श्री सोनल माँ रो छंद
रचना–राजेन्द्र दान विठू(कवि राजन झणकली)
सोनल कीजो सायता सरवत दीजो साथ।
चिंता मेटजो चारणी मढड़े वाळी मात।।
समत दहै सबजन सदा सतपथ रहे समाज।
कूड़ कपट कुबुद्ध कदा भय दुरमत सब भाज।।
चिंता मेटजो चारणी मढड़े वाळी मात।।
समत दहै सबजन सदा सतपथ रहे समाज।
कूड़ कपट कुबुद्ध कदा भय दुरमत सब भाज।।
छंद नाराच
सदा सुखाय मढ़ड़ाय शोभनाय सोनला
तूम्बेल आय बेल थाय महमाय मोगना
पोह सुदाय बीज आय महि आय मावड़ा
सदा सहाय सोनलाय आप आय आवड़ा जी टाळ रोग तावड़ा,,,,1
तूँ ही भवानी हमीरानी घेर आनी धीवड़ी
राणी मेयानी जिलमानी पंचमानी पिवड़ी
नवे निधानी मढ़ड़ानी मंगलानी मावड़ा
सदा सहाय सोनलाय आप आय आवड़ा जी टाळ रोग तावड़ा,,,,2
नवे निधानी मढ़ड़ानी मंगलानी मावड़ा
सदा सहाय सोनलाय आप आय आवड़ा जी टाळ रोग तावड़ा,,,,2
शोभा अपार सुणी थार अवेतार धारणी
आवो आधार रखवार वरण च्यार वारणी
मेटो विकार दुष्ट दार तूँ आधार तावड़ा
सदा सहाय सोनलाय आप आय आवड़ा जी टाळ रोग तावड़ा,,,,3
आवो आधार रखवार वरण च्यार वारणी
मेटो विकार दुष्ट दार तूँ आधार तावड़ा
सदा सहाय सोनलाय आप आय आवड़ा जी टाळ रोग तावड़ा,,,,3
खोलोज खट दृग पट तूँ विकट तारणी
हेलेज फट आवो झट साद सट सारणी
मेटेज मट तूँ संकट झाल झट झावड़ा
सदा सहाय सोनलाय आप आय आवड़ा जी टाळ रोग तावड़ा,,,4
हेलेज फट आवो झट साद सट सारणी
मेटेज मट तूँ संकट झाल झट झावड़ा
सदा सहाय सोनलाय आप आय आवड़ा जी टाळ रोग तावड़ा,,,4
देवी दातार धरम धार ब्रह्मचार चारणी
जपे संसार नर नार तपो धार तारणी
लेवे उबार सँकटार निराधार नावड़ा
सदा सहाय सोनलाय,,,,,,,,,,5
जपे संसार नर नार तपो धार तारणी
लेवे उबार सँकटार निराधार नावड़ा
सदा सहाय सोनलाय,,,,,,,,,,5
पोह सुदाय बीज आय मढ़ मांय मोकळा
मेळो भराय जनताय प्रेम पाय पोटळा
गावे गुणाय भजनाय चिरजाय चावड़ा
सदा सहाय सोनलाय,,,,,,6
मेळो भराय जनताय प्रेम पाय पोटळा
गावे गुणाय भजनाय चिरजाय चावड़ा
सदा सहाय सोनलाय,,,,,,6
इकतिसाय समताय परमतत्व पाविया
काती सुदाय तेरसाय सरगों सिधाविया
कणेरी मांय धाम थाय पात आय पावड़ा
सदा सहाय सोनलाय,,,,,,,,,,7
काती सुदाय तेरसाय सरगों सिधाविया
कणेरी मांय धाम थाय पात आय पावड़ा
सदा सहाय सोनलाय,,,,,,,,,,7
देवोज मत तूँ समत सतपथ चालणा
कटे कपट नशा वट द्वेष दट दालणा
राजन कथ तौ उकथ मोह अत मावड़ा
सदा सहाय सोनलाय आप आय आवड़ा जी टाळ रोग तावड़ा,,,8
कटे कपट नशा वट द्वेष दट दालणा
राजन कथ तौ उकथ मोह अत मावड़ा
सदा सहाय सोनलाय आप आय आवड़ा जी टाळ रोग तावड़ा,,,8
छपय्य
मढ़ड़े सोनल मात रटणों नाम दिन रात
मढ़ड़े सोनल मात कूड़ कपट फंदा काट।
मढ़ड़े सोनल मात सुख संपत देवे सदाय
मढ़ड़े सोनल मात काटण तन रोग किताय।।
सोनल हूँ समरूँ सदा सोनल सुख सरसाय।
कर बद्ध कवि राजन कहे अबखी टाळण आय।।
कर्ता कवि राजन झणकली