भमर भज लज भगवती ,
अज कर अरज अनूप ।
कज सरज घर करनला ,
सज धर आद सरूप ।(1)
सुख करणी किजै सदा ,
धरणी उठ धावीस ।
मुणी सितम्बर मधुकरा ,
बणि तारिक बावीस ।(2)
शैल पुत्री एकम सेवी ,
ब्रह्म चारणी बीज ।
नव रुपां निरधारणी ,
राखै मधुकर रीज ।(3)
निरणा करलै नवरता ,
मधुकर मात मनाय ।
आंख न दुखै आपरी ,
सदा करनला साय ।(4)
नवम दिवस शुभ धर नरा ,
भगती कर भर पूर ।
करणी थारा मधुकरा ,
दालध कर दै दूर ।(5)