चारणकवि श्री माणेक थार्या जसाणी द्वारा रचित आइ श्री गागल माताजी नो छंद {छंद=दृमिला}
विपरीत संजोगोना वमळमां
ज्यारे जीव तमारो मुंजाय घणो
अकळाय हैयुं ना उपाय सूझे
एवि को उलझायेल वात तणो
त्यारे लेजे सला’ कोइ संत तणी
थवा जीवनने बरबाद म दे
विश्वस रखी धरी धीर हैये
मुख गागल गागल गागल के’ -१
कंकास वधे निज कुटुंबमां
विश्वास घटे खोटा वहेम पडे
आवे खोट धंधामां ने मान घटे
वळी बाळक राह चडे अवळे
त्यारे हारे हैयुं ना हताश थजे
झट जाता रे’शे दु:ख दाडला ए
विश्वास रखी धरी धीर हैये
मुख गागल गागल गागल के’ -२
वाला बधा तारा वेरी बने
अने नाथ विधिनो नमेरी बने
गुना विण घोर कलंक चडे
धोळे दिवस रात अंधेरी बने
मरडी मुख मित सो दूर ही जाता रहे
पाडता साद को’ दाद न दे
विश्वास रखी धरी धीर हैये
मुख गागल गागल गागल के’ -३
उपडे अंगडे अनहद पीडा
अने व्यापे रोग रगे रगमां
विवेकथी वैध विदाय दिए
लागे मृत्यु नजीक लगो लगमां
समरथ्थ माता तणा ‘माणेक’ तुं
मत डर बीजे फरियाद म दे
विश्वास रखी धरी धीर हैये
मुख गागल गागल गागल के’ -४
रचना = चारणकवि श्री माणेक थार्या जसाणी
झरपरा-कच्छ
टाइपिंग राम बी गढवी
नविनाळ-कच्छ
फोन = 7383523606
आ छंद काव्य विनोद नामनी बुकमांथी टाइप करेल छे भुलचुक सुधारने वांचवी