राखी गीत रचावियो,
साखी रीत सुजान।
दाखी मान नृप दुसरो,
भाखी भंमर दान।
साच सनातन सकवियां,
वाच सुमन वाखान।
आच पुरातन ईलड़ी,
चाह निभान चोहान।
छतरी तणा गुण छता,
मतरी मागण मान।
चितरी राखण चाहना,
वाह राखी विधवान।
भण सुजस इण भांतरो,
महा गण तण सुमीत।
मुण राखी सुण मधुकरा,
गुण भल गायो गीत।
सादर राखी जी का घणे मान आभार आपने चारण राजपुत सनातन सोहार्द का बड़ा ही अनुठा गीत बणाकर प्राचिन घनिष्ठता को ओर नजदीक लाने का अती उतम काम किया ओर इसि के साथ चारणी सगती के प्रति भी अपनी कृतग्यता प्रगट करी धन्य हे चोहान साब कवि मधुकर आपको बार बार धन्यवाद देता हुवा आपकी कलम ओर आपसी हेज को सादर नमन करता हू। जय मां करणी।