March 25, 2023

मां सैणीजी अवतार परिचय

⚔मां सैणीजी अवतार परिचय⚔

गुजरात राज्य के सौराष्ट्र क्षेत्र में ओजत नदी के किनारे स्थित घोरडियाला गांव में वेदोंजी नाम के चारण भक्त कवि रहते थे ! वैदोजी हिंगलाज मां के परम उपासक व सरल हृदय के व्यक्ति थे ! जीविकोपार्जन हेतु काव्य सृजन व कृषि कार्य करते थे, वेदों जी की माता जी का नाम मोगल था जो अपनी देव्यशक्ति के कारण संपूर्ण सौराष्ट्र क्षेत्र में मोगल मच्छराली के नाम से प्रसिद्ध हुई ! वैदाजी के जीवन में संपन्नता के साथ उनका निसंतान होना उनके लिए दुख का कारण बन रहा था उन्हें प्रतिदिन सामाजिक तानों का सामना करना पड़ रहा था ! उनकी धर्मपत्नी हंसा बाई ने उन्हें आद्या शक्ति मां हिंगलाज के दर्शनार्थ सिंध प्रांत में स्थित बलूचिस्तान जाने का आग्रह किया !

वैदाजी ने अपनी पत्नी की प्रबल जिज्ञासा से प्रेरित होकर हिंगलाज मां के दर्शनार्थ बलूचिस्तान की यात्रा हेतु प्रस्थान किया, प्राचीन काल में हिंगलाज यात्रा बहुत ही दुर्गम थी परंतु देवी भक्त वैदाजी अनेकानेक कठिनाइयों से गुजरते हुए बलूचिस्तान पहुंचे ! माँ हिंगलाज का ध्यान कर के अपने ह्रदयोदगार करूण स्वर में स्तवन करने लगे —

माता अरजी मान, सुत कारण कव सरण में !
कव की सुणलो कांन, वैदा वंश वधारजौ !!

वैदाजी के आर्त स्वर सुनकर मां हिंगलाज साक्षात दर्शन देकर कहने लगी —

सिद्ध वैदा घर सांचरो, अम्ब पूरेला आस !*
मैं आंसू नव मास माय, पाथु बुझावण प्यास!!*

सांच नांम सूरराय रो, वैदा नाम न ब्याह !
हैमाले गल हरख सो, धरजे सुकवि घ्याव !!

  मां हिंगलाज से इच्छित वरदान प्राप्त कर वैदा जी कहने लगे हे मां में आपकी आज्ञा पालन करते हुए अपनी सुपुत्री का नाम सैणी रखूंगा तथा उसके विवाह के प्रसंग में सदा मौन ही रहूंगा मां हिंगलाज की आज्ञा पाकर वैदाजी प्रसन्नचित होकर भगवती के चरणों में शीश नमन कर अपने गांव घोरडीयाला हेतु प्रस्थान किया और घर पहुंचकर मां हिंगलाज की ज्योति व जल से घर पवित्र कर जलपान किया तथा समूचा यात्रा वृतांत अपनी धर्म पत्नी हांसी को सुनाया !

मां हिंगलाज के वरदान स्वरुप विक्रमी संवत 1346 चैत्र शुक्ल अष्टमी के पावन दिन को शुभ नक्षत्र में माता हांसी के गर्भ से मां हिंगलाज स्वयं अवतरित हुई !

वैदाजी ने मां हिंगलाज की आज्ञा को शिरोधार्य करते हुए सुकन्या का नाम सैणी रखा !
मां सैणी के जन्म पश्चात अपने पितृ ग्रह में बालोंचित्त क्रीडाओ से वैदाजी का घर स्वर्ग की भांति प्रकाशित होने लगा सैणी की क्रीडाए सभी का मन हरण करने लगी ! समय बीतता गया और पलक झपकते ही 13 वर्ष पल में बीत गए !

मां  सैणी जी के सांसारिक माता पिता को एक चिंता ने आ घेरा की सैणल 13 वर्ष की हो गई है यह चिंता स्वाभाविक ही थी परंतु मां हिंगलाज की आज्ञा अनुसार अपनी सुपुत्री के विवाह के प्रसंग पर वार्तालाप करना अनुचित था सामाजिक दृष्टिकोण व मर्यादा का भी पालन करना था अतः वेदा जी व हंसा बाई को निरंतर चिंता बनी रहने लगी कि इस धर्म संकट से कैसे निजात पाई जाए !

पिताजी की मानसिक स्थिति व दुख को देखकर मां सैणी ने अवसरानुकूल माता हंसा बाई से पिताजी के दुख के विषय में पूछ ही लिया ! सैणी के पूछने पर माता हंसा बाई ने कहा है सैणी जब कन्या युवावस्था में पहुंच जाती है तो उसका विवाह करना अत्यंत आवश्यक हो जाता है वे माता पिता जो ऐसा नहीं करते या समय पर उचित प्रसंगवश कार्य को गति नहीं देते हैं उन्हें कुंभीपाक नरक में भी जगह नहीं मिलती अतः है मेरी लाडली अब आप ही बताएं क्या किया जाए क्योंकि मां हिंगलाज की आज्ञा अनुसार आपकी विवाह प्रसंग की बात ना करने के वचनबद्ध है !

मां सैणी मंद मंद मुस्कान के साथ कहने लगी हे माता आप व्यर्थ की चिंता कर रही हैं आद्या शक्ति मां हिंगलाज ही इस चिंता का निवारण करेगी जो उचित समय पर मां हिंगलाज की आज्ञा अनुसार ही होगा !

जगदंबा मां हिंगलाज की आज्ञानुसार व सैणी के वचनानुसार वैदा जी और हंसा बाई की चिंता में कमी आई पर सांसारिक व सामाजिक दृष्टि से चिंतात्तुर होना स्वाभाविक था !

ठीक उसी वर्ष श्रावण मास की तृतीया तिथि के दिन मां सैणी अपनी बाल सखियों के साथ तालाब पर शिव पूजन के पश्चात खेल रही थी समीप ही एक युवक बंशी बजा रहा था उसके मधुर वंशी वादन से मधुर मधुर स्वर लहरियां निकल रही थी उसके वादन से जंगल की तरफ से पशु-पक्षी हिरण व नागों के झुंड के झुंड तस्वीरों चित्रों की भांति वहां खड़े हुए !

मां सैणी ने एक छोटी मादा मृग को अपनी गोद में लेकर स्नेह से खेलने लगी और अपने गले का स्वर्ण हार उस छोटी मादा हिरण के गले में डाल दिया !

इतने में ही उस गायक ने अपनी रागिनी को बंद कर दिया और हाथ से ताली बजाकर उन पशु पक्षियों के झुंड को भगा दिया ! मां सैणी का हार उस हरिणी के गले में रह गया वह हरिणी दूर जंगल में चली गई  !हार की चिंता में मातेश्वरी ने उस युवक से पुनः बंशी के स्वरुप से रागिनी करने को कहा तथा अपना परिचय देने को कहा ! उस युवक ने स्वयं का नाम विजानन्द बताया जो भांचलिया शाखा का चारण था और 36 राग-रागनियों का जानकार था !

विजाणंद बिना सोचे समझे ही कहने लगे कि मैं दुबारा राग तब ही करुंगा जब आप मेरे साथ विवाह का वचन दें !

मां हिंगलाज स्वरुप सैणी क्रोधाग्निवश कहने लगी अरे मूर्ख तू अज्ञान के समुद्र में डूब गया परंतु मैं हार प्राप्ति के लिए तेरे से वचन लेकर वचन दूंगी !

विजाणंद ने अपने वाद्य से पुनः मधुर राग कर पूर्व की भांति नागो व पशु पक्षियों के झुडों को एकत्रित किया ! मां सैणी ने उस सुंदर मृगी के गले से हार ले लिया !

मां  हिंगलाज स्वरुप सैणी स्वयं सामर्थ्यवान थी परंतु विजाणंंद की मुर्खता और संसार के प्रति शक्ति अवतार में श्रद्धा उत्पन्न करना ही उद्देश्य था मां सैणी ने अपने स्वयं के वचन निभाने हेतु विजाणंद से वचन लेकर कहा कि 15 दिन के भीतर निष्कलंक सवामण मोती जो सीप से उत्पन्न हो, लेकर आना तब ही वचनों की पालना होगी !

तत्पश्चात मां सैणी अपनी सखियों के साथ घर की ओर तथा विजाणंद मोतियों की तलाश में प्रस्थान किया ! मां सैणी घर पहुंचकर अपने जनक जननी से प्रणाम कर हिंगलाज यात्रा के लिए आज्ञा मांगी और कहने लगी हे तात मैं आपकी बांझ  अभिशाप को मिटाने हेतु 14 वर्ष तक मेहमान बन कर आई थी अतः अब मुझे आज्ञा दीजिए जिससे मैं मां हिंगलाज में समा सकूं !

मां हिंगलाज के वचनोंपाश में बंधित वैदाजी ने सहर्ष एक रथ व रावल खैमड को सारथी के रूप में तुरंत तैयार किया और सैणी को हिंगलाज की शरण हेतु विदा किया !  महातपस्वी चारण वैदाजी ने अपनी कन्या रत्न सैणी को वचनबद्धता से मां श्री हिंगलाज में लीन होने की विदाई दी !

गोरडियाला गाँव से रवाना होकर मातेश्वरी ने ओझत नदी के किनारे बसे ‘धारी गूंदाली’ गांव में विश्राम लिया ! नदी किनारे वट वृक्ष के तने पर मां सैणी ने अपने हाथ का निशान (हथेली) को सहनाणी के रूप में अंकित किया जो आज तक अंकित है इस वट वृक्ष को “वैदवड” के नाम से जाना जाता है

धारी गुंदाली से मां भगवती ने “कुंवर गांव” में विश्राम लिया ! कुंवर गांव के निवासी धोलजी भरवाड ने मातेश्वरी का स्वागत कर सेवा की ! धूलजी की सेवा भावना से प्रसन्न हो मातेश्वरी ने मनवांछित वरदान दिया ! धोलजी निसंतान के अभीशाप से ग्रषित थे ! 70 वर्ष की अवस्था में धोलजी को पुत्र रत्न की प्राप्ति मातेश्वरी मां सैणी के आशीर्वाद से हुई कुंवर गांव से मां सैणी ने *मांगलोर* स्थान पर विश्राम किया , मातेश्वरी ने वहां घेसिया पटेल से अपने बैलों को पानी पिलाने को कहा ! मांगलौर में पानी की अल्पता होने पर भी पटेल ने मातेश्वरी की आज्ञा का पालन कर सेवा की ! मां सैणी ने जल आपूर्ति का वरदान दिया और अपने दातुन की टहनी को वहां रोपित किया, वह टहनी हरी भरी हो गई जो आज “गणजो” पेड़ के रूप में विद्यमान है इन गंणजों को कुछ लोग जामुन के नाम से जानते हैं !

मांगलोर से मां सैणी जी ने प्रस्थान कर जालौर जिले के “केर धूलिया” गांव में विश्राम किया रात्रि के समय रथ के बैलो द्वारा एक चंवला ऊगे खेत में काफी नुकसान हो चुका था, प्रातः जब खेत के मालिक जिनका नाम “मेहरोजी” था खेत पर आए तो अपने खेत की फसल में हुए नुकसान से क्रोधित होकर मातेश्वरी के रथ को रोक दिया और अपने नुकसान की भरपाई की मांग करने लगा परंतु मातेश्वरी ने मेहरोजी के असत्य करने की चाहना से संपूर्ण खेत में चंवला की जगह आंबलिया ऊगवा दी !

इस चमत्कार को देख मेहरोजी आश्चर्यचकित होकर मां सैणी के चरणों में पड़ क्षमा याचना करने लगे !

आज भी वहां आंबलियों के वृक्ष लगे हैं जिन्हें सैणी जी महाराज का ओरण माना जाता है और सुरक्षित रखा जाता है !

धूलिया गांव से मातेश्वरी सैणी मां “फलसूंड” में विश्राम किया मां सैणी जी ने ग्राम वासियों से अपने बेलों को पानी पिलाने की मांग कि ! उस समय फलसूंड की जल बेरियां दो हिस्सों में थी एक हिस्सा चारणों के पास तो दूसरी बेरिया राजपूतों के पास थी, चारणों ने अल्पज्ञता के कारण स्पष्ट मना कर दिया कि हम स्वयं जल के अभाव से पीड़ित हैं, जल खारा है तो आपके बैलों को पानी कहां से पिलाएं ? जबकि राजपूतों के हिस्सों वाली बेरिया पर उपस्थित राजपूत सरदारों ने मातेश्वरी की अच्छे आदर सत्कार के साथ बैलों की जल तृष्णा को संतृप्त किया ! मातेश्वरी की कृपा से महाचमत्कार हुआ कि राजपूतों वाली बेरियों में शहद की भांति मीठा जल जबकि चारणों वाली बेरियों में विष समान कड़वा जल हो गया ! जो आज भी समान रूप से चमत्कृत है आज भी फलसूंड का जल मीठा और चारणों के हिस्से का जल कड़वा है यह क्षेत्र आज “कजोई” के नाम से जाना जाता है !

मातेश्वरी मां सैणी जी का छठा विश्राम ग्राम जुडिया में हुआ जहां लालस शाखा के चारण लुणोजी को शासन था !

विक्रम संवत 1360 के आसपास मां भगवती सैणी जुडिया ग्राम में विश्राम हेतु राजगढ़ धौरे पर अपना रथ ठहराया, यह स्थान वर्तमान में सोवनथली के नाम से प्रसिद्ध है !

मातेश्वरी ने अपने सारथी खैमड जी को  भेजकर लुणोजी से बैलों को जल तृष्णा मिटाने का आग्रह किया  जल की कमी होते हुए भी लुणोजी ने मातेश्वरी की आज्ञा को सहर्ष स्वीकार किया और जल के भारीपन को नष्ट करने के लिए गायों के दूध मिश्रित जल से बेल्यों की जल तृष्णा को शांत किया और मातेश्वरी से हाथ जोड़ आग्रह किया कि हे मां पेयजल की कमी को पूरा करें ! मां ने तथास्तु के साथ वरदान दिया !

लुणोजी ने मातेश्वरी से प्रसाद निमंत्रण स्वीकार करने को कहा, मां ने प्रसाद स्वीकार किया और कहा बाबाजी आपका ही प्रसाद हैं पर एक सेठ कन्या सजनी प्रसाद लेकर आ रही है मैं वही प्रसाद सेवन करूंगी क्योंकि सजनी शक्ति का अंश है !

नाहटा सजनीबाई ने गुड की लापसी बनाकर मातेश्वरी को प्रसाद ग्रहण करवाया उसी समय मां सैणी भगवती ने वर दिया कि आज से मेरा प्रसाद गुड का ही होगा ! इस मर्यादा को बनाए रखना सभी का हित होगा !

मां हिंगलाज अवतार भगवती सैणी ने प्रसाद ग्रहण कर दातुन किया तत्पश्चात दातुन की टहनी जमीन में रोप दी और सजनीबाई को वरदान दिया कि यह नीम की टहनी हरी भरी हो जाएगी और विशाल वृक्ष का रूप धारण करेगी इसकी रखवाली लूणाबाबा एवं उनके वंशज करते रहेंगे !

आज जुडिया में जहां भी नींम के वृक्ष हैं वहां मातेश्वरी का ओरण माना जाता है तथा पवित्रता के साथ सरंक्षण का ध्यान रखा जाता है !

मां हिंगलाज स्वरूपा सैणी जी ने दूसरा वरदान  लुणोजी को दिया और कहा की है लुणाबाबा तुम्हारे कुएं में प्रातः काल जल के प्रबल वेग से प्रवाह आएगा तथा उसके साथ एक मूरत उछलकर कुए से सात हाथ दूर ठहरेगी वही पर उसे स्थापित कर देना व पूजन प्रारंभ कर देना कुएं में अथाह जल हो जाएगा मां सैणी की कृपा से अथाह जल की प्राप्ति हुई लुणोजी को आशीर्वाद प्रदान कर करुणामई मां ने आगे की यात्रा हेतु प्रस्थान किया !

वर्तमान में चैत्र के शुक्ल पक्ष की सप्तमी अष्टमी को ममतामई मां के जन्म दिवस को उत्सव की भांती हजारों श्रद्धालुओं की उपस्थिति में मनाया जाता है !

जुडिया से प्रस्थान कर मातेश्वरी ने अपना यात्रा ठहराव दिल्ली में किया जहां सोनगरा शाखा के चौहान मालदे के घर विश्राम किया, मां भगवती की सेवा व आदर सत्कार किया यहां भी मां ने बेरी की गुफा में जाकर वापस आने का पर्चा बादशाह अलाउद्दीन को दिया !

इसके बाद मा हिंगलाज स्वरुप मां सैणी हिमालय की राह में अपने तपोबल की गति से हिमा पर्वत के निकट जा पहुंचे हिमा पर्वत हिंगलाज रुप शक्ति को आते देख हर्षित हो पास आकर प्रणाम किया !

महाशक्ति महामाया ने हेमाग्रह में हिमालय की गोद में बैठकर हिंगलाज की ज्योति में ज्योति मिलाई ! स्वामिभक्त खैमड जी सारथी ने भी अपना शरीर उसी हेमाग्रह को अर्पित कर दिया !

हिमालय में यह स्थान द्राश अंचल में आता है जहां सैणल कुंड है जिसमें सदैव गर्म जल रहता है मां सैणी का छोटा सा मंदिर है जिसकी पूजा लामा जाति की छोटी कन्या के द्वारा की जाती है

धन्य है माता पिता, धन्य है सारथी खैमड जी और धन्य है धेनु शिशु जो रथ में जुत कर मां सैणी को हिंगलाज की शरण में ले गए !

प्रेषक– गणपतसिंहचारण मुण्डकोशिया

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