आदरणीय स्नेहियो,मित्रो एवं सभी स्वजातीय बंधुजनों…
आप सभी को दीपोत्सव पर्व दीपावली की शुभकामनाएं….बधाइयां
जिन्होंने प्रदोष वेला मे लक्ष्मी पूजन कर लिया हो या स्थिर वृशभ लगन मे श्री का अपने घर आवाहन कर स्थाई रूप से भगवान विश्नु संग बिराजमान होने का वरदान पा लिया हो….सब अति श्रेष्ठ है। इसमें हमारी आस्था, श्रद्धा एवं प्रथा जुड़ी हुई है…हम मनाते आए हैं…मना रहे हैं। विशेष शुभ पलों मे लक्ष्मी पूजन का फल अपने आपमें एक अद्भुत चमत्कार से कदापि कम नहीं है….श्री सुक्त… कनकधारा स्तोत्र… संपुटित सिद्ध मंत्रों द्वारा श्री आराधना स्दैव फलदायी एवं मनोरथ पूर्ण मानी गई है…सभी
लाभ उठायें…आनंद मनाएं 👌
👉 मेरी यह चंद पंक्तियां शब्द
” चारण ” को सम्बोधित हैं…
आप विद्वान पाठकों… कविजनो
के चरणों मे अर्पित करता हूं
स्वीकार करावें ।।🙏👇
☘वही तो मैं चारण हूं ☘
1. मैं चारण हूं…साधारण हूं ,
मैं झूठ का मूल निवारण हूं ।
मैं इतिहास का एक विस्तारण हूं ,
मैं देश गर्व , गीत पर्व ,हेतवृद्धक
हुलारण हूं ।
मैं दिव्यशक्ति, भक्ति, युक्ति,
क्रांति भूत कारण हूं ।
मैं अडिग स्तम्भ, कलमधनी,
अहिंसा बोल उच्चारण हूं ।
मैं हटा नहीं, मैं कटा वहीं ,
आहुआ का वो उदाहरण हूं।।
वही तो मैं चारण हूं…वही तो
मैं चारण हूं .।।
2. मैं सत्य उपासक देवीसुत ,
वीर रस गुणगान करूं ।
मैं निडर, फिकर ना निज शोभा,
कलम क्रांति निज हाथ धरूं ।
मैंने किये अमर,मम् बोल जबर,
खब्बर वही..वही बात करूं ।
मैं शब्द बाण, इण भान्ति ताण ,
अशक्ति पाण आघात करूं ।
मैं रच्चुं ग्रंथ, सर्व सत्य पंथ ,
मैं काव्यकंथ मिष्ठान भरूं ।
मेरी पोथी थोथी थूक नहीं ,
मैं चूक अचूक ना कबहु करूं।
मेरे उपहार, हार भंडार भरे ,
मैं पुष्प सँवार…सँवारण हूं ।
वही तो मैं चारण हूं.. वही
तो मैं चारण….
3 . मेरा नित्तनेम,जग कुशलक्षेम,
मेरा भारत सकल सरताज रहे ।
बजे शंखनाद, सुन आरती वंदन ,
देव नमन, दील नाज़ रहे ।
हो आभास! लिबास जो था मेरा,
वो युग स्वर्ण मोहे याद रहे ।
मेरी काव्य कल्ला,रस भरी अयाचन,जोड़ कल्ला आबाद रहे।
मम् रसना सरस्वत रास रमें ,
सत्य ,शक्ति,सहविद्ध साथ रहे।
मैं अनुसरण करूं धरूं वोहि छटा,
अंधकार हटा वो बात रहे ।
बलिदान केसरी, प्रताप, जोरावर,
रक्त वोहि रग धारण हूं ।
वोहि तो मैं चारण हूं…वोहि
तो मैं…..
4. मेरे शब्द बाण का जब डंका
बजा , देवलोक मे नाद गूंजा ।
परीयन नृत्यपद थमत चरण,
भूल भान यंत्रगान शान्त बना ।
वो देव इन्द्र विमान लिये ,
पुष्पन् बरखा करन लगा ।
थिरथिर सरिता थमती देखी,
पवन वेग पतवृक्ष थम्मा ।
बहते झिरणे रुक रुक,रुक कर ,
देव चारण गुणगान सुना ।
वो गूंज अभी वो नाद सभी,
लयबद्ध अजहु ललकारण हूं।
वोहि तो मैं चारण हूं.. वोहि तो
मैं चारण हूं ।।
5. मैं प्रयास करूं, प्रकाश भरूं ,
जग अंधियारा जड़ नाश करूं ।
मैं आश करूं, विश्वास करूं ,
हर आंगन स्नेहदीप सौगात धरूं।
मेरा पर्व यही, मेरा गर्व यही ,
मेरा धर्म यही “मैं” को हर क्षिण
मात करूं ।
मैं चारण हूं, क्षत्रिय तारण हूं ,
मैं सरल स्वभाव ,साधारण हूं ।
अंजस आत्मसात करूं ।
मेरी नैया… मैया हत्थ रहे ,
मेरा साहस सब्बल सामर्थ रहे।
मेरी गयंन्द चाल बुद्धि गत रहे ,
मैं मन से मालामाल रहूं ।
मैं ” चालक ” चरण , कुलदेवी शरण , मेहड़ू ” आशू ” चारण हूं
वोहि तो मैं चारण हूं….वोहि तो मैं चारण हूं ।। इति ।।
आशूदान मेहड़ू जयपुर राज .
🙏🌹🌻🌲🌲🌹🍀👌