा
अकबर फुट अजाण, हिया फुट छोडे न हठ।
पगां न लागळ पाण, पण धर राण प्रतापसीं।।(१५)
अकबर पत्थर अनेक, भुपत कैं भेळा कर्या।
हाथ न आवे हेक, पारस राण प्रतापसीं।।(१६)
अकबर ने पत्थर के समान कई हिन्दू राजाओं को इकठ्ठा किया मगर पारस पत्थर राणा प्रताप उसके कभी हाथ नहीं लगा
अकबर नीर अथाह, तह डुब्या हिन्दु तुरक।
मेंवाडो तिण मांह, पोयण राण प्रतापसीं।।(१७)
अकबर अथाह समुद्र के समान है जिसमें सब हिन्दू राजा डूब गए पर कमल के समान राणा प्रताप उसके ऊपर हमेशा तैरता रहा
जाणे अकबर जोर, तो पण ताणे तोर तीड।
आ बदलाय छे ओर, प्रीसणा खोर प्रतापसीं।।(१८)
अकबर हिये उचाट, रात दिवस लागो रहे।
रजवट वट सम्राट, पाटप राण प्रतापसीं।।(१९)
अकबर घोर अंधार, उंघांणां हिन्दु अवर।
जाग्यो जगदाधार, पहोरे राण प्रतापसीं।।(२०)
अकबरीये एकार, दागल कैं सारी दणी।
अण दागल असवार, पोहव रह्यो प्रतापसीं।।(२१)
अकबर कने अनेक, नम नम निसर्या नरपती।
अणनम रहियो एक, पणधर राण प्रतापसीं।।(२२)
अकबर है अंगार, जाळे हिन्दु नृप जले।
माथे मेघ मल्हार, प्राछट दिये प्रतापसीं।।(२३)
अकबर रुपी अग्नि ने सब हिन्दू राजाओं को भस्म कर दिया पर इस प्रताप रुपी घन वृष्टि ने उसे भी बुझा दिया
अकबर मारग आठ, जवन रोक राखे जगत।
परम धरम जस पाठ, पीठीयो राण प्रतापसीं।।(२४)
आपे अकबर आण, थाप उथापे ओ थीरा।
बापे रावल बाण, तापे राण प्रतापसीं।।(२५)
है अकबर घर हाण, डाण ग्रहे नीची दिसट।
तजे न उंची ताण, पौरस राण प्रतापसीं।।(२६)
जग जाडा जुहार, अकबर पग चांपे अधिप।
गौ राखण गुंजार, पिले रदय प्रापसीं।।(२७)
अकबर जग उफाण, तंग करण भेजे तुरक।
राणावत रीढ राण, पह न तजे प्रतापसीं।।(२८)
कर खुशामद कुर, किंकर कंजुस कुंकरा।
दुरस खुशामद दुर, पारख गुणी प्रतापसीं।।(२९)
हल्दीघाटी हरोळ, घमंड करण अरी घणा।
आरण करण अडोल, पहोच्यो राण प्रतापसीं।।(३०)
थीर नृप हिन्दुस्तान, ला तरगा मग लोभ लग।
माता पुंजी मान, पुजे राण प्रतापसीं।।(३१)
सेला अरी समान, धारा तिरथ में धसे।
देव धरम रण दान, पुरट शरीर प्रतापसीं।।(३२)
ढग अकबर दल ढाण, अग अग जगडे आथडे।
मग मग पाडे माण, पग पग राण प्रतापसीं।।(३३)
दळ जो दिल्ली हुंत, अकबर चढीयो एकदम।
राण रसिक रण रूह, पलटे किम प्रतापसीं।।(३४)
चित मरण रण चाय, अकबर आधिनी विना।
पराधिन पद पाय, पुनी न जीवे प्रतापसीं।।(३५)
तुरक हिन्दवा ताण, अकबर लागे एकठा।
राख्यो राणे माण, पाणा बल प्रतापसीं।।(३६)
अकबर मच्छ अयाण, पुंछ उछालण बल प्रबल।
गोहिल वत गहेराण, पाथोनीधी प्रतापसीं।।(३७)
गोहिल कुळ धन गाढ, लेवण अकबर लालची।
कोडी दिये ना काढ, पणधर राण प्रतापसीं।।(३८)
नित गुध लावण नीर, कुंभी सम अकबर क्रमे।
गोहिल राण गंभीर, पण न गुंधले प्रतापसीं।।(३९)
अकबर दल अप्रमाण, उदयनेर घेरे अनय।
खागां बल खुमाण, पेले दलां प्रतापसीं।।(४०)
दे बारी सुर द्वार, अकबरशा पडियो असुर।
लडियो भड ललकार, प्रोलां खोल प्रतापसीं।।(४१)
उठे रीड अपार, पींठ लग लागां प्रिस।
बेढीगार बकार, पेठो नगर प्रतापसीं।।(४२)
विभरतो वराह, पाडे घणा प्रतापसीं।।(४३)
अकबर लाखों श्वान समान हिन्दू राजाओं को साथ लेकर राणा प्रताप का रास्ता रोकता है पर वराह के समान राणा उनको धराशायी कर रहा है
सांगाहर रण सुर, पेड न खसे प्रतापसीं।।(४४)
अकबर राणा को घेरने के कई यत्न करता है पर सांगा का पौत्र राणा प्रताप एक पैण्ड भी नहीं खिसकता
पण राणो प्रताप, हाथ न चढे हमीरहर।।(४५)
अकबर दुरग अनेक, फते किया नीज फौज सु।
अचल चले न एक, पाधर राण प्रतापसीं।।(४६)
अकबर ने अपनी फ़ौज से कई दुर्ग जीते पर राणा प्रताप रुपी पहाड़ जरा भी नहीं हिलता
पवंगा उपर पेख, पाखर राण प्रतापसीं।।(४७)
हिरदे उणा होत, सिर धुणा अकबर सदा।
दिन दुणा देशोत, पुणा वहे न प्रतापसीं।।(४८)
कलपे अकबर काय, गुणी पुगी धर गौडीया।
मणीधर साबड मांय, पडे न राण प्रतापसीं।।(४९)
मही दाबण मेवाड, राड चाड अकबर रचे।
विषे विसायत वाड, प्रथुल वाड प्रतापसीं।।(५०)
कन्द मूल फल केर, पावे राण प्रतापसीं।।(५१)
अकबर ने राणा की रसद रोक दी पर राणा कंद मूल कैर फल खाकर भी संघर्षरत है
अकबर तल आराम, पेखे राण प्रतापसीं।।(५२)
अकबर जिसा अनेक, आव पडे अनेक अरी।
असली तजे न एक, पकडी टेक प्रतापसीं।।(५३)
लांघण कर लंकाळ, सादुळो भुखो सुवे।
कुल वट छोड क्रोधाळ, पैड न देत प्रतापसीं।।(५४)
अकबर मेगल अच्छ, मांजर दळ घुमे मसत।
पंचानन पल भच्छ, पट केछडा प्रतापसीं।।(५५)
दंतीसळ सु दुर, अकबर आवे एकलो।
चौडे रण चकचुर, पलमें करे प्रतापसीं।।(५६)
चितमें गढ चितोड, राणा रे खटके रयण।
अकबर पुनरो ओड, पेले दोड प्रतापसीं।।(५७)
अकबर करे अफंड, मद प्रचंड मारग मले।
आरज भाण अखंड, प्रभुता राण प्रतापसीं।।(५८)
घट सु औघट घाट, घडीयो अकबर ते घणो।
ईण चंदन उप्रवाट, परीमल उठी प्रतापसीं।।(५९)
बडी विपत सह बीर, बडी किरत खाटी बसु।
धरम धुरंधर धीर, पौरुष घनो प्रतापसीं।।(६०)
पंगी समदा पार, पुगी राण प्रतापसीं।।(६१)
अकबर राणा की कीर्ति को रोकने के कई यत्न करता है पर उसकी कीर्ति सात समुद्र पार फ़ैल गयी है
राणा जसरी रात, प्रगट्यो राण भलां प्रतापसीं।।(६२)
जीणरो जस जग मांही, ईणरो धन जग जीवणो।
नेडो अपयश नाही, प्रणधर राण प्रतापसीं।।(६३)
अजरामर धन एह, जस रह जावे जगतमें।
दु:ख सुख दोनुं देह, पणीए सुपन प्रतापसीं।।(६४)
अकबर जासी आप, दिल्ली पासी दुसरा।
पुनरासी प्रताप, सुजन जीसी सुरमा।।(६५)
समय की बात है अकबर जैसे चले जायेंगे और दिल्ली भी दूसरों की हो जाएगी पर राणा प्रताप का सुयश सदा अमर रहेगा
सफल जोगी भवसार, पुर त्रय प्रभा प्रतापसीं।।(६६)
सारी वात सुजाण, गुण सागर ग्राहक गुणा।
आयोडो अवसाण, पांतरेयो नह प्रतापसीं।।(६७)
छत्रधारी छत्र छांह, धरमधार सोयो धरा।
बांह ग्रहयारी बांह, प्रत नतजे प्रतापसीं।।(६८)
साथे धरम सहाय, पल पल राण प्रतापसीं।।(६९)
यही सत्य है, कभी ईश्वर और धर्म को मत भुलाओ, राणा ने धर्म को नहीं भुलाया तो धर्म ने सदा उसकी सहायता की
नरवर करीये नांही, पुरण राण प्रतापसीं।।(७०)
अकबर साहत आस, अंब खास जांखे अधम।
नांखे रदय निसास, पास न राण प्रतापसीं।।(७१)
मनमें अकबर मोद, कलमां बिच धारे न कुट।
सपना में सीसोद, पले न राण प्रतापसीं।।(७२)
कहैजो अकबर काह, सेंधव कुंजर सामटा।
बांसे से तरबांह, पंजर थया प्रतापसीं।।(७३)
धारण कीजे धार, परम उदार प्रतापसीं।।(७४)
इस चारण कवि दुरसा ने राणा प्रताप की महिमा का कथन किया है जिसमें परम उदार राणा को ह्रदय में रखा है।
बिना स्वार्थ के राणा प्रताप की सच्ची प्रशस्ति में यह काव्य रचा है
आतम सम आधार, पृथ्वी राण प्रतापसीं।।(७५)
काव्य यथारथ कीध, बिण स्वारथ साची बिरद।
देह अविचल दिध, पंगी रूप प्रतापसीं।।(७६)
जय भवानी
💐
जय करणी जी सा