हलो हींगरिये हरी साहेब, जत संत वसे सुरविर…एवा महान संत नो एक अदभूत उपदेशात्मक कच्छी भजन…
जागीने जोको याद न क्यां राम के, ते ते राम राजी की थींधो…२
स्वार्थ टाणे सोंढी अचेता,परमार्थ टाणे भजी वनेंता…
धरम जे नांते धमडी नता डींये,उते घणे गरीबथी वनेंता…
जागीने जोको याद न क्यां….
सगे-वालें में शूरा-पूरा,बाउँ जलीने व्यारिंयेता…
संत सेवामें शरम थीयेती,घुसीने घर में व्येंता…
जागीने जोको याद न क्यां……
सारे कम में कन नता डींये,वेवार में वडा थीयेंता…
नाटक डसी नेण नचेता,हथे करी भव हारेंता…
जागीने जोको याद न क्यां……
शीरो सेवूं पापड पूणी,सगे वालें के जमाळीयेता…
अभ्यागत के इँज चेंता,खत पणइ जो मंञो नता….
जागीने जोको याद न क्यां….
भगवान के ए भूली वनेंता,खुटी खूमारी में वरतेंता…
“हरीदास” चें हेरान थींयेता,जमजा जोडा ख्येंता…
जागीने जोको याद न क्यां…
रचना — परम पूज्य वंदनीय संत हरीसाहेब – हिंगरीया धाम
टाइपींग — राम बी गढवी
नवीनाळ=कच्छ
फोन न. –7383523606
संत श्री हरीसाहेब बापु ना चरणे वंदन