March 31, 2023

पुलवामा आंतक से एक ओर शहीद (पढे़ रणजीत सिंह चारण ‘रणदेव’ की कहानी

पुलवामा आंतक से एक ओर शहीद
(पढे़ रणजीत सिंह चारण “रणदेव” की कहानी और साथ ही भारत और भारत देश के कश्मीर में आतंक क्यों होता इसका सच।)
जय जवान                 जय किसान

मेरे देश के सभी जवानों, किसानों को शत् – शत् नमन। जैसा की अभी कुछ ही दिन पहलें पुलवामा में एक आतंकी हमला हूआ। जिसमें देश के चौमालिस के लगभग जवान शहीद हो गये और कई जवान अभी भी घायल हैं जो चिकित्सालय में भर्ती हैं अपनी मौत से लड रहे हैं। देश में इस आतंकी घटना को लेकर सभी दु:खी हैं। जहाँ देखो वहाँ सिर्फ यहीं विषय बना हूआ हैं और पूरे भारत में एक ही गूँज सूनाई दें रही हैं की फिर से सर्जीकल स्ट्राइक हो और देश के जवान उन शहीद जवानों का बदला लें।
क्योंकी देश के लोगो को ये पता हैं की उरी में आतंकी हमला हूआ तब देश के उंत्तीस जवान शहीद हुये तब भी ऐसा ही माहौल चला और मोदी सरकार के आदेश से सर्जिकल स्ट्राइक की गई और उरी हमले का पाकिस्तान से बदला लिया गया।
तो देश में चारों ओर फिर से यहीं वार्ता फैली हुई हैं की मोदी जी फिर से सर्जिकल स्ट्राइक कराईयें।
देश का कोई भी ऐसा व्यक्ति जिसके ह्रदय में इस घटना से पहले देश भक्ति नहीं हो मगर इस घटना के बाद उनके परिवारों का सोचकर उसके ह्रदय में भी देश भक्ती भर गयी और वो भी अपने मुख से यहीं आह्वान कर रहा हैं की सर्जीकल स्ट्राइक हो। ऐसे ही एक गांव से रणजीत नाम का लडका था जिसके दिमाग में भी यहीं बात थी लेकीन उसका एक प्रश्न था की ये आतंकी हमले होते ही क्यों हैं? इस सवाल का उत्तर जानकर व्यथित हूआ की हमारा देश विश्व गुरू रह चुका हैं। हमारे देश में इतने ज्ञानी महात्मा, बलवान्, महाशाली, वीर योद्धा,क्रांतिकारी, प्रवक्ता, जानकार, रायकर्ता, और करोडों नागरिक भरे पडे़। क्या उन्होंने कभी सरकार से ये प्रश्न नहीं किया की ऐसा बार – बार क्यो होता हैं? कब तक हमारा देश यह पीडा झेलता रहैगा ¡ कब सुरक्षित होंगे हमारे देश के जवान।
नोट :- सवाल का उत्तर कहानी के अंत में दिया गया आप सभी भी जरूर पढें।
रणजीत ने अपने सवाल का उत्तर जाना तो फिर से उसका एक ही सवाल रहा की तब सरकार ने क्या किया? अब तक हमारे देश के जवान सुरक्षित क्यों नहीं? क्या सर्जिकल स्ट्राइक से यह निपटारा हो जायेगा? यदि पूरा जम्मु कश्मीर अगर हमारे देश का हैं तो हमारे देश का होना चाहिए।
हम भारत माता की संताने हैं और हमारी भारत वसुंधरा को कोई छीन नहीं सकता। अगर इस पर किसी ने अंगुली या जिह्वा भी उठायी तो काटकर फैंक देंनी चाहिए।
लेकिन सरकारें केवल ब्यान बाजी में रहकर और वोटो की चिंता करती हैं। अरे जिस देश में राम जैसा पुरुषोत्तम पुरूष हूआ उनकी भूमि में उनका राम मंदिर नहीं बनवा पायी। क्या हमारे दैश के ऐसे हालात हैं? आज कांग्रेस भाजपा से सवाल करती हैं राम मंदिर क्यों नहीं बना? तो कांग्रेस ने इतने साल राज करके क्या किया? लेकीन पुलवामा घटना उस रणजीत नाम के लडके को उरी आतंकी हमले की तरह एक सर्जिकल स्ट्राइक जैसा ही संभवत नजर आ रही थी । लेकीन उसका मानना था की आधा कश्मीर हमसे ले लिया उसके बावजूद भी हम पर ही आतंक।ऐसा कब तक होता रहैगा।
लेकीन उस वक्त सेना के हाथ बंधे थे क्योंकी सेना को आजादी नहीं। सेना को ये नेता अपने हाथ का खेल समझते। लेकीन सबसे ज्यादा एक सैनिक को एक सैनिक ही समझ सकता दूसरा कोई ओर नहीं। पहले की युद्ध हो चुके जिसमें हजारों जवान शहिद हुये फिर उरी हमला और अब पुलवामा हमला इसको लेकर सैनिको के ह्रदय में जो बारूद उछल रहा वह रणजीत बडी आसानी से समझ पा रहा था।
लेकिन कुछ दिन निकल गये जब सरकारों ने कुछ नहीं किया तब उस रणजीत ने अपनी एक योजना तैयार की जिसको अंजाम दिया। क्योंकी रणजीत  उम्र में अभी छोटा था तो सैना में जानने को परिपूर्ण नहीं था अगर चला भी जाता तो क्या उसके अकेले के हाथ खूले होते। जी नही?

                     तो उसने सोशल मिडिया पर एक पोस्ट बनायी जिसमें उस आतंकवादी को समर्थन किया। जिसने पुलवामा में देश के जवानों को मौत के घाट उतार दिय। भारत सरकार पर गलत आलोचना कर सैनिकों पर अभद्र टिप्पणी की और भी उसमें लिखा की मैं हूँ आतंकवादी मूझे पकडकर दिखाओ इसके साथ ही सभी को चूनौती दें दी ताकी कोई अपनी आग बबूलता रोक न सके। रणजीत को ये अच्छी तरह ज्ञात था की उसके इस अंजाम का क्या जवाब होगा। लेकीन उसको शायद उस वक्त कुछ ओर समझ न आ रहा हो। उसकी सोशल मिडिया पर ऐसी पोस्ट सभी के पास फैल गयी और उसको पुलिस पकड़ ले गयी। रणजीत के घर पर सनसनी फैल गयी ये क्या हो गया अपना बेटा देशद्रोही कैसे निकल सकता हैं। तो यह सूचना इतनी अधिक प्रसारित हूई की यह सोशल मिडिया पर फैल गया। जब रणजीत के पास धमकियाँ आने लगी तो वह निडर होकर उनसे बात करता क्या कर होगे तुम? । कुछ ही समय में  यह सूचना पुलिस, सैनिकों के पास पहूँची। पुलिस से पहले देश के जवानों ने उससे पकड कर लिया। उसके साथ खूब मारपीट की और उससे सच पूछा की तूँ किससे मिला हूआ। तेरे साथ और कौन आतंकवादी हैं। क्योंकी सबसे बडे आतंकवादी तो हमारे देश में ही बैठे हैं जिससे हमारे जवाब अब तक सुरक्षित नहीं। लेकीन रणजीत बताये भी क्या? जब आतंकवादीयों के बारें में कुछ जानता भी हो तब। लेकीन वह जवानों को अभद्र भाषा में  उनमें फौलाद भरता गया। ऐसे बोल बोलता रहा की उनका खून उबलता रहें और उस लडके के बोल वचन से एक सैनिक का इतना फौलाद भर गया की उसने रणजीत को गोली से मार दिया।
उस फौजी को पता था सस्पेंड कर देंगे तो कर देंगे वो स्वयं को रोक न पाया क्योंकी कोई भी सैनिक आतंकवादीयों को कभी बक्श नहीं सकता। लेकीन रणजीत को गोली मारने के बाद उन सभी फौजियों के ह्रदय में चिंगारी जल रही थी जो थोडी सी शांत हुई।
लेकिन इस घटनाक्रम को लेकर रणजीत का परिवार सदमें में था की हमारा बेटा ऐसा कैसे कर सकता हैं?
उस वक्त रणजीत के परिवार पर पूरा देश देशद्रोही के नारे लगा रहा था। देशद्रोही की छाप लग गयी। उसके परिवार पर थूँ – थूँ कर रहा था।रणजीत के घर लोग तोड – फोड कर चूके थे।
ऐसे काफी वक्त निकल गया उसकी बहन अपने भाई रणजीत के कमरें में गयी उससे यकीन न था की मेरा भाई देशद्रोही होगा जब करें में देखा तो भाई की डायरी मिली। ( क्योंकी रणजीत एक रचनाकार था अपनी डायरी में रोज कुछ न कुछ लिखता था तो उसकी बहन ने वह डायरी पढी जब अंत तक पहूँची तो उसने अपने भाई की सच्चाई जानी और वह दंग रह गयी जोर-जोर से रोयी ।
वह कहें तो किससे कहें की उसका भाई निर्दोष हैं कोई देशद्रोही नहीं हैं।
“क्योंकी उस डायरी मैं रणजीत ने लिखा था की.”जय हिंद” कश्मीरी मामलें में अब तक हमारे देश के 13 हजार से अधिक जवान शहीद हो गये। 13 हजार से अधिक माताओं ने अपना लाल खोया। 7 हजार से अधिक महिलायें विधवा हो गयी और कई बच्चे अनाथ हो गये। आखिर इनका जिम्मेवार कौन? कब तक ऐसे ही चलता रहैगा।. कब तक ये देश में जो भी पार्टी सत्ता में होगी उस पर दूसरी पार्टी आरोप – प्रत्यारोप का माहौल जमाये रखैगी। कब मिलैगा मेरे उन -13 हजार शहीदों को इंसाफ।
आखिर वो किसके लिए शहीद हुये? क्या इसलिए हुये की देश की जनता की देश भक्ति 1-2 दिन में जग जायें और बाद में भूल जायें और सोशल मिडिया को विषय मिल जायें।
इसके साथ ही रणजीत ने लिखा की मैं कोई देशद्रोही नहीं हूँ। मैं इस महान् भारत देश का बेटा हूँ। मूझे इस सभ्य देश का बेटा बनने का अवसर प्राप्त हूआ। मैं एक सैनिक बनने में असमर्थ हूँ अगर सैनिक बन जाता तो मैं अकेला चला जाता दुश्मन से बदला लेने। मगर  मेरे देश के जवानों के हाथ बांद रखे हैं, क्योंकी मेरे देश की सरकार अब तक कोई ऐसा फैसला नहीं लें पायी हैं जिससे मेरे देश के जवान सुरक्षित हो पायें।
क्योंकी इस घटना से मेरे देश के जवानों का खून उबल रहा और सरकारें अब तक नाकाम रही।
एकबार में जो करना हैं वो करलो पाकिस्तान का आतंक हमेशा के लिए क्यों नहीं मिटा सकते? सबसे बलशाली देश अमेरिका हैं फिर भी उसके पास आतंक का अधिकार नहीं फिर पाकिस्तान कैसे? क्या किया अब तक सरकारों ने?
इसलिये मैं छोटा सा देशद्रोही बनकर अपने देश के सैनिकों की प्यास बुझा रहा हूँ उनका जख्म थोडा कम करना चाहता हूँ। उन माताओं का जिनका बेटा शहीद हुआ। उनको थोडी शांति देना चाहता हूँ। इसलिए मैं ये देशद्रोही कृत्य करनें जा रहा हूँ। इस कृत्य के लिए मूझे माफ करना।
मैं ये गुनाह बिना किसी होश ए-हवास के कर रहा हूँ। मूझे इस गुनाह के लिए जो कोई भी पुलिस या सैनिक भाई सजा मे मौत देता है तो वह निर्दोष मान जायें। मैं अपने घर का अकेला बेटा हूँ। अगर हो सके तो मूझे मारने वाला भाई मेरे माँ – बाप बहन परिवार का भाई – बेटा बनकर जिम्मा लेने की कोशिश करें। मैं  अपने मात – पिता और बहन से ये कहना चाहता हूँ अगर मूझे मौत की सजा मिलती हैं और जो कोई भी देता हैं वह सच मे मेरा भाई होगा। क्योंकि देश के प्रति गद्दारी कभी माफ करनें योग्य नहीं होती तो मेरा यह कृत्य भी माफ नहीं किया जाये।
अगर मेरे देश की सरकार मेरे देश के जवानों को इस घटना से सुरक्षित कर सके तो मेरे उन 13 हजार से अधिक शहिद जवान भाईयों सच्ची श्रृंदाजलि मिल जायेगी और मेरा यह कृत्य सफल होगा।
बहन ने इतना पढा़ हर एक शब्द पर एक अश्रु की बुँद गिरायी लेकीन उसने अपने घर पर किसी को यह सच नहीं बताया। उसने चाहा की मेरे भाई को पूरा सम्मान मिलें मेरा भाई देशद्रोही नहीं एक सच्चा देशप्रेमी हैं।
उसने उस डायरी का फोटो खिंचकर सोशल मिडिया पर डाल दिया और यह अधिक से अधिक विस्थापन हो रहा हैं। देखते हैं अब क्या परिणाम आता हैं।. सरकार देश के जवानों की सुरक्षा के लिए क्या निर्णय लेती हैं।।
(यह एक काल्पनिक कहानी हैं जिसका काल्पनिक चरितार्थ पेश किया गया। यह कहानी देश के जवानों की सुरक्षा के लिए रचित हैं यथार्थ लगें तो आगे शेयर जरूर करें।)
धन्यवाद
रणजीत सिंह चारण “रणदेव”
मुण्डकोसिया, राजसमंद
730017492,   
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सवाल का उत्तर :-
तो उसने यह जानकारी जुटाई तब पता चला की जब हमारे देश में अंग्रेजों का शासन था तो लाला लाजपत राय ने 1916 में यंग इण्डिया अखबार में एक लेख लिखा, जिसमें उन्होंने ‘कांग्रेस को लार्ड डफरिन के दिमाग की उपज बताया। आरपी दत्त ने भी कांग्रेस की स्थापना को ब्रिटिश सरकार की एक पूर्व निश्चित योजना का परिणाम बताया था।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी का गठन एक अवकाशप्राप्त अंग्रेज अधिकारी एलन ऑक्टोवियन ह्यूम ने 28 दिसंबर 1885 को की गई। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का पहला अध्यक्ष व्योमेश चंद्र बनर्जी को बनाया गया।बनर्जी कोलकाता उच्च न्यायालय के प्रमुख वक़ील थे। इसके बाद इस पार्टी में कई सदस्य शामिल हुये जिनमें जिनमें दादा भाई नौरोजी, फिरोजशाह मेहता, काशीनाथ तैलंग, दीनशा एडलजी वाचा, बी राघवाचारी, एस सुब्रह्मण्यम, नेहरू, गांधी आदि थे। उसके बाद देश की आजादी के साथ – साथ भारत देश का विभाजन भी हूआ। इस विभाजन से करोड़ों लोग प्रभावित हुए। विभाजन के दौरान हुई हिंसा में करीब 5 लाख लोग मारे गए और करीब 1.45 करोड़ शरणार्थियों ने अपना घर-बार छोड़कर दूसरे स्थान पर प्रवास करना पडा़।
बंटवारे में पाकिस्तान को 1/3 भारतीय सेना और 6 महानगरों में से 2 महानगर दिये गये। जम्मु और कश्मीर रियासत किस पक्ष में रहना चाहेगी यह तय नहीं कर पायी थी। जम्मु कश्मीर में मुस्लिम पंथ की अधिक संख्या होनें के कारण पाकिस्तान अपनी तरफ शामिल करना चाहता था लेकीन हिंदु महाराज ने अपना पक्ष भारत को सुपुर्द कर दिया। जो पाकिस्तान को मान्य नहीं था और जम्मु कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान में दरार पैदा हो गयी।
यह दरार भारत और पाकिस्तान के बीच 1947 से जारी है। इसको लेकर पाकिस्तान ने भारत पर तीन बार हमले किये और तीनो बार भारत नाकाम रहा  1971 के युद्ध में तो भारत ने पलटवार करते हुए पाकिस्तानी सेना को इस्लामाबाद तक खदेड़ दिया था! और लगभग आधे पाकिस्तान पर कब्जा कर लिया परन्तु पाकिस्तान के आत्मसमर्पण भारत में विलय के लिए विलय-पत्र पर दस्तखत किए थे। गवर्नर जनरल माउंटबेटन ने 27 अक्टूबर को इसे मंजूरी दी। विलय-पत्र का खाका हूबहू वही था जिसका भारत में शामिल हुए अन्य सैकड़ों रजवाड़ों ने अपनी-अपनी रियासत को भारत में शामिल करने के लिए उपयोग किया था। न इसमें कोई शर्त शुमार थी और न ही रियासत के लिए विशेष दर्जे जैसी कोई मांग। इस वैधानिक दस्तावेज पर दस्तखत होते ही समूचा जम्मू और कश्मीर, जिसमें पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाला इलाका भी शामिल है, भारत का अभिन्न अंग बन गया। लेकीन बाद में पाक ने आधे कश्मीर पर किस तरह कब्जा किया।1947 को विभा‍जित भारत आजाद हुआ। उस दौर में भारतीय रियासतों के विलय का कार्य चल रहा था, जबकि पाकिस्तान में कबाइलियों को एकजुट किया जा रहा था। इधर जूनागढ़, कश्मीर, हैदराबाद और त्रावणकोर की रियासतें विलय में देर लगा रही थीं तो कुछ स्वतंत्र राज्य चाहती थीं। इसके चलते इन राज्यों में अस्थिरता फैली थी। जूनागढ़ और हैदराबाद की समस्या से कहीं अधिक जटिल कश्मीर का विलय करने की समस्या थी। कश्मीर में मुसलमान बहुसंख्यक थे लेकिन पंडितों की तादाद भी कम नहीं थी। कश्मीर की सीमा पाकिस्तान से लगने के कारण समस्या जटिल थी अतः जिन्ना ने कश्मीर पर कब्जा करने की एक योजना पर तुरंत काम करना शुरू कर दिया। हालांकि भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हो चुका था जिसमें क्षेत्रों का निर्धारण भी हो चुका था फिर भी जिन्ना ने परिस्थिति का लाभ उठाते हुए 22 अक्टूबर 1947 को कबाइली लुटेरों के भेष में पाकिस्तानी सेना को कश्मीर में भेज दिया। वर्तमान के पा‍क अधिकृत कश्मीर में खून की नदियां बहा दी गईं। इस खूनी खेल को देखकर कश्मीर के शासक राजा हरिसिंह भयभीत होकर जम्मू लौट आए। वहां उन्होंने भारत से सैनिक सहायता की मांग की, लेकिन सहायता पहुंचने में बहुत देर हो चुकी थी। नेहरू की जिन्ना से दोस्ती थी। वे यह नहीं सोच सकते थे कि जिन्ना ऐसा कुछ कर बैठेंगे। लेकिन जिन्ना ने ऐसे कर दिया।
भारत विभाजन के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की ढुलमुल नीति और अदूरदर्शिता के कारण कश्मीर का मामला अनसुलझा रह गया। यदि पूरा कश्मीर पाकिस्तान में होता या पूरा कश्मीर भारत में होता तो शायद परिस्थितियां कुछ और होतीं। लेकिन ऐसा हो नहीं सकता था, क्योंकि कश्मीर पर राजा हरिसिंह का राज था और उन्होंने बहुत देर के बाद निर्णय लिया कि कश्मीर का भारत में विलय किया जाए। देर से किए गए इस निर्णय के चलते पाकिस्तान ने गिलगित और बाल्टिस्तान में कबायली भेजकर लगभग आधे कश्मीर पर कब्जा कर लिया।
भारतीय सेना पाकिस्तानी सेना के छक्के छुड़ाते हुए, उनके द्वारा कब्जा किए गए कश्मीरी क्षेत्र को पुनः प्राप्त करते हुए तेजी से आगे बढ़ रही थी कि बीच में ही 31 दिसंबर 1947 को नेहरूजी ने यूएनओ से अपील की कि वह पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिमी लुटेरों को भारत पर आक्रमण करने से रोके। फलस्वरूप 1 जनवरी 1949 को भारत-पाकिस्तान के मध्य युद्ध-विराम की घोषणा कराई गई। इससे पहले 1948 में पाकिस्तान ने कबाइलियों के वेश में अपनी सेना को भारतीय कश्मीर में घुसाकर समूची घाटी कब्जाने का प्रयास किया, जो असफल रहा।
नेहरूजी के यूएनओ में चले जाने के कारण युद्धविराम हो गया और भारतीय सेना के हाथ बंध गए जिससे पाकिस्तान द्वारा कब्जा किए गए शेष क्षेत्र को भारतीय सेना प्राप्त करने में फिर कभी सफल न हो सकी। आज कश्मीर में आधे क्षेत्र में नियंत्रण रेखा है तो कुछ क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय सीमा। अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगातार फायरिंग और घुसपैठ होती रहती है।
इसके बाद पाकिस्तान ने अपने सैन्य बल से 1965 में कश्मीर पर कब्जा करने का प्रयास किया जिसके चलते उसे मुंह की खानी पड़ी। इस युद्ध में पाकिस्तान की हार हुई। हार से तिलमिलाए पाकिस्तान ने भारत के प्रति पूरे देश में नफरत फैलाने का कार्य किया और पाकिस्तान की समूची राजनीति ही कश्मीर पर आधारित हो गई यानी कि सत्ता चाहिए तो कश्मीर को कब्जाने की बात करो।
भारत के इस उत्तरी राज्य के 3 क्षेत्र हैं- जम्मू, कश्मीर और लद्दाख। दुर्भाग्य से भारतीय राजनेताओं ने इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति समझे बगैर इसे एक राज्य घोषित कर दिया, क्योंकि ये तीनों ही क्षे‍त्र एक ही राजा के अधीन थे। सवाल यह उठता है कि आजादी के बाद से ही जम्मू और लद्दाख भारत के साथ खुश हैं, लेकिन कश्मीर खुश क्यों नहीं? हालांकि विशेषज्ञ कहते हैं कि पाकिस्तान की चाल में फिलहाल 2 फीसदी कश्मीरी ही आए हैं बाकी सभी भारत से प्रेम करते हैं। यह बात महबूबा मुफ्ती अपने एक इंटरव्यू में कह चुकी हैं। लंदन के रिसर्चरों द्वारा एक साल राज्य के 6 जिलों में कराए गए सर्वे के अनुसार एक व्यक्ति ने भी पाकिस्तान के साथ खड़ा होने की वकालत नहीं की, जबकि कश्मीर में कट्टरपंथी अलगाववादी समय-समय पर इसकी वकालत करते रहते हैं जब तक की उनको वहां से आर्थिक मदद मिलती रहती है। वहीं से हुक्म आता है बंद और पत्थरबाजी का और उस हुक्म की तामिल की जाती है। आतंकवाद, अलगाववाद, फसाद और दंगे- ये चार शब्द हैं जिनके माध्यम से पाकिस्तान ने दुनिया के कई मुल्कों को परेशान कर रखा है। खासकर भारत उसके लिए सबसे अहम टारगेट है। क्यों? इस ‘क्यों’ के कई जवाब हैं मगर भारत के पास कोई स्पष्ट नीति नहीं है। भारतीय राजनेता निर्णय लेने से भी डरते हैं या उनमें शुतुरमुर्ग प्रवृत्ति विकसित हो गई है। अब वे आर या पार की लड़ाई के बारे में भी नहीं सोच सकते क्योंकि वे पूरे दिन आपस में ही लड़ते रहते हैं, बयानबाजी करते रहते हैं। सीमा पर सैनिक मर रहे हैं पूर्वोत्तर में जवान शहीद हो रहे हैं इसकी भारतीय राजनेताओं को कोई चिंता नहीं। इस पर भी उनको राजनीति करना आती है। कहते जरूर हैं कि देशहित के लिए सभी एकजुट हैं लेकिन लगता नहीं है पाक द्वारा “उरी” हमलें के साथ अब “पुलवामा” में हमला।
बात कश्मीर की है तो दोनों ही तरफ के कश्मीर के लोग चाहे वे मुसलमान हो या गैर-मुस्लिम, जहालत और दुखभरी जिंदगी जी रहे हैं। मजे कर रहे हैं तो अलगाववादी, आतंकवादी और उनके आका। उनके बच्चे देश-विदेश में घूमते हैं और सभी तरह के ऐशोआराम में गुजर-बसर करते हैं। भारतीय कश्मीर के हालात तो पाकिस्तानी कश्मीर से कई गुना ज्यादा अच्छे हैं। पाक अधिकृत कश्मीर से कई मुस्लिम परिवारों ने आकर भारत में शरण ले रखी है। पाकिस्तान ने दोनों ही तरफ के कश्मीर को बर्बाद करके रख दिया है। भूटान के 10वें हिस्से जितने क्षेत्रफल वाले ‘लैंड लॉक्ड आजाद देश’ से न भारत का भला होगा, न कश्मीरी मुसलमानों का। पाकिस्तान और चीन का इससे जरूर भला हो जाएगा और अंतत: यह होगा कि इसके कुछ हिस्से पाकिस्तान खा जाएगा और कुछ को चीन निगल लेगा। चीन ने तो कुछ भाग निगल ही लिया है। यह बात कट्टरपंथी कश्मीरियों को समझ में नहीं आती और वे समझना भी नहीं चाहते।
इसका परिणाम यह हुआ कि 1971 में उसने फिर से कश्मीर को कब्जाने का प्रयास किया। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसका डटकर मुकाबला किया और अंतत: पाकिस्तान की सेना के 1 लाख सैनिकों ने भारत की सेना के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया और ‘बांग्लादेश’ नामक एक स्वतंत्र देश का जन्म हुआ। इंदिरा गांधी ने यहां एक बड़ी भूल की। यदि वे चाहतीं तो यहां कश्मीर की समस्या हमेशा-हमेशा के लिए सुलझ जाती, लेकिन वे जुल्फिकार अली भुट्टो के बहकावे में आ गईं और 1 लाख सैनिकों को छोड़ दिया गया।
इस युद्ध के बाद पाकिस्तान को समझ में आ गई कि कश्मीर हथियाने के लिए आमने-सामने की लड़ाई में भारत को हरा पाना मुश्किल ही होगा। 1971 में शर्मनाक हार के बाद काबुल स्थित पाकिस्तान मिलिट्री अकादमी में सैनिकों को इस हार का बदला लेने की शपथ दिलाई गई और अगले युद्ध की तैयारी को अंजाम दिया जाने लगा लेकिन अफगानिस्तान में हालात बिगड़ने लगे। 1971 से 1988 तक पाकिस्तान की सेना और कट्टरपंथी अफगानिस्तान में उलझे रहे। यहां पाकिस्तान की सेना ने खुद को गुरिल्ला युद्ध में मजबूत बनाया और युद्ध के विकल्पों के रूप में नए-नए तरीके सीखे। यही तरीके अब भारत पर आजमाए जाने लगे।
पहले उसने भारतीय पंजाब में आतंकवाद शुरू करने के लिए पाकिस्तानी पंजाब में सिखों को ‘खालिस्तान’ का सपना दिखाया और हथियारबद्ध सिखों का एक संगठन खड़ा करने में मदद की। पाकिस्तान के इस खेल में भारत सरकार उलझती गई। स्वर्ण मंदिर में हुए दुर्भाग्यपूर्ण ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार और उसके बदले की कार्रवाई के रूप में 31 अक्टूबर 1984 को श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भारत की राजनीति बदल गई। एक शक्तिशाली नेता की जगह एक अनुभव और विचारहीन नेता राजीव गांधी ने जब देश की बागडोर संभाली तो उनके आलोचक कहने लगे थे कि उनके पास कोई योजना नहीं और कोई नीति भी नहीं है। 1984 के दंगों के दौरान उन्होंने जो कहा, उसे कई लोगों ने खारिज कर दिया। उन्होंने कश्मीर की तरफ से पूरी तरह से ध्यान हटाकर पंजाब और श्रीलंका में लगा दिया। इंदिरा गांधी के बाद भारत की राह बदल गई। पंजाब में आतंकवाद के इस नए खेल के चलते पाकिस्तान की नजर एक बार फिर मुस्लिम बहुल भारतीय कश्मीर की ओर टिक गई। उसने पाक अधिकृत कश्मीर में लोगों को आतंक के लिए तैयार करना शुरू किया। अफगानिस्तान का अनुभव यहां काम आने लगा था। तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल जिया-उल-हक ने 1988 में भारत के विरुद्ध ‘ऑपरेशन टोपाक’ नाम से ‘वॉर विद लो इंटेंसिटी’ की योजना बनाई। इस योजना के तहत भारतीय कश्मीर के लोगों के मन में अलगाववाद और भारत के प्रति नफरत के बीज बोने थे और फिर उन्हीं के हाथों में हथियार थमाने थे।
कई बार मुंह की खाने के बाद पाकिस्तान ने अपने से ज्यादा शक्तिशाली शत्रु के विरुद्ध 90 के दशक में एक नए तरह के युद्ध के बारे में सोचना शुरू किया और अंतत: उसने उसे ‘वॉर ऑफ लो इंटेंसिटी’ का नाम दिया। दरअसल, यह गुरिल्ला युद्ध का ही विकसित रूप है।
भारतीय राजनेताओं को सब कुछ मालूम था लेकिन फिर भी वे चुप थे, क्योंकि उन्हें भारत से ज्यादा वोट की चिंता थी, गठजोड़ की चिंता थी, सत्ता में बने रहने की चिंता था। भारतीय राजनेताओं के इस ढुलमुल रवैये के चलते कश्मीर में ‘ऑपरेशन टोपाक’ बगैर किसी परेशानी के चलता रहा और भारतीय राजनेता शुतुरमुर्ग बनकर सत्ता का सुख लेते रहे। कश्मीर और पूर्वोत्तर को छोड़कर भारतीय राजनेता सब जगह ध्यान देते रहे। ‘ऑपरेशन टोपाक’ पहले से दूसरे और दूसरे से तीसरे चरण में पहुंच गया। अब उनका इरादा सिर्फ कश्मीर को ही अशांत रखना नहीं रहा, वे जम्मू और लद्दाख में भी सक्रिय होने लगे। पाकिस्तानी सेना और आईएसआई ने मिलकर कश्मीर में दंगे कराए और उसके बाद आतंकवाद का सिलसिला चल पड़ा। पहले चरण में मस्जिदों की तादाद बढ़ाना, दूसरे में कश्मीर से गैरमुस्लिमों और शियाओं को भगाना और तीसरे चरण में बगावत के लिए जनता को तैयार करना। अब इसका चौथा और अंतिम चरण चल रहा है। अब सरेआम पाकिस्तानी झंडे लहराए जाते हैं और सरेआम भारत की खिलाफत ‍की जाती है, क्योंकि कश्मीर घाटी में अब गैरमुस्लिम नहीं बचे और न ही शियाओं का कोई वजूद है।
कश्मीर में आतंकवाद के चलते करीब 7 लाख से अधिक कश्मीरी पंडित विस्थापित हो गए और वे जम्मू सहित देश के अन्य हिस्सों में जाकर रहने लगे। इस दौरान हजारों कश्मीरी पंडितों को मौत के घाट उतार दिया गया। हालांकि अभी भी कश्मीर घाटी में लगभग 3 हजार कश्मीरी पंडित रहते हैं लेकिन अब वे घर से कम ही बाहर निकल पाते हैं।
रणजीत सिंह चारण “रणदेव
            मुण्डकोसिया, राजसमंद
            7300174927
इस पूरी काल्पनिक कहानी और सवाल के उत्तर में कोई गलती हो तो क्षमा करें।
लेकिन सरकार से जवानों की सुरक्षा जरूर मांगे।
अब केवल एक ही अंतिम निर्णय चाहिए जो जवानों और देश के लिए उचित हो।

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