डॉ. रेवन्त दान राजस्थान की हिंदी कविता के उदीयमान हस्ताक्षर हैं। उनकी कविताएँ जन जीवन के संघर्ष और आशा-विश्वास की तेवरी रचनाएँ हैं। कवि की प्रेम कविताएँ ‘मिट्टी’ से उगा प्रेम है। वह ‘उखड़ती सांसों के बीच, हिरणों जैसी प्यास लिए जीवन के मरुस्थल में अनवरत प्रेम पाने को दौड़ रहा है। पेश है डाॅ रेवंत दान की 3 प्रेम कविताएं-
तानाशाहों को मिलीं दीवानी महबूबाएं
और दीवानों बेवफ़ा माशूक़ाएं
तारीख़ गवाह है
कि ज़ालिम उमर्दाराज़ नहीं होते
हश्र जो तानाशाहों का होना था
वही बेवफ़ाओं का हुआ ।
और दीवानों बेवफ़ा माशूक़ाएं
तारीख़ गवाह है
कि ज़ालिम उमर्दाराज़ नहीं होते
हश्र जो तानाशाहों का होना था
वही बेवफ़ाओं का हुआ ।
अनगिनत बार लिखा
और हर बार मिटाया
लिखने से पहले
और मिटाने के बाद
बस वही एक नज़र आया
पर मैं लिखना चाहता हूं
एक बार अमिट स्याही से
क़लम सहमत होगी
काग़ज़ जगह देंगे
मैं जानता हूं
एक दिन लिख ही दूंगा
तुम्हारा नाम मेरे नाम के साथ
और हर बार मिटाया
लिखने से पहले
और मिटाने के बाद
बस वही एक नज़र आया
पर मैं लिखना चाहता हूं
एक बार अमिट स्याही से
क़लम सहमत होगी
काग़ज़ जगह देंगे
मैं जानता हूं
एक दिन लिख ही दूंगा
तुम्हारा नाम मेरे नाम के साथ
मैंने बरसों पहले
तुम्हारे नाम लिखे थे
बहुत सारे ख़त
जिनको बिना ताले के
लाल डिब्बे में पोस्ट करता रहा
किसी ने चालाकी से चुरा लिए थे
इन दिनों वे सारे ख़त वायरल हो रहे हैं
मुस्कुराकर पढ़ रहा है सारा ज़माना
राज़-ए-मुहब्बत इस तरह खुलेगा
यह इबारत तुम्हारे अलावा सब पढ़ेंगे
यह पता न था
तुम्हारे नाम लिखे थे
बहुत सारे ख़त
जिनको बिना ताले के
लाल डिब्बे में पोस्ट करता रहा
किसी ने चालाकी से चुरा लिए थे
इन दिनों वे सारे ख़त वायरल हो रहे हैं
मुस्कुराकर पढ़ रहा है सारा ज़माना
राज़-ए-मुहब्बत इस तरह खुलेगा
यह इबारत तुम्हारे अलावा सब पढ़ेंगे
यह पता न था