चारणी जोगमाया भगवती आइ सोनबाइ माताजी नी काठडा ना राणशीभाइ जखुभाइ साखरा द्वारा रचित कच्छी रचना
धन धन सोनल आई,आंजे पुरवे पूरव जी कमाई..,
देवी ! धन धन सोनल आइ…..
सहाकाळ रुप धर्यो आई सोनल,मढडे में मोमाइ..,
चारण कुळ ने तारवा काजे,मढडे जनम्या आई..,
देवी ! धन धन सोनल आई…
सवंत ओगणीस वरस एंसी, एँसीए हूइ वधाइ….
पिता हमीर ने माताजी राणबाइ,आइ तारा हेते हालर गाइ,
देवी ! धन धन सोनल आइ….
सवंत वीसों ने दसमी साल,
आइ दशइं देवी कहेवाइ..,
वैशाख सुद तृतीया ना दिवसे,माडी अकळ कला दर्शाइ..,
देवी ! धन धन सोनल आइ….
चार उपदेश आइ चारणो ने आप्या,सत्य विषे समजाइ..,
कन्या विक्र ने भिक्षा व्रुति,दिधा दारु मांस छोडाई..,
देवी ! धन धन सोनल आई….
गुणला तारा चारणो गावे,तारे शरणे शिश जुकाइ..,
महेर करोने माडी हमपर, आई तारा “राणसी” जस गाइ..,
देवी ! धन धन सोनल आई…
रचना=राणसीभाइ जखुभाइ साखरा (गढवी)
काठडा=कच्छ
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टाइपिंग=राम बी गढवी
नवीनाळ- कच्छ
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वंदे सोनल मातरमं