March 29, 2023

हर हर उठत हमेश रो, कर कर समरण कथ्थ- कवि मधुकरजी जैसलमेर

हर हर उठत हमेश रो ,
कर कर समरण कथ्थ ।
भर भर करनल भावना ,
मधुकर शुध मन मथ्थ ।
कै नितरा कोगत करै ,
ऐ मधुकर मन अंध ।
लै शरणो मुढ लोवड़ी ,
वै शिव जोड़ सवंद।
शिवम सगत भज रै सदा ,
सुकरत मधुकर सज्ज ।
कुकरत नह करणा कबू ,
तन नफरत मन तज्ज ।
मली पती भज मधुकरा ,
लली मेह चित लार ।
अली गली कर जो अवर ,
सबां भली मन सार ।
कर करणी करणी कथां ,
कह करणी किरतार ।
भली करणी तण भँमरा ,
अवस करणी उबार ।

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