महाकवि भूषण रचीत ” शिवाजी न होत तो!!”
देवल गीरावतो फिरावतो निशान अली,
ऐसे सामे राव राना सब गये लबकी
गौरा गनपती आप औरंग को देख ताप,
अपने मुकाम सब मार गये दबकी
पीर पयगंबरा दिगंबरा दिखाइ देत,
सिद्ध की सिधाइगइ रही बात रबकी
कीशीहुं कला गयी मथुरा मस्जीद भयी,
शिवाजी न होत तो सुन्नत होत सबकी
कुंभकर्न असुर अवतारी औरंगझेब कीन्ही,
कतल मथुरा दोहाइ फेरी रब की,
खोदी डारै देवी देव शहर महल्ला वां के,
लाखन्ह तुरक किन्हे छुटी गइ तबकी
चारो वर्ण धर्म छांडी कलमा नमाज पढे
और कौन गीनती में भूली गीत भबकी
काशीहुं कला गयी मथुरा मस्जीद भयी
शिवाजी नहोत तो सुन्नत होत सबकी
रचना — महाकवि भुषण
टाइपिंग — राम बी. गढवी
नविनाळ – कच्छ
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