समाज हित, चारणत्व, चारणाचार या या अन्य सेवा अगर कोई करे तो उसे साराहा जाये हौसला बढायें साथ देवें न कि ऐबजोई करके रंजिश जाहिर करें…
अब “चतुर बोले चाऋणाँ” में भी लेखक ने लिखा है उसमें दो तिहाई हिस्सा तो केवल पारकर इतिहास से सम्ब्धित है…तो इसमें क्या बुरा है…हाँ अगर कोई अंश तथ्यों आधारित नहीं है तो अपन उसे हिन्दी अनुवाद करते शामिल नहीं करेंगें ।। बस आगे बढो…मेहडू़ स्देव सिरमौड़ रहे हैं।
पाराणो धरा निपज्या पूत,
सपूत सिंघ समान।
वाकपटुता, विवेक प्रबल,
अरु गूढ कविता ज्ञान ।।
सपूत सिंघ समान।
वाकपटुता, विवेक प्रबल,
अरु गूढ कविता ज्ञान ।।
कविवर चांगा, किशना,
मीसण खेतल समान।
चालक, करणी, प्रताप सह,
रत्न अनेकों खाण ।।
मीसण खेतल समान।
चालक, करणी, प्रताप सह,
रत्न अनेकों खाण ।।
धाक जमाई धुरंधरां,
हाक विदेशां हंद।
बारहट खूम, धूम रहि,
“आशू” हृदय आणंद ।।
हाक विदेशां हंद।
बारहट खूम, धूम रहि,
“आशू” हृदय आणंद ।।
–आशूदान मेहड़ू राठी…हाल जयपुर राज.