अज्ञान मेटो आवड़ा
चानरणो देय चित
गुण कीरत तव गावणा
हरमेश रहजो हित।।
देवी थारे द्वार पर
पेली उठतो पेश
सदा भवानी शायता
कीजो आप कवेश।।
भूलचूक कीजो भली
अबोध जांण अज्ञान
ममता किरपा मावड़ी
सरवत राखे शान।।
भूलूं नाही भगवती
हंसो पिंजर होत।
एक थारो ही आसरो
जगतंब दर्शण जोत।।
(कवि राजन झणकली)