चारणकवि श्री इशरदासजी बारहठ द्वारा रचित हरिरस नो महात्म्य
संसार दुस्तर सिंन्धुमां, आ हरिरस जलयान छे
अज्ञान तम पर आ हरिरस, सूर्य रश्मि समान छे
कल्मय कनक कश्यप परे, आ हरिरस छे नरहरि
भव रोग हर भेषज सुखद छे, हरिरस सर्वोपरी
मन मोह मद मातंग परे, आ हरिरस मृगराज छे
दल द्रोह दव पर आ हरिरस, सघन सम सुखसाज छे
सुविचार शकुनी तणुं स्थळ आ हरिरस ऊधान छे
वैकुंठ सिधावा हरिरसनुं, कथन वर वैमान छे
कुविचार काकोदर परे, आ हरिरस हरियान छे
इर्ष्या निशाचरि लंकनी पर, हरिरस हनमान छे
शांति प्रदाता हरिरस, भगवान रुपे भव्य छे
सदज्ञान दाता हरिरस, सदगुरु रुपे दिव्य छे
प्रभु भेटवा आ हरिरसनो, पाठ ए सतपंथ छे
इशरा के परमेश्वरा, चारण रचित आ ग्रंथ छे
शंकर प्रभुनो दास ‘शंकर’, कहे सत स्तुति करी
हर रुप हरि-हरिरुप हर-हर, श्वास समरो हर-हरि
रचना = चारणकवि श्री शंकरदान जेठीदान देथा
टाइपिंग = राम बी गढवी
*नविनाळ-कच्छ
फोन = 7383523606
आ रचना श्री हरिरस नामनी बुकमांथी टाइप करेल छे भुलचुक सुधारीने वांचवी
वंदे सोनल मातरमं