April 2, 2023

मानव अलग अलग चाह मधुकर- कवि मधुकरजी माड़वा

मानव अलग अलग चाह मधुकर।       
मगन सबन जन मधुकरा ,
चित मन मारग चुन्न ।
लगन काहु भजनां लगै ,
धरन काहु धन धुन्न ।(1)
अंग रोगी चह ओषदी ,
जोगी चाहत जोग ।
ढोगी चहत धन ढगला ,
भोगी चाहत भोग ।(2)
मुगती चाहत राम भज ,
भुगती चाहत भोग ।
भगती चाहत नर भमर ,
जुगती चाहत जोग ।(3)
जिणरै लागो जोयलो ,
राम भजन रो रोग ।
दाय नह आवै दुसरा ,
भमर जगत रा भोग ।(4)
उणरी हुवै दसा एसी ,,ज्यू,,
मोदी रै घर मेम ।
का हिजड़ै अग मधुकरा ,
परी अपसरा प्रेम ।

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