छंद त्रीभंगी– परतापे पुरी, निरमळ नूरी, सतव्रत सूरी, सरसाई (रचना – जीवणदान गढवी)
परतापे पुरी, निरमळ नूरी, सतव्रत सूरी, सरसाई।
दारिद कर दूरी, क्रोध करुरी, बळ भरपूरी, तुं बाई।
भंजण दुःख भुरि, गंज गरुरी, रखण सबुरी, रढियाळी।
ओखा धर वाळी, देव डाढाळी, जय मोगल मछराळी..
रंगे रुपाळी, तन तेजाळी, ज्योत उजाळी, जोरळी।
कोपे विकराळी, नागण काळी, सिंहण भाळी रोसाळी।
बुढी ने बाळी दीन दयाळी वीसभुजाळी,बिरदाळी।
ओखा धर वाळी, देव दयाळी, जय मोगल मां मछराळी..
जय जय जुग धरणी, सत्य उचरणी, संकट हरणी, सुखदाता।
कारण सह करणी, तारण तरणी, मोद उभरणी, जुग माता।
बेहद जश वरणी, भव भय हरणी, पोखण भरणी परचाळी।
ओखा धर वाळी, देव दयाळी, जय मोगल मां मछराळी..
ओपत उजियारं, तेज अपारं, शोळ सृंगारं अंग सजे।
कंकण कर धारं, है गळ हारं, भाल सुधारंचंद भजे।
शिरपर जडी तारं, लोबडी सारं, लख नग लारं लटकाळी।
ओखा धर वाळी, देव डाढाळी, जय मोगल मांमछराळी..
सेवग सुख धारण, काढत कारण, पार उतारण,परचाळी।
दाळद दुःख दाळण, साच वधारण, विघन विडारण, विरदाळी।
मैखासुर मारण, धीरज धारण, चारण तारण, चरिताळी।
ओखा धर वाळी, देव डाढाळी, जय मोगल मां मछराळी..
तुंज आदि न अंतं, सृष्टि सृजंतं, प्रलय करंतं, पोखंतं।
दानव कुळ हंतं, चरित अनंतं, तुं जग तंतं वरतंतं।
अवतार धरंतं, तुं भगवंतं, हिम्मत वंतं हलकाळी।
ओखा धर वाळी, देव डाढाळी, जय मोगल मां मछराळी..
गढ कडी नमायो, भुप भमायो, सुबो आयो सिर नायो।
नेह कोप समायो, संख बजायो, जुगत जमायो, जश जाम्यो।
ओखाई रमायो, नाच नचायो, खुब खेलायो, खेधाळी।
ओखा धर वाळी, देव डाढाळी, जय मोगल मां मछराळी..
वल्लुना वटनी, रुपां घटरी, सुजाण वटरी तुं सांची।
मोटीमां मननी जाहर जननी राजल तनरी तु राची।
मोगल सब ऐकह, रुप अनेकह, “जीवण”कवि कहे जोराळी।
ओखा धर वाळी, देव डाढाळी, जय मोगल मां मछराळी..
रचना – जीवणदान गढवी
टाइपिंग – राम बी. गढवी
नविनाळ – कच्छ
फोन नं.- 7383523606