!! कवित्त !!
जोगीदान अमृत न पान दान दैहैं ततो,
औषधि को पान कहा प्रान को उबारिहै !
तारापति जोपै रैन तम को न नासै ततो,
जुगनू की जोति कहा अंधकार टारिहै !
द्रोणाचऴ अँजनी को पुत्र हू न आने ततो,
और कपि वृन्द कहा अचल उखारि है !
करनी हमारी टेर कान ना करोगी ततो,
धरनी के और देव कहा काज सारि है !!
कविवर कविया जोगीदान जी ने मावङी की स्तुति में भाषा व भाव दोनो की उच्च भूमि पर ह्रदय के उद्गार खोल कवित की रचना कर दी, एंवं माननीय मातृ शक्ति श्रीमती गुलाबबाई कविया नै संकलन संपादन कर समाज को अमूल्य थाती के रूप में तोहफा प्रदान कर दिया है !!
बटुक भैरव !!
पारबती बैन अविनाश मन भायो अत,
शिव की उबेल लव ल्यायो छवि छायो है !
शीघ्र उठ धायो ब्रह्म मोहन रचायो रूप,
शक्ति को सुहायो कहै बङे भाग पायो है !
मुख मटकायो मैन कंज सरसायो नैन,
झीन सुर गायो बीन बेहद बजायो है !
ईदम चढ आयो सब हिरदो बसि थायो,
छतियां चिपायो जद भैरव कहायो है !!
अज्ञात कवि की बटुक भैरव की स्तुति में रचित कवित अपने आप में मिशाल और नित्य प्रातः प्रार्थना पूजा का पावन सुन्दर पद है !!
राजेन्द्रसिंह कविया संतोषपुरा सीकर !!