चारण कवी बलदेव भाइ नरेला रचित आइ सोनल नी चरज
मढडामां भाळी में मरमाळी रे,माताजी तारी मुरती रे जी (टेक)
लाख लाख दीवडाना,तनथी तेजाळी रे (२)
हे जी एणे आतमना तेजे पृथ्वी उजाळी रे
माताजी तारी मुरती रे…. .
वहे छे मुखेथी जेने,वाणी चार वेद वाळी (२)
हे जी एवा ज्ञान रे पुराणो पीधा जेणे गाळी रे
माताजी तारी मुरती रे…. .
देवी छे दयाळी जेना,थानके मळे छे थाळी (२)
हे जी एना आतमो हुलासे अतीथी भाळी रे
माताजी तमारी मुरती रे…. .
खरुं समरण भाळीभले होय रात काळी (२)
हे जी एवी छे कृपाळी पुगे पगपाळी रे
माताजी तमारी मुरती रे…. .
भजे ‘बलदेव’ भाळी,मढडामां मढवाळी (२)
हे जी एवी प्रसन्न रहोने माडी परचाळी रे
माताजी तमारी मुरती रे … .
रचना —- चारण कवी बलदेवभाइ हरदानभाइ नरेला
टाइपिंग — राम बी. गढवी
नविनाळ कच्छ
फोन नं.– 7383523606