आम की गहरी छाव ,ऊपर कोयले बोल रही ! ठंडी हवा ! कब नींद आई कुछ पता ही नहीं चला!
उसी रस्ते माहोली गाव का एक महाजन थोड़ी देर पश्चात अपने घोड़े पर वहां से गुजरा ! कुए पर आम की छाव में सो रहे व्यक्ति के सिरहाने एक काला नाग फन करे धीरे धीरे कभी बाई और कभी दाई और लहरा रहा हे और वह जवान निश्चिन्त सोया खर्राटे ले रहा हे उस अचंभित अवस्था में सेठजी से रहा नहीं गया ! दूर खड़े उन्होंने जोर से खांसा ! सर्प अपना फन समेट कर पास के बिल में गुस गया सेठजी खिमजी के पास गए व् उसको जगाया ! सोये हुए व्यक्ति का परिचय पूछा पूरी जानकारी लेने के पश्चात सेठ बोला – देख भाई आज जो मेने देखा उसका फल मुझे देदे !
खिमजी ,जवान ,फिर चारण का बेटा समज गया की सेठ की इस बात में कोई न कोई राज जरुर हे ! खिमजी समज गए ! जरुर कोई अच्छी ही बात देखि होगी ! यदि शकुन अच्छे हे तो मुझे नोकरी मिलेगी !
सेठ ने जब देखा यह तो भाया टस का मस नहीं हो रहा तो एक और पासा फेकते हुए बोला की : यदि तेरे नोकरी लगे और रुतबा बढे तो मुझे अपने सेवा में अवश्य रखना ! खिमजी खूब हसे -सेठजी क्यु मजाक कर रहे हो ? मेरे घर में खाने को तो दाना नहीं और तुमको सेवा में रखु ? सेठजी ने बहुत ही जिद पकड़ ली तो अपना पीछा छुड़ाने हेतु वचन दिया ‘ – अच्छा बाबा अच्छा ,तुजे मेरे पास रखूँगा , बशर्ते की में इस योग्य बनू !
खिमजी अपने घोड़े पर बैठकर धीरे धीरे अपने विचारो में खोया अंततोगत्वा संध्या के समय बाठेडा पहुच ही गया ! पूछते -पूछते रावले में जाकर रावजी भोपतरामजी को मुजरा किया ! चारण पुत्र को , मर्यादाअनुसार खड़े होकर आदर देते हुए खिमजी का अभिवादन स्वीकार करते हुए , अपने पास बिठाकर पूरा परिचय लेते हुए आने का कारण पूछा ! कुछ देर बातचीत करके कोट के दरिखाने में खिमजी का डेरा करा दिया!
रावजी खिमजी की बातो से , उसके रोबीले चेहरे से , तमीज और तहजीब से बहुत प्रभावित हुए और खिमजी को अपने पास रख लिया !
धीरे धीरे खिमजी अपनी व्यहार कुशलता से रावजी की मूछ का बाल बन गए ! खिमजी पर रावजी की पूरी मर्जी व विश्वास हो गया ! खिमजी भी रावजी की सेवा उतनी ही स्वामिभक्ति से करे !
महाराणा करण सिंह ने वि.स.1682 में अपनी सेवा में सेवारत एक नरुका राजपूत को नाराज होकर मरवा दिया था ! उस नरुका राजपूत के छोटे भाई ने उसी दिन साफा फेंककर सिर पर अंगोछा बांधकर कसम खाई कि जब तक मेरे भाई का बदला नहीं लू तब तक साफा सिर पर नहीं बंधूगा ! यह बात खिमजी ने रावजी भोपतरामजी से सुन रखी थी ! एक दिन जब वे उदयपुर महलो से रावजी की हवेली जा रहे थे तो अंगोछा बांधे हुए एक गुड्सवार को सिकलीघर की दुकान पर यह कहते सुना की इस तलवार के ऐसी धार लगाना की दुसरे की तलवार पर न हो , इसके लिए मुह मांगे पैसे दूंगा !
खिमजी ने गुडसवार का खाका देखा ,चलते हुए उसकी आँख में जहर देखा ,बोली सुनी ,उसका बढ़िया घोडा नजर बाहर निकाला और सिकलीघर को जो बात कही वह सुनकर खिमजी तुरंत समज गए की हो न हो ये वही नरुका राजपूत हे ! खिमजी दूसरी गली में दुसरे सिकलिघर को अपनी तलवार बढ़िया धार लगाने का कहकर कहते गए की आधी रात को में मेरी तलवार मागूंगा तब तक बढ़िया तयार कर के रखना !
आधी रात को खिमजी सिकलिघर से अपनी तलवार लेकर वापस बाठेडा की हवेली जा रहे थे तो रस्ते में वही गुडसवार अंगोछा बांधे हुए सिकलिघर की ग़ली में गुसा ! खिमजी को नींद कहा ? सोते सोते विचार कर रहे थे की आज यह नरुका अवश्य कोई उपध्रव करेगा ! पर करेगा क्या ? कुछ समज नहीं आ रहा ! राणाजी तक तो पहुच नहीं सकता ! अवश्य कुंवर जगत सिंह पर ये घात कर सकता हे !
इतने में महलो की और से घोड़ो की टापों की आवाज सुनाई दी और 10 – 15 लोगो की बातचीत करते ,हंसने की आवाज भी सुनाई दी ! खिमजी सावधान हुए ! अवश्य कुंवरजी और उनके साथी हे ! ईधर नरुका का भी सावधान होते हुए तलवार की मुठ पर हाथ पड़ा और बिजली के समान झपटते अपने घोड़े को कुंवर जी के घोड़े की और दबाते हुए चिल्लाया – ‘ कुंवर जी सावधान ! में मेरे भाई का बदला ले रहा हु और वार करने हेतु तलवार उठाई !
खिमजी सावधान तो थे ही ! खिमजी ने तो बराबर समय पर अपने घोड़े को नरुका के घोड़े के पास लेकर बाएं पागडे पर खड़े होकर दायें हाथ से ‘ जनेउबढ़ ‘ वार किया सो नरुका की गर्दन काटती हुई ,एक हाथ को काटती हुई खिमजी की तलवार घोडे की पीठ में गुस गई ! खिमजी ने तो यह सब करके , लगाई घोड़े को एड सो सीधे बाठेडा की हवेली पंहुचे !
झरोखो में बेठे राणाजी यह सब नजारा देख रहे थे ! सोचा आज कुंवरजी गए ! परन्तु सभी घोड़े वापस जब महलो की और पास में आये तो राणाजी के जी में जी आया ! कुंवरजी व् उनके साथी कुछ समझ सके उतने में तो खिमजी घटना स्थल से गायब हो चुके थे इस ओजल मनुष्य को केवल कुंवरजी देख सके ! पर था कोन यह पता उनको भी नहीं ! सूर्य निकल चूका था ! बाठेडा की हवेली में बेठे रावजी दातुन कुल्ले कर रहे थे! पास में दो चार भाईपा के सरदार बेठे थे! बात खिमजी के बारे में ही हो रही थी !
इतने में तो खिमजी सीधे रावजी के चरणों में तलवार रख कर हाथ जोड़ कर खड़े हो गए ! बहुत ही गंभीर होकर रावजी बोले – ‘ खिमा कहाँ , क्या कबाड़ा कर के आये हो ? सच सच बताना !’
खिमजी ने शुरु से लेकर आखिर तक सब घटना ज्यो की त्यों रावजी को सुनादी ! रावजी के चेहरे पर जो चिंता की छायां थी उसके स्थान पर खुशि की लहर दोड़ गई !
उन्होंने तो दातुन किया न किया , खिमजी की और बढ़ कर छाती से लगाते हुए बोल पड़े – शाबास रे देवी पुत्र शाबास ! तूने तो गजब का काम किया ! मेवाड़ की गद्धी के धणी को तूने बचा लिया ! पास में बेठे सभी सभासद खिमा की पीठ थपथपा कर बधाई देने लगे !
रावजी बोले – ‘ खिमा तूने ऐसा काम किया जिससे राणाजी तुज पर तो खुश होंगे ही पर इसका श्रेय मुझे भी मिलेगा कि बाठेडा रावजी के आदमी ने यह काम किया ! वाह , खिमा वाह ! चल तुजे राणाजी के पास ले चलू !
रावजी अपने कबिले के साथ महलो में पहुचें ! महलो में पहले से ही खलबली मची हुई थी ! हर कोई पूछ रहा था क्या हुआ ? केसे हुआ ? कोन था वह आदमी जिसने कुंवरजी की जान बचाई ? आदि !
रावजी के 8 -10 घोड़ो को महलो में आता देख एक बार सन्नाटा छा गया ! पर दूर से ही राजकुमार जगत सिंह ने खिमजी को पहचान लिया ! राणाजी को अर्ज की – यही अम्बुवा लपेटे वाला आदमी था जिसने नरुका को मारा !
राणाजी की ख़ुशी का कोई पार नहीं ! उन्होंने रावजी और खिमजी को अपने पास बुलाया ! दोड़कर खिमजी को गले लगाते हुए बोले – ‘मेरे तीन बेटे, पर चौथा बेटा तू !
उस दिन से दुसरे राजकुमारों की तरह खिमजी के भी राज्य कोष से हाथ खर्च बांध दिया गया! राणा करणसिंह के स्वर्गवास के पश्चात् जगतसिंह जब सिंहासनारूढ हुए तो खिमजी को सत्तर हजार रुपये सालाना आमदनी वाला गांव ठीकरिया इनायत किया !
इस गाँव का नाम कालान्तर में महाराणा जगत सिंह ने बदल कर खिमपुर रखा और खिमजी का नाम अमर कर दिया !
महाराणा राजसिंह भी खिमजी को बहुत मान देते थे ! उसको काका कहकर संभोधित करत थेे !
महाराणा ने ओरंगजेब की सेना के साथ युद्ध करके मालपुर लुटा ! इस लुट का कुछ अंश खिमजी को भी मिला ! खिमजी ने अपने हिस्से मे आये धन को याचको और मोतिसरों को बाँट दिया !
खिमजी वीर और दानी तो थे ही परन्तु चारण कुल में जन्म लेने के कारण वे एक नामी कवी भी थे ! उनकी वीरता के कारण मेवाड़ के महाराणा द्वारा उन्हें बड़ी जागीर प्रदान की गई और उनकी कविता के कारण सिरोही नरेश अखेराज ने उनको कायन्द्रा गावं बक्षिस में दिया !
चारण साहित्य की बहुत ही बढ़िया जानकारी उपलब्ध करवाने हेतु आभार एवं शुभकामनाएं।