चारण महा पर्व कवित मधुकरजी माड़वा जैसलमेर।
नवलाख शक्ती का, धाम जुदै जुदै धरा,
शिव जुगती जो वाम, नाम निरखाया है।
तकत तैमड़ो धाम, महा दैशांणो मुकाम,
सैणला जुढियै सुवा, गाम सरसाया है।
खोड़ियार खमकारा, सोनल मढड़ै सारा,
गुजराती गुणकारा, गढवी गुणाया है।
चारण बड़ा आचारा, साच तप शंस्कारा,
करणी रा रणूकारा, भमर भणाया है।
चालीस भगत गीध चारणां कै कियै चावै,
ईसर आदी क तणा जन्म जचाया है।
महा मोटा पर्व हमां नवरतां का मात मुणां,
छिती पर सुणां सबां ,बड़ा सुख छाया है।
शूरवीर केहू बूधी धीर केहू सेनानी सो,
कैहू बड़ै कवियन की ,सताब्दी सजाया है।
पांथू धन्य हिन्दू पर्व पुजा जिकै साथ पुणां,
मधुकर घणां मोद, उत्सव मनाया है।
इति सर्व जाती पर्व वर्णित मधुकर।